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झारखण्डी अधिकार मार्च, एक और उलगुलान की रणभेरी भाजपा के प्रति जन आक्रोश देखने को मिला...

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 पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत आज दिनांक 23 अगस्त 2024 को राज्य के सभी जिला मुख्यालय पर ‘‘झारखण्डी अधिकार मार्च’’ पार्टी के जिला समितियों के द्वारा सम्पन्न हुआ। भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा झारखण्ड राज्य के साथ किये जा रहे सौतेले व्यवहार के कारण झारखण्डी आवाम् ने ‘‘झारखण्डी अधिकार मार्च’’ में स्वतः भाग लिया तथा केन्द्र सरकार के कथनी और करनी में अन्तर भी बताया। भाजपा के द्वारा चुनावी सभाओं में दो करोड़ रोजगार प्रति वर्ष तथा पन्द्रह लाख रूपये प्रति व्यक्ति के खाते में देने की बात भाजपा सरकार के प्रथम कार्यकाल से ही कही जा रही है, जो अब तक वास्तविकता से काफी दूर है। आम जन-मानस भाजपा के लोक-लुभावन घाषणाओं के चक्कर में अब तक फसता रहा है।

 भाजपा के घोषणाओं के विपरित उसकी झारखण्ड विरोधी मानसिकता या यूँ कहें कि आदिवासी-मूलवासी विरोधी मानसिकता केन्द्र सरकार के द्वारा झारखण्ड सरकार के लिए गए निर्णय को टालने अथवा दबा कर रखने से समझी जा सकती है। श्री हेमन्त सोरेन के नेतृत्व वाली झारखण्ड सरकार के द्वारा विधानसभा से पारित किये गए सरना धर्म कोड का मामला हो, 1932 आधारित स्थानियता का मामला हो अथवा एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. के आरक्षण से संबंधित मामला हो,  झारखण्डियों के हित के ज्वलंत विषयों को भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा लटका कर रखा गया या कानूनी दांव-पेंच में उलझा कर रखा गया। झारखण्डी हितों को ध्यान में रख कर बनायी गई झारखण्ड की नियोजन नीति को रद्द करवाने वाली भाजपा भारत के सरकारी सम्पत्तियों को बेचकर अपने कार्रपोरेट मित्रों को अथाह लाभ पहुँचाने का कार्य कर रही है। भारतीय उद्यमों को निजीकरण के आग में झोंक कर आरक्षण की बली चढाई जा रही है। केन्द्र सरकार पर झारखण्ड का बकाया एक लाख छत्तीस हजार करोड़ रूपये की राशी को रोक कर चुनाव संभावित तथा भाजपा शासीत राज्यों को अनुदान देना झारखण्ड के हितों की बली देना तथा झारखण्ड के साथ केन्द्र सरकार के सौतेले रवैये का प्रमाण है।

 

 झारखण्डी अधिकार मार्च के जरिए भाजपा और केंद्र सरकार की अकर्मण्यता और झारखण्ड के प्रति सौतेले व्यवहार के प्रति पूरे राज्य में जन आक्रोश देखने को मिला है। पूरे राज्य में हजारों लोगों ने सड़कों पर आकर भाजपा और केंद्र सरकार की भेदभाव की राजनीति का भंडाफोड़ किया। कैसे राज्य गठन के बाद से भाजपा सबसे अधिक समय तक सत्ता में कायम रह झारखण्ड को दीमक की तरह चाट कर खोखला करती रही। कैसे आदिवासी-मूलवासी को उनका हक एवं अधिकार देने की बात कह वह वर्षों तक सत्ता का सुख भोग करती रही। और वर्तमान में एक बार फिर भाजपा हिंदू-मुस्लिम, अगड़ा-पिछड़ा, आदिवासी-गैर-आदिवासी के नाम पर ओछी राजनीति कर राज्य को बांटने का षड्यंत्र रच रही है ताकि झारखण्डी हित में निर्णय ले रही हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन सरकार को काम नहीं करने दिया जाए।

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