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औरंगाबाद में उजड़ा दलितों का आशियाना, चिलचिलाती धूप में हुए बेघर

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बशीर बद्र की एक गजल "लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में" इसी गजल की पंक्ति बिहार के औरंगाबाद के गोह प्रखंड के मुंड़वा गांव में सोमवार को उस वक्त लागू हो गयी जब गांव के एक दर्जन महादलितों के घरों पर बुलडोजर चला दिया गया. इस मामले में सीओ का अंदाज बेहद क्रूर रहा. यूपी में बाबा का बुलडोजर माफिया और अपराधियों पर चल रहा है. वहीं, अब बिहार में सीएम नीतीश कुमार का बुलडोजर चलना शुरू हो गया है. 

सीओ भारी मात्रा में पुलिस बलों को लेकर मौके पर पहुंचे और उन्होंने अपने देखरेख में एक-एक कर 11 महादलितों के आशियाने को बुलडोजर से जमींदोज करा दिया. गौरतलब है कि, मुंड़वां गांव में जिस जगह पर बने महादलितों के बने आशियाने उजाड़े गए उन्हें 90 के दशक में इंदिरा आवास योजना के तहत बनाया गया था. इन्हीं इंदिरा आवासों के जमींदोज किए जाने से अब महादलित बेघर हो गए हैं. उनके सिर से छत का साया उठ गया है. अब महादलित परिवार के लोग बेघर होकर भीषण गर्मी में खुले आसमान तले आ गए हैं और उनका कोई हाल भी नहीं पूछता है. 

हद तो यह है कि पिछले साल ही बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने घोषणा की थी कि गरीबों के आशियाने उजाड़ने से पहले सरकार उन्हें बसाने का प्रबंध करेगी. इसके उलट गोह के सीओ टारगेट कर पिछले दो साल से मुंड़वा के महादलितों को उजाड़ने पर तुले थे और आज उन्होंने अपनी मुराद भी पूरी कर ली. ऐसे में अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर मुंड़वा के महादलित कहां बसेंगे? जबकि जिस जमीन से उन्हें बेदखल किया गया, उसपर वे लोग 1975 से बसे हैं. सरकार ने इनलोगों को 1995 में ही आवास योजना के तहत इंदिरा आवास दे रखी थी. आखिर भूमिहीन दलितों को बेदखल करने का कानून क्या है?           

इसके पूर्व शनिवार की रात करीब नौ बजे पुलिस बल के साथ अंचल कार्यालय का एक कर्मचारी मुंड़वा गांव पहुंचा था और वह महादलितों को नोटिस थमा कर चला गया था. नोटिस में 48 घंटे के अंदर मकान खाली करने की चेतावनी दी गई थी और ठीक 48 घंटे बाद काम तमाम कर दिया गया. इस मामले में सवाल उठता है कि, आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी आ पड़ी कि रात के नौ बजे नोटिस भेजा गया और 48 घंटे बाद काम तमाम कर दिया गया. हालांकि, अब इस तुगलकी फरमान के खिलाफ मुंड़वा के महादलित  हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं. वहीं, बेघर हुए एक महादलित नंदू ने बताया कि हमलोगों के पास अब रहने के लिए जगह नहीं है. रहने के लिए अगर थोड़ी सी जमीन मिल जाती तो सरकार का हम महादलित परिवारों पर मेहरबानी होती. वहीं एक परिवार की महिला सुमित्रा देवी ने बिफरते हुए कहा कि, अब हम कहां रहेंगे. इस भीषण गर्मी और लू में अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहां जाएं.

 

वहीं, मामले में सीओ मुकेश कुमार का कहना है कि, 9 जून को सरकारी आदेश आया था कि गैरमजरुआ आम आहर एवं पिंड का अतिक्रमणकारियों द्वारा अतिक्रमण किया गया है. मामला मुख्यमंत्री के जनता दरबार से भी संबंधित है, जिसपर मुख्य सचिव द्वारा वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से तीन दिनों के अंदर अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया गया था. इसी आदेश का पालन करते हुए अतिक्रमण मुक्त कराया गया है.

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