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ससुराल से अगर इस काम के लिए मांगे पैसे तो नहीं कहलायेगा दहेज, जानिए हाईकोर्ट का बड़ा आदेश

If you ask for money from your in-laws for this work then it

देश के कानून की माने तो दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आता है. दहेज की खातिर अब तक ना जाने देश की कितनी बेटियों की जान चली गई, जिस पर सरकार ने सख्त रुख अख्तियार किया. शादी से पहले या शादी के बाद अगर कोई व्यक्ति पत्नी या ससुराल वालों से पैसे की मांग करता है तो वह दहेज की श्रेणी में आता है और दहेज की मांग करने वालों के लिए कानून में कड़ी सजा का प्रावधान है. लेकिन, आज भी कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं जब जहां छुप-छुपाकर दहेज लिए जाते हैं. इस बीच इसे लेकर पटना हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. जिसके मुताबिक, अगर पति अपने नवजात बच्चे के पालन-पोषण के लिए पत्नी के पैतृक घर से धन की मांग करता है, तो ऐसी मांग दहेज की परिभाषा में नहीं आती है. 

हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

दरअसल, न्यायाधीश बिबेक चौधरी की एकलपीठ ने नरेश पंडित द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकृति देते हुए यह फैसला सुनाया. याचिकाकर्ता ने आइपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत दी गयी अपनी सजा को हाइकोर्ट में चुनौती दी थी. कोर्ट को बताया गया था कि, याचिकाकर्ता नरेश का विवाह सृजन देवी के साथ वर्ष 1994 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था. इस दौरान उन्हें तीन बच्चे हुए-दो लड़के और एक लड़की. पत्नी ने आरोप लगाया कि, उनकी बेटी के जन्म के तीन साल बाद याचिकाकर्ता ने लड़की की देखभाल और भरण-पोषण के लिए उसके पिता से 10,000 रुपये की मांग की. इसके साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि, मांग पूरी न होने पर पत्नी को प्रताड़ित किया गया. 

हाईकोर्ट का फैसला सुर्खियों में छाया

वहीं, मामले का अवलोकन कर न्यायालय ने पाया कि 10 हजार रुपये की मांग शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता के बीच विवाह के विचार के रूप में नहीं की गयी थी, इसलिए, आइपीसी की धारा 498ए के तहत यह ‘दहेज’ की परिभाषा के दायरे में नहीं आता है. बता दें कि, हाईकोर्ट में पति नरेश पंडित के वकील ने दलील दी कि, पति और परिवार के दूसरे आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ पत्नी की ओर से लगाए गए आरोप सामान्य और सर्वव्यापी प्रकृति के हैं और इसलिए उनकी सजा का आदेश रद्द किया जाना चाहिए. हाइकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा के फैसले और आदेश को रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि, यदि पति अपने नवजात बच्चे के पालन-पोषण और भरण-पोषण के लिए पत्नी के पैतृक घर से पैसे की मांग करता है, तो ऐसी मांग दहेज निषेध अधिनियम-1961 के अनुसार दहेज की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है. इस तरह पटना हाईकोर्ट का यह बड़ा फैसला पूरी तरह से चर्चे में बना हुआ है.

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