बिहार में पकडुआ विवाह से जुड़े मामले आपने कई बार सुना होगा और यहां तक देखा भी होगा. जबरदस्ती लड़का-लड़की की शादी करा दी जाती है और इसे वैद्य बताकर उन्हें एकसाथ रहने पर मजबूर किया जाता है. लेकिन, अब से ऐसा नहीं होने वाला है. दरअसल, पकडुआ विवाह को लेकर पटना हाईकोर्ट की ओर से अहम और बड़ा फैसला सुनाया गया है. पटना हाईकोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि, मांग में सिर्फ सिंदूर लगा देने का मतलब शादी नहीं होता है. किसी भी महिला के माथे पर सिंदूर लगाना या लगवाना हिंदू कानून के मुताबिक शादी नहीं माना जायेगा. पटना हाईकोर्ट ने इसे लेकर विस्तृत रूप से टिप्पणी की है.
पकडुआ विवाह का मामला कोर्ट पहुंचा
बता दें कि, इस मामले में न्यायमूर्ति पीबी बजंथरी और अरुण कुमार झा की खंडपीठ ने फैसला सुनाया है. दरअसल, पकडुआ विवाह का एक मामला कोर्ट में पहुंचा था. मामले में अपीलकर्ता का उसके चाचा के साथ 30 जून 2013 को अपहरण कर लिया गया था, जब वो लखीसराय के एक मंदिर में प्रार्थना करने गए थे. उस दिन बाद में, रविकांत को प्रतिवादी से शादी करने के लिए मजबूर किया गया था. रवि के चाचा ने जिला पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, जिसने कथित तौर पर उनकी सुनवाई नहीं की. इसके बाद, रवि ने लखीसराय में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष एक आपराधिक शिकायत दर्ज की.
'सप्तपदी' अधूरी रही तो पूर्ण नहीं माना जायेगा विवाह
उन्होंने शादी को रद्द करने के लिए फैमिली कोर्ट का भी रुख किया, जिसने 27 जनवरी, 2020 को उनकी याचिका खारिज कर दी. दायर किये गए अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि, फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण थे और आश्चर्य व्यक्त किया कि जिस पुजारी ने प्रतिवादी की ओर से सबूत दिया था, न तो उन्हें 'सप्तपदी' के बारे में कोई जानकारी थी और न ही उन्हें वह स्थान याद था, जहां विवाह संस्कार किया गया था. इस मामले को लेकर पटना हाईकोर्ट ने कहा कि, हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जब सातवां कदम यानी कि दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के चारों ओर उठाया जाता है तो विवाह पूर्ण और बाध्यकारी हो जाता है. इसके ठीक उलट अगर 'सप्तपदी' पूरी नहीं हुई है, तो विवाह पूरा नहीं माना जाएगा.