लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन करके सियासी समीकरण साधने की कोशिश की है. मिशन-2024 के मद्देनजर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने बुधवार को 98 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के जरिए सीएम नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग को अमलीजामा पहनाने की कवायद की है. पिछड़े, अतिपिछड़े, मुस्लिम और दलित समुदाय को खास तवज्जो दी गई है, लेकिन राज्यसभा में उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह को जेडीयू कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हरिवंश को जेडीयू में किनारे तो नहीं लगाया जा रहा?
जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी
जेडीयू ने इसी साल मार्च में 32 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन किया था. अब पांच महीने के बाद दोबारा से बुधवार को जेडीयू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी को बढ़ाकर 98 सदस्यीय कर दी है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सूची में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सर्वोच्च स्थान पर रखा है. मंगनीलाल मंडल को जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डॉक्टर आलोक कुमार सुमन को कोषाध्यक्ष नियुक्त किया है तो केसी त्यागी को पार्टी के सलाहकार और मुख्य प्रवक्ता बनाया गया है. इसके अलावा ललन सिंह ने जेडीयू में 22 महासचिव, 7 सचिव, 26 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, 10 पदेन सदस्य और बाकी राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष को जगह दी गई है.
जेडीयू में हरिवंश लगे किनारे
जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह को छोड़कर पार्टी के बाकी लोकसभा और राज्यसभा सदस्यों को शामिल किया गया है. लोकसभा में जेडीयू के 16 सदस्य और राज्यसभा में 5 सदस्य हैं. इस तरह 21 सांसदों में से 20 को रखा गया है. यही नहीं बिहार में नीतीश कुमार के कैबिनेट में शामिल जेडीयू कोटे के सभी मंत्रियों को भी पार्टी कार्यकारिणी में रखा गया है. ऐसे में हरिवंश नारायण सिंह को जगह नहीं मिलने से सवाल उठने लगा है कि आखिर क्या वजह है कि उन्हें स्थान नहीं दिया गया?
नई संसद के उद्घाटन के समय जेडीयू ने अपने सभी सांसदों को समारोह का बहिष्कार करने के लिए आदेश दिया था. इसके बावजूद भी हरिवंश सिंह उसमें शामिल हुए थे, जिसे लेकर जेडीयू के कई बड़े नेताओं ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी. हरिवंश पर बीजेपी के लिए काम करने का आरोप लगाया गया था. ललन सिंह ने कहा था कि हरिवंश नारायण सिंह भूल गए हैं कि उन्हें राज्यसभा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भेजा है. इसके बाद हरिवंश ने जुलाई में नीतीश कुमार से मुलाकात की थी, जिसके बाद माना गया कि अब उनके बीच सब कुछ ठीक हो गया.
हालांकि, दिल्ली से जुड़े बिल के दौरान हरिवंश सिंह चेयर पर बैठे होने के चलते वोटिंग में हिस्सा नहीं ले सके थे जबकि पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने तो बकायदा व्हिप जारी कर रखा था कि बिल के विरोध में वोटिंग करना है. हरिवंश का बीजेपी की तरफ बढ़ते झुकाव को देखते हुए जेडीयू ने अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली है जबकि पार्टी के बाकी तमाम नेताओं को जगह दी गई है. इसके चलते माना जा रहा है कि हरिवंश को जेडीयू ने किनारे लगा दिया है.
यूपी और नॉर्थ ईस्ट पर फोकस
जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बिहार के बाद सबसे ज्यादा जगह यूपी के नेताओं को मिली है. केसी त्यागी को सलाहकार और प्रवक्ता के तौर पर रखा गया है तो जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह को राष्ट्रीय महासचिव और सत्येंद्र पटेल को जेडीयू के यूपी अध्यक्ष के तौर पर शामिल किया है. जेडीयू यूपी में अपना विस्तार करना चाहती है, जिसे देखते हुए यूपी के नेताओं को खास तवज्जे दे रही है. इसके अलावा नार्थ ईस्ट पर जेडीयू की नजर है, क्योंकि पार्टी का वहां पर अपना सियासी ग्राफ है. मणिपुर और नागालैंड के विधायक और असम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय की राज्य इकाइयों के प्रमुख शामिल हैं. नॉर्थ ईस्ट में जेडीयू के 7 विधायक को बीजेपी ने अपने साथ मिला लिया था, जिसके बाद ललन सिंह ने अपना खास फोकस पूर्वोत्तर के राज्यों पर किया है.
जेडीयू की सोशल इंजीनियरिंग
ललन सिंह ने कार्यकारिणी में जेडीयू के कोर वोटबैंक का पूरा ख्याल रखा है. ओबीसी और मुस्लिम को सबसे ज्यादा जगह दी गई है. ललन सिंह की राष्ट्रीय टीम में आधे से ज्यादा पद ओबीसी और अति पछड़े समुदाय से आने वाले नेताओं को दिया गया है. जेडीयू संगठन में 11 मुस्लिमों को जगह मिली है. इसी तरह से कुर्मी-कुशवाहा को खास तवज्जे देते हुए अतिपिछड़ा समुदाय की अलग-अलग जातियों के नेताओं को भी शामिल किया गया.
जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दलित और सवर्ण समुदाय का भी ख्याल रखा गया है. भूमिहार से लेकर राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ नेताओं को जगह दी गई है. भूमिहार समाज से आने वाले ललन सिंह के हाथों में पार्टी की कमान है तो केसी त्यागी प्रवक्ता और सलाहकार हैं. ब्राह्मण समुदाय आने वाले संजय झा को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है. ललन सिंह और संजय झा के बारे में माना जाता है कि दोनों ही नेता जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर हैं और नीतीश कुमार के करीबी हैं. इसके अलावा दलित समुदाय से तीन नेताओं को संगठन में रखा गया है, जिसमें दो महादलित हैं. सांसद आलोक कुमार सुमन को पार्टी कोषाध्यक्ष बनाया गया है, जो दलितों में रैदास समुदाय से आते हैं.