झारखंड के करमा पूजा का विशेष महत्व है. इस पर्व को राज्य में धूमधाम से मनाया जाता है. इस पूजा में भाइयों की अहम भूमिका होती है. बता दें कि, यह पर्व भाद्र मास के एकादशी तिथि को मनाया जाता है. लोक परंपरा की माने तो, भादो माह जब प्रवेश करता है तो करमा पर्व का माहौल बन जाता है. कुंवारी लड़कियां तो घर पर रहकर करमा का पर्व बड़े आनंद के साथ मनाती हैं, लेकिन, इस बीच नवविवाहिताओं को विशेष तौर पर अपने नैहर की याद आने लगती है. इसर दौरान उन्हें आस होती है कि अब उनके भाई या पिता लेने के लिए अवश्य आयेंगे. बता दें कि, इसे लेकर कई लोकगीत भी झारखंड में प्रचलित हैं.
7 या 9 दिन पहले से ही दिखने लगती है करमा की धूम
बता दें कि, युवतियां उन गीतों को गाते हुए पारंपरिक नृत्य करती हैं जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाता है. वहीं, करमा की धूम 7 या 9 दिन पहले से ही दिखनी शुरू हो जारी है. युवतियां अपने-अपने घर के आंगन में जावा या करम डाली को करम देवता के रूप में पूजती हैं और अंत में जावा डाली को विसर्जन करती हैं. इस करमा गीत में युवतियां एक सप्ताह तक चलने वाले उल्लास का जिक्र करती हैं. इस दौरान वे करम देवता से अपने भाई और पिता की लंबी उम्र की कामना करती हैं. इसके साथ ही अगले साल वे फिर से करम देव को वापस लेकर आयेंगी यानि कि फिर से उनकी पूजा करेंगीं.
इंज मेले का होता है आयोजन
एक परंपरा यह भी है कि, करम को विसर्जित करने के बाद इंज मेले का आयोजन होता है. इंज का मतलब होता है स्वीकार करना. विर्सजन के दूसरे दिन ही इस मेले का आयोजन होता है. ये एक तरह का मिलन समारोह होता है. जिन गांवों में जावा नहीं उठाया जाता है उन्हें संगी गांव के लोग जावा फूल से उन लोगों का स्वागत करते हैं. जैसा कि, जावा फूल को हम आदिवासी सृष्टि का प्रतीक मानते हैं. स्वागत के बाद जावा फूल के पुरूष वर्ग के लोग अपने कान में और स्त्रियां अपने कानों में लगाती हैं.