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खप्पड़ यात्रा में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने लिया भाग, मां शीतला की डाली को खप्पड़ में...

खप्पड़ यात्रा में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। भीषण बारिश भी भक्तों की आस्था को नहीं डिगा सकी और मां शीतला के जयकारों से पटना और फुलवारी शरीफ की गलियां गूंज उठीं।

Khapper yatra mei laakhon ki sankhya mei shraddhaluo ne liya
खप्पड़ यात्रा में श्रद्धालुओं ने लिया भाग- फोटो : Darsh News

Patna : राजधानी पटना में रविवार को निकली खप्पड़ यात्रा में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। भीषण बारिश भी भक्तों की आस्था को नहीं डिगा सकी और मां शीतला के जयकारों से पटना और फुलवारी शरीफ की गलियां गूंज उठीं। खप्पड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं ने मां शीतला की डाली को खप्पड़ में आग जलाकर पूरे नगर का भ्रमण कराया। इस दौरान भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिला। आयोजकों ने इस यात्रा को "आस्था की सुनामी" करार दिया, क्योंकि इसमें जनसैलाब उमड़ पड़ा और एक बार फिर इतिहास दोहराया गया। यह पूजा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखती है। मान्यता है कि 207 साल पहले फुलवारी क्षेत्र में महामारी फैली थी। तब गांव के लोगों ने मां शीतला की पूजा की थी और महामारी समाप्त हो गई थी। तभी से हर साल यह खप्पड़ पूजा आयोजित होती आ रही है। कोरोना काल में भी यह आस्था का केंद्र बनी रही, और इस वर्ष भी लोगों ने स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि की कामना के साथ भाग लिया।

भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था के विशेष इंतजाम किए थे। करीब 500 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी, वहीं कई थाना प्रभारी, डीएसपी और खुद सिटी एसपी पश्चिमी भानु प्रताप इस ऐतिहासिक पूजा की निगरानी करते रहे। यातायात नियंत्रण और भीड़ प्रबंधन के लिए विशेष दल भी लगाए गए थे।

खप्पड़ पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि यह पूजा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत है, जिसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना हम सभी का कर्तव्य है।

कार्यक्रम में शामिल हुए पाटलिपुत्र के पूर्व सांसद रामकृपाल यादव ने कहा, "मैं वर्षों से इस पूजा में शामिल होता आ रहा हूं। यहां की मान्यता और मंदिर की कहानी विशेष है। जब महामारी फैली थी, तब मां शीतला की अराधना से लोग सुरक्षित हुए। तभी से यह परंपरा लगातार जारी है।"

इस आयोजन ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि जब बात श्रद्धा और परंपरा की होती है, तो मौसम, बाधाएं और समय भी श्रद्धालुओं के उत्साह को नहीं रोक सकते।



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