बिहार की राजनीति में इस वक्त उथल-पुथल मची हुई है. कब बिहार में सरकार पलटने की खबर आ जाए कोई नहीं जान रहा. लेकिन, जिस तरह की गतिविधियां देखने के लिए मिल रही है, उसे लेकर पूरी तरह से कयास लगाए जा रहे हैं कि, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर से एनडीए में जाने वाले हैं. साफ तौर पर यह माना जा रहा है कि, अब सीएम नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले हैं और बीजेपी के साथ सरकार बनाकर फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. सूत्रों के हवाले से सरकार गठन के फॉर्मूले को भी लेकर यह खबर सामने आई थी कि, बीजेपी के कोटे से 2 उपमुख्यमंत्री होंगे और सीएम नीतीश मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे.
1974 के छात्र आंदोलन से शुरु किया राजनीतिक सफर
लेकिन हम आपको बता दें कि, यह पहली बार नहीं है जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पाला बदलने जा रहे हो बल्कि अब तक के अपने राजनीतिक करियर में उन्होंने कई बार पाला बदल लिया है. तो आइये थोड़ा नजर डालते हैं सीएम नीतीश के राजनीतिक सफर पर कि आखिर कब-कब उन्होंने पलटी मारा. सीएम नीतीश कुमार बिहार की सियासत में धुरी बनाए हुए हैं और उन्हीं के इर्द-गिर्द 20 सालों से राजनीति केंद्रित है. दस सालों में पांचवी बार नीतीश पलटी मारने जा रहे हैं. नीतीश ने 1974 के छात्र आंदोलन के जरिये राजनीति में कदम रखा, 1985 में पहली बार विधायक बने. इसके बाद नीतीश कुमार ने पलटकर नहीं देखा और सियासत में आगे बढ़ते चले गए. लालू प्रसाद यादव 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1994 में नीतीश ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. नीतीश और लालू एक साथ जनता दल में थे, लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षा में दोनों के रिश्ते एक दूसरे से अलग हो गए.
बीजेपी से 17 साल का तोड़ा रिश्ता
वहीं, साल 1994 में नीतीश ने जनता दल छोड़कर जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया. इसके बाद साल 1995 में वामदलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़े, लेकिन नतीजे पक्ष में नहीं आए. नीतीश ने लेफ्ट से गठबंधन तोड़ लिया और 1996 में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन गए. इसके बाद नीतीश कुमार बिहार में बीजेपी के साथ 2013 तक साथ मिलकर चुनाव लड़ते रहे और बिहार में सरकार बनाते रहे. कुल मिलाकर बिहार में बीजेपी और नीतीश 17 साल तक साथ रहे. फिर नीतीश कुमार का बीजेपी से पहली बार मोहभंग तब हुआ जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. नरेंद्र मोदी का सीएम नीतीश ने पूरजोर विरोध किया और देखते ही देखते उनसे नाता भी तोड़ लिया. उसके बाद 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा. 2014 के चुनाव में बेहतर नतीजे जेडीयू के पक्ष में नहीं आए, जिसके बाद आरजेडी और कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया.
एक बार फिर सीएम ने मारी पलटी
2015 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू ने आरजेडी, कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और बिहार में बीजेपी का सफाया कर दिया. नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाया. नीतीश मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव ने उमुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली. बिहार में आरजेडी के साथ दो साल तक सरकार चलाने के बाद 2017 में नीतीश ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया. इसके बाद फिर वह समय आया कि जब सीएम नीतीश एनडीए के पाले में चले गए. एनडीए के साथ सीएम नीतीश कुमार ने सरकार बना ली और नीतीश मुख्यमंत्री बने और बीजेपी नेता सुशील मोदी डिप्टी सीएम बने. नीतीश कुमार और बीजेपी ने 2017 से लेकर 2022 तक सरकार चलाया. इस दौरान 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव भी नीतीश ने बीजेपी के साथ लड़ा, लेकिन चुनावी नतीजे में बीजेपी को फायदा और जेडीयू को नुकसान हुआ. नतीजा यह देखने के लिए मिला कि, जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. जेडीयू 43 सीटें जीती तो बीजेपी के खाते में 74 सीटें आईं. इसके बावजूद बीजेपी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार को सौंपी और अपने दो डिप्टी सीएम बनाए.
क्या देश की राजनीति पर भी पड़ेगा असर ?
फिर, नीतीश कुमार 2020 में सीएम जरूर बन गए लेकिन बीजेपी का दबाव बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. बिहार में दो साल सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार ने 2022 में पलटी मारी और आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम. डेढ़ साल के बाद नीतीश कुमार का मन फिर से बदल गया है और अब फिर से बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की कवायद में है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार की सियासत में भूचाल आ गया है. पूरी तरह से गहमागहमी का माहौल कायम है. सिर्फ और सिर्फ सीएम नीतीश कुमार के फैसले का इंतजार किया जा रहा है. लेकिन, कहा यह भी जा रहा है कि, बिहार की सियासत में होने वाले इस बदलाव का प्रभाव देश की राजनीति पर भी बखूबी पड़ सकता है.