भारत और कनाडा आज जिस तल्खी भरे मोड़ पर आमने सामने खड़े हैं, उसके लिए सफर बहुत पहले शुरू हो गया था. 80 के दशक में खालिस्तानी आतंकियों की कनाडा में बढ़ती गतिविधि से आगाह करते हुए भारत ने कुछ आतंकियों को भारत को सौंपने की बात कही थी. इन आतंकियों में तलविंदर सिंह परमार भी शामिल था. कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने तलविंदर को भारत को नहीं सौंपा. और उसी आतंकी ने 1985 में एयर इंडिया के विमान में बम विस्फोट करवा दिया जिसमें कनाडा के ही 268 नागरिक मारे गए.
भारत की चेतावनियों को नजरअंदाज करके कनाडा ने आत्मघाती भूल की थी, वह आज भी करता जा रहा है. साथ ही इससे आगे बढ़कर उसने भारत को आंखें दिखाने की कोशिश की है, जो खालिस्तानी आतंकियों को लेकर कनाडा से चिंता जताता रहा है. ऐसे ही एक आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर कनाडा ने जो बवाल काटा है, वह दुनिया के सामने है. निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर लगाकर कनाडा का भारतीय राजनयिक को अपने देश से निकाल देना. फिर भारत की ओर से कनाडाई राजनयिक का निष्कासन और वीजा पर बैन लगा देना. कुल मिलाकर ट्रूडो के उकसावे से भारत-कनाडा के रिश्ते दांव पर लग गए हैं.
आइये जानते हैं कि यह हालात और कहां तक जा सकते हैं. अब यदि कनाडा ऐसे ही अपनी गतिविधियों को अंजाम देता रहा तो हालात राजनयिक संबंध खत्म होने तक जा सकती है. आइये, समझते हैं कि दो देशों के बीच जब हालात बिगड़ते हैं तो वह कितने चरणों से होकर गुजरते हैं...
1. राजनयिक विरोध
बिगड़ते रिश्ते के प्रारंभिक चरण में, दोनों देश राजनयिक चैनलों के माध्यम से अपनी चिंताओं या शिकायतों को व्यक्त करेंगे जिसके चलते विश्व के कई संगठनों में कूटनीतिक हलचल बढ़ेगी. विश्व स्तर पर चल रही ईस्ट और वेस्ट की गोलबंदी और चरम पर पहुंच सकती है. देश राजनीतिक उपाय कर सकते हैं जैसे राजनयिकों को निष्कासित करना, अपने स्वयं के राजदूतों को वापस बुलाना, या राजनयिक संबंधों को पूरी तरह से निलंबित करना. भारत और कनाडा एक दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित करने के बाद हालात और भी बुरे होते जा रहे हैं. कई देश अनावश्यक रूप से दोनों के बीच मध्यस्थता कराने का दावा कर सकते हैं. अमेरिका, पाकिस्तान और चीन का हस्तक्षेप अपनी-अपनी रणनीति के अनुसार शुरू हो गया है. इसके चलते दोनों देशों के कई देशों से आपसी संबंध और भी बिगड़ सकते हैं.
2. आर्थिक प्रभाव
आर्थिक प्रतिबंध, व्यापार प्रतिबंध या अन्य आर्थिक उपाय दबाव के साधन के रूप में लगाए जा सकते हैं. इनमें व्यक्तियों और संस्थाओं पर लक्षित प्रतिबंधों से लेकर व्यापक व्यापार प्रतिबंध या टैरिफ तक शामिल हो सकते हैं. भारत में काम कर रही कई मल्टी नेशनल कंपनियों के काम पर भी असर पड़ सकता है. नए निवेश भी प्रभावी होंगे. इनमें दोतरफा नुकसान होगा. ऐसा नहीं है कि भारत को ही नुकसान होगा. कनाडा सहित पूरे अमेरिका और यूरोप की इकॉनमी मंदी से जूझ रही है. भारत का बाजार में सबके लिए एक उम्मीद की किरण दिख रही है. छात्रों के आवागमन पर रोक लगने से दोनों देशों का नुकसान हो सकता है.
3. सैन्य गतिविधियां
अकसर दो देशों की खराब होते संबंध सैन्य तनाव में बदल जाते हैं. यदि इनकी सीमाएं नजदीक होती हैं तो देखा जाता है कि दोनों देश एक दूसरे देश की सीमाओं के पास सैन्य अभ्यास करने लगते हैं, सैनिकों को तैनात करना या विवादित क्षेत्रों में सैन्य उपस्थिति बढ़ाना जैसे काम शुरू हो जाते हैं. अमेरिका-चीन, भारत-पाक और भारत-चीन के विवाद होने पर हमने अकसर ऐसा होते देखा है. हालांकि कनाडा और भारत के बीच संबंध इस स्तर तक कभी नहीं जाएंगे.
4. सीमित सैन्य गठबंधन
सीमित सैन्य जुड़ाव का तात्पर्य सीमा पर झड़पों, हवाई या नौसैनिक घटनाओं या छोटे पैमाने पर अन्य सैन्य टकराव जैसी कार्रवाइयों से है. दो देश ऐसे नए सैन्य गठबंधन भी बनाते हैं.अगर ठीक से प्रबंधन न किया जाए तो ये घटनाएं तेजी से बढ़ सकती हैं. कनाडा नाटो का सदस्य देश जरूर है, लेकिन इसी नाटो के कई बड़े सदस्य देशों के साथ भारत ने पिछले दिनों रणनीतिक साझेदारी की है. ऐसे में किसी सैन्य संगठन का कम से कम भारत पर कोई असर नहीं होगा.
5. आमने-सामने का संघर्ष
यदि तनाव बढ़ता रहा और राजनयिक प्रयास विफल रहे, तो विवाद में पड़े दो देशों के बीच युद्ध जैसा पूर्ण पैमाने पर सशस्त्र संघर्ष छिड़ जाने की संभावना होती है. जैसा कि देखा गया है कि दुनिया भर में युद्ध के पहले राजनयिक कोशिशें खूब होती हैं पर असफल होने पर सामना युद्ध के मैदान पर ही होता है. रूस और यूक्रेन का युद्ध प्रत्यक्ष प्रमाण है.
6. अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप
जब कोई संघर्ष एक निश्चित बिंदु तक बढ़ जाता है, तो अंतर्राष्ट्रीय संगठन या अन्य देश मध्यस्थता करने, युद्धविराम पर बातचीत करने या मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए हस्तक्षेप कर सकते हैं. इस चरण में व्यापक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध भी शामिल हो सकते हैं.जिसका प्रभाव दोनों देशों पर तो पड़ता ही है. पूरी दुनिया प्रभावित होती है. रूस और यूक्रेन युद्ध का परिणाम आज पूरा यूरोप भुगत रहा है. गैस की किल्लत और तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने पूरी दुनिया का जीना हराम कर दिया है. भारत-कनाडा तनाव से जो हालात बिगड़ रहे हैं इसका असर दोनों देशों की अर्थव्यवस्था के अलावा दोनों देशों के नागरिकों पर भी पड़ेगा.
8. समाधान या तनाव कम करना
आदर्श रूप से, विवादग्रस्त देशों को अंततः बातचीत, शांति वार्ता या राजनयिक प्रयासों के माध्यम से एक समाधान तक पहुंचना होता हैं. तनाव कम होने पर दोनों देश अपने अपने नुकसान का आंकलन करते हैं. डी-एस्केलेशन में शांतिपूर्ण रिश्ते की ओर लौटने के लिए उठाए गए कदम शामिल हैं. भारत और कनाडा को भी ये सब करना ही होगा. सवाल यही है कि ऐसा कितनी देर से और किन हालातों में किया जाएगा. क्या कनाडा कभी खालिस्तानी आतंकियों को अपनी जमीन मुहैया न करने के लिए राजी होगा? क्या जस्टिन ट्रूडो भारत पर लगाए गए आरोप वापस लेंगे? दोनों सरकारें फिलहाल अपने अपने स्टैंड पर कायम हैं.