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सरकारी दावे की हकीकत बयां कर रहा दरभंगा का एक स्कूल..

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Darbhanga- सरकारी दावे के बीच हम आपको  एक ऐसे स्कूल के बारे में बता रहे हैं,जिसके पास न भवन है, न शौचालय, न बाउंड्री वॉल, न बैठने की व्यवस्था, न बिजली की व्यवस्था। बच्चे गर्मी और बरसात में जैसे तैसे बैठे रहते है।

 ये स्कूल जैसे तैसे एक झोपड़ी में संचालित होता है। बच्चे भी मिट्टी पर बोरा बिछा कर पढ़ाई करते है। जो बरसात में जमीन भीग जाने से मुस्किल हो जाता है। स्कूल पोखर के किनारे अवस्थित है। स्कूल पोखर के ठीक किनारे अवास्थति होने के कारण बच्चो के साथ अनहोनी या अन्य घटना का डर बना रहता है। बच्चो के लिए मध्यान भोजन भी एक खटाल जैसे बने झोपड़ी में बनता है। शौचालय के अभाव में बच्चो साथ ही शिक्षक, शिक्षिकाओं को खुले में शौच के लिए जाना होता है.

यह कहानी है दरभंगा जिला के बिरौल अनुमंडल क्षेत्र में स्थित प्राथमिक विद्यालय मल्लाहटोल बेंक की, इस विद्यालय में कुल 152 बच्चे नामांकित है। जिसमे कुल 65 छात्र और 87 छात्राए है। लगभग 100 से अधिक बच्चे रोजाना उपस्थित होते है। जिन्हे कुल पांच शिक्षक में 3 शिक्षक नियोजन से और 2 शिक्षिक बीपीएससी से है। जिसमे से एक शिक्षक और एक शिक्षिका बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित शिक्षक भर्ती परीक्षा से चयनित होकर आई है। इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 2006 के दिसंबर महीने में हुई थी। जिसके बाद 5 साल यानी 2011 तक एक निजी दरवाजे पर स्कूल संचालित होता रहा। वर्ष 2011 में भूमि मिल जाने के बाद उसे इस जगह पर शिप्ट कर दिया गया। लेकिन आज तक भवन निर्माण नही होने से विद्यालय की यह दुर्दशा बनी हुई है। 

इस सब के पीछे विद्यालय के एचएम कहते है कि भवन निर्माण की प्रक्रिया पूरी है लेकिन राशि ही नही मिली है। चौथी वर्ग की छात्रा मनतसा प्रवीन बताती है कि कठिनाइयां तो यहां बहुत है। ना यहां शौचालय है। जिसकी वजह से हम लोगों को शौच के लिए घर जाना पड़ता है। और बारिश होने की स्थिति में क्लास रूम तक में पानी चला जाता है। और हम लोगों को काफी कठिनाइया होती है। खेल के लिए मैदान भी नहीं है। खेलते वक्त आगे के पोखर में डूबने का डर बना रहता है। वही पांचवी क्लास के छात्र प्रिंस कुमार बताते हैं कि घर से आने में मिट्टी होने की वजह से बारिश में गिर जाते हैं पोखर में डूबने का डर रहता है क्लास रूम में पानी टपकता है। आगे बताते हैं कि ना यहां बिजली की व्यवस्था है नहीं शौचालय की। पांचवी के छात्रा स्वाति कुमारी भी बताती है कि खेलने शौचालय और क्लासरूम में बैठने तक में काफी कठिनाई का सामना हम लोगों को करना पड़ता है।

 बीपीएससी से चयनित शिक्षक रूबी यादव बताती है कि जब यहां आए तब यहां देखा कि भवन नहीं है और सबसे बड़ी समस्या यहां शौचालय को लेकर होती है। यहां मैं बच्चों को साथ कर शौचालय के लिए बच्चों के घर जाना पड़ता है। शौचालय के लिए जाने में मर्द वगैरह रहते हैं जिससे हमको काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। बारिश में काफी परेशानी होती है बच्चों के बैठने तक के लिए जगह नहीं रहती है और उनके खेलने की एक्टिविटी में भी कठिनाइयां होती है हम लोगों को डर रहता है कि कहीं वह डूब ना जाए। छोटे-छोटे बच्चे यहां पढ़ते हैं जिसकी वजह से पढ़ने से ज्यादा बच्चों पर ध्यान देना पड़ता है।

 विद्यालय के एचएम अब्दुल हन्नान अंसारी ने बताया कि विद्यालय के बगल में पोखर है, जो सालों भर पानी से भरा रहता है। पढ़ाई से ज्यादा हम लोगों को बच्चों पर ध्यान देना पड़ता है कि कहीं बच्चा पोखर में ना चला जाए। भवन निर्माण को लेकर जेई को कागज उपलब्ध करा दिया गया है। लेकिन अभी तक यह विद्यालय भवनहीन ही है। विद्यालय में शौचालय की भी कमी है। बच्चों और शिक्षकों को इसके लिए बाहर जाना होता है। चार-पांच साल पहले भवन निर्माण का एग्रीमेंट हो चुका है। लेकिन अभी तक निर्माण की राशि नहीं मिली है। आगे उन्होंने बताया कि भवन नहीं होने के कारण बरसात में बच्चों को भीग कर बैठना पड़ता है। शिक्षकों को भी जैसे तैसे पढ़ाना पड़ता है। विद्यालय में कोई सुरक्षा दिवाल भी नहीं है। कई बार जनप्रतिनिधि को भी कहा गया है। लेकिन इस पर कोई पहल नहीं हुई है।

 इस बाबत बिरौल प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी कृष्ण कुमार से पूछने पर उन्होंने बताया कि समस्याओं को लेकर फिर से इस वर्ष विभाग को फिर से लिखा जाएगा। जमीन उपलब्ध है। भवन का निर्माण कराया जाएगा और सभी समस्याओं का निदान भी होगा।

 दरभंगा से तुलसी झा की रिपोर्ट 

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