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पैसों की तंगी, घरवालों का विरोध, फिर 4 जोड़ी जूते से खड़ा किया 600 करोड़ का मेगा एंपायर

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इस कहानी की शुरुआत हरियाणा के करनाल के कमेटी चौक पर बने 'पाल बूट हाउस' से हुई. ये वो दौर था, जब हाथ से जूते बनाकर बेचे जाते थे. एक दिन में तीन से चार जोड़ी जूते ही बन पाते थे. धर्मपाल गुप्ता और पुरुषोत्तम गुप्ता उन्हीं चार जोड़ी जूतों को बेचकर किसी तरह से गुजारा कर रहे थे. गुप्ता भाईयों ने परिवार के खिलाफ जाकर जूतों का काम शुरू किया था. मकसद था, लोगों को स्वदेशी चीजों से जोड़ना. भले ही मुश्किलें आई, लेकिन गुप्ता ब्रदर्स ने कोशिश नहीं छोड़ी और आज ये कंपनी 600 करोड़ रुपये ही हो चुकी है. उस ब्रांड का नाम तो लगभग सभी लोगों जानते हैं. आप में अधिकांश लोगों ने इस ब्रांड के जूते भी पहने होंगे, लेकिन इस कंपनी के संघर्ष और उसकी सफलता की कहानी बहुत कम लोग जानते हैं.

हरियाणा के करनाल के रहने वाले पीडी गुप्ता और डीपी गुप्ता ने साल 1944 में शहर के कमेटी चौक पर एक जूते की दुकान खोली. चार जोड़ी जूतों के साथ उन्होंने शुरुआत किया. 'पाल बूट हाउस' नाम से उन्होंने दुकान तो खोली, लेकिन परिवार का साथ न मिला. सगे -संबंधी, दोस्त -यार उनका मजाक उड़ाने लगे. परिवार की नाराजगी झेलने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और काम में लगे रहे. उस दौर में हाथों से जूते बनाए जाते थे, इसलिए दिन भर में मुश्किल से चार जोड़ी जूते ही बन पाते थे. उन्हीं को बेचकर दोनों भाई परिवार का खर्च चलाते थे. इसका मकसद लोगों को बेहतर प्रोडक्ट और उन्हें विदेशी ब्रैंड से मुक्ति दिलाना था.

तीन साल में नाम के आगे लग गया पब्लिक लिमिटेड

साल 1954 में गुप्ता भाईयों को अपने भांजे राजकुमार बंसल का साथ मिला. राजकुमार ने कारोबार को बढ़ाने का पूरा रोडमैप तैयार कर लिया. जूते हाथ से बनाने के बजाए उसके लिए मशीने खरीदी. मशीनों की मदद से तेजी से जूते बनने लगे. उन्होंने जूतों को नाम देना शुरू किया. 'लिबर्टी शूज' के नाम से कंपनी की नींव रखी. जहां 4 जोड़ी जूते पूरे दिन में बनते थे, वहीं रोज हजारों की संख्या में जूते बनने लगे. तीन सालों के भीतर ही लिबर्टी के नाम के आगे 'पब्लिक लिमिटेड' जुड़ गया.

एक दिन में 50 हजार जूते

जो कंपनी कभी दिनभर में 4 जोड़ी जूते बनाती थी, वहां अब रोज 50,000 जोड़ी जूते बनने लगे. साल 1990 के दौर में लिबर्टी में खूब मुनाफा कमाया. कंपनी तेजी से ग्रोथ कर रही थी. इसी दौर में उसने 'फोर्स 10' लॉन्च किया. ये लिबर्टी का पहला सब ब्रांड था. कंपनी उस दौर में देश की नबंर 2 फुटवेयर कंपनी बन चुकी थी. कंपनी ने अपना दायरा अब देश के साथ-साथ विदेशों में भी बढ़ाना शुरू किया. कंपनी का कारोबार हंगरी तक फैल गया. हंगरी समेत अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका जैसे देशों में लिबर्टी के जूतों का एक्सपोर्ट होने लगा. पहली बार पॉलियूरेथिन तकनीक से जूते बनाए. इस तकनीक से बने जूते लंबे समय तक चलते थे, जिसकी वजह से लोगों को लिबर्टी के जूते खूब पसंद आने लगे.

जूतों की डिजाइनिंग पर फोकस

कंपनी ने जूतों की डिजाइनिंग पर पूरा फोकस रखा. साल 1993 में कंपनी ने नॉन लेदर शूज बनाना शुरू किया. लिबर्टी 1989 में 35 करोड़ रुपए का सालाना टर्नओवर करने वाली कंपनी बन गई. कंपनी का टर्नओवर बढ़ता चला गया. आज देश में लिबर्टी के 4 हजार से अधिक कर्मचारी है. दुनिया भर में 407 आउटलेट्स हैं, 25 देशों में कारोबार फैला है. कंपनी 600 से अधिक का मुनाफा कमा रही है.

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