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बिहार के इस जिले में फूल-माला से बनाई जाती है माता की प्रतिमा, मंदिर में धुएं का है खास महत्व, जानें इतिहास

नवरात्र में विशेष पूजा पद्धति के लिए चर्चित बेगूसराय जिले के चेरियाबरियारपुर प्रखंड अंतर्गत बिक्रमपुर गांव माता के भक्तिरस में पूरी तरह सराबोर है. यहां नवरात्र में प्रतिदिन मां की आकृति बनाने के लिए फूल-बेलपत्र इकट्ठा करने में गांव वालों का उत्साह देखते ही बनता है. मां की आकृति के साथ वैदिक रीति से होने वाली पूजा को देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं. पहली पूजा से नवमी पूजा तक पूरे गांव की आस्था मंदिर परिसर में देखते ही बनती है.

क्या है इतिहास ?

लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व जयमंगलागढ में बलि को लेकर पहसारा और बिक्रमपुर गांव के लोगों में ठन गई थी. दोनों एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए थे. तभी नवरात्र के समय बिक्रमपुर गांव के स्व. सरयुग सिंह के स्वप्न में मां जयमंगला आईं और बोली कि, नवरात्र की पहली पूजा से लेकर नवमी पूजा में बलि प्रदान तक मैं बिक्रमपुर गांव में ही रहूंगी. इसके पश्चात मैं गढ़ को लौट जाऊंगी. देवी ने स्वप्न में ही पूजा की विधि भी बताई. देवी ने ही श्रद्धालुओं के हाथों से फूल बेलपत्र को तोड़कर आकृति बनाकर पूजा करने और धूप व गुगुल से पूजा करने का स्वप्न दिया. उसी समय से यहां पर विशेष पद्धति से पूजा प्रारंभ हुई. आज भी उनके वंशज पूजा करते आ रहे हैं. इसकी वजह से इस गांव की आस्था माता जयमंगला पर बनी हुई है. आज भी इस गांव के लोग कोई शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले जयमंगलागढ जाकर मंदिर में माथा टेकते हैं.

बलि देने के बाद पूरी होती है पूजा 

कलश स्थापन के दिन स्व. सिंह के सभी वंशज मिलकर मंदिर में कलश की स्थापना कर प्रतिदिन अपने हाथों से तोड़े गए फूल-बेलपत्र से आकृति बनाकर पूजा करते हैं. कालांतर में परिवार का विस्तार होने पर पहली पूजा तीन खुट्टी खानदान के चंदेश्वर सिंह व उनके परिजन करते हैं. वहीं, दूसरी पूजा पंचखुट्टी के सुशील सिंह वगैरह के द्वारा की जाती है. शेष दिनों की सभी पूजा नौ खुट्टी के वंशज राजेश्वर सिंह, परमानंद सिंह, कृत्यानंद सिंह, मोहन सिंह, नीरज सिंह पुष्कर सिंह, विश्वनाथ सिंह वगैरह करते आ रहे हैं. अंत में नवमी पूजा के दिन स्व. सिंह के सभी वंशजों की उपस्थिति में बलि प्रदान किये जाने के साथ ही पूजा पूर्ण हो जाती है.

मंदिर में धुएं का महत्व

ग्रामीणों की माने तो संध्या के समय मां की आकृति पूर्ण होने के साथ ही मंदिर में पूरे रात धूप-गुगुल व अगरबत्ती जलाई जाती है. मंदिर से निकलने वाला धुआं जहां तक फैलता है, वहां तक सुख-समृद्धि बरसती है. इसलिए मंदिर में धुएं की व्यवस्था होती है.

बेगूसराय से राजीव कुमार झा की रिपोर्ट 

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