बिहार शिक्षा विभाग इन दिनों सुर्खियों में है. एक ओर विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक हर रोज कड़े फैसले ले रहे हैं तो दूसरी तरफ विभाग के मंत्री भगवान राम और रामचरितमानस को लेकर विवादास्पद बयान दे रहे हैं. इन सबके बीच शिक्षा विभाग में बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है. केके पाठक की सख्ती के बाद प्रदेश के कई स्कूलों से फर्जी नामांकन का खेल सामने आया है. इसमें पश्चिम चंपारण अव्वल है.
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने अपने फैसले से जहां शिक्षा माफियाओं पर शिकंजा कसा है, वहीं कई तरह की गड़बड़ियां भी सामने आ रही हैं. बिहार सरकार की वेलफेयर स्कीम में करोड़ों का घोटाला सामने आया है. दरअसल शिक्षा विभाग के नए आदेश से अब लगातार 15 दिन तक विद्यालय से अनुपस्थित रहने वाले छात्रों का नामांकन रद्द किया जा रहा है और इसी कड़ी में एक बड़े स्कैम का खुलासा हुआ है.
तो क्या 1,41000 बच्चों का नामांकन था फर्जी?
दरअसल शिक्षा विभाग में छात्रों के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं. इसमें साइकिल योजना, पोशाक योजना, छात्रवृत्ति योजना और पठन पाठन सामग्री योजना प्रमुख हैं. हर साल औसतन एक बच्चे को ₹3500 विभिन्न योजनाओं के तहत सरकार की तरफ से दिए जाते हैं. अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने जब सख्ती बरती तो बिहार के सरकारी स्कूलों से 1,41000 बच्चे गायब पाए गए. उनके नामांकन को भी रद्द कर दिया गया.
हर साल 49 लाख 35 हजार रुपए का बंदरबांट!
इस हिसाब से विभिन्न योजनाओं में इन बच्चों को हर साल 49 लाख 35 हजार रुपए दिए जा रहे थे और इस राशि का बंदरबांट किया जा रहा था. आपको बता दें कि सरकारी विद्यालयों में बड़े पैमाने पर ऐसे बच्चों का भी नामांकन कराया जाता है जो निजी विद्यालय में पढ़ रहे होते हैं और उनके नाम पर राशि की निकासी की जाती है. 15 दिनों तक लगातार बिना सूचना के स्कूल से गैरहाजिर होने के चलते 141000 से ज्यादा बच्चे गायब पाए गए है.
पश्चिम चंपारण का नाम सबसे ऊपर
इसी कड़ी में पश्चिम चंपारण जिले में 15 सितंबर तक कुल 10946 छात्रों का नाम विद्यालय से काटकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया है. छात्रों का नामांकन रद्द करने में पश्चिम चंपारण जिला पूरे बिहार में अव्वल है. विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक ने सभी जिलों को निर्देश दिया था कि जो बच्चे लगातार 15 दिन अनुपस्थित होते है उनका नामांकन रद्द किया जाए. साथ ही कोई छात्र 3 दिन लगातार अनुपस्थित है तो उसे प्रधानाध्यापक द्वारा नोटिस दिया जाएगा और हर छात्र की ट्रैकिंग की जायेगी.
15 दिन तक स्कूल नहीं वाले बच्चों के नाम काटे गए
माना जा रहा है कि एक साथ सरकारी और निजी विद्यालय में नाम रहने के कारण बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ने नहीं आ पाते हैं. साथ ही पोशाक, छात्रवृत्ति और साइकिल सहित अन्य विभागीय योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी अभिभावक अपने बच्चों का नाम सरकारी विद्यालयों में लिखवा देते हैं, जो वास्तव में निजी विद्यालय में पढ़ाई कर रहे होते हैं.
नरकटियागंज प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय तरहरवा के प्रधानाचार्य सुनील कुमार शर्मा ने बताया कि विभाग द्वारा निर्देश दिया गया है कि जो बच्चे 15 दिन तक लगातार स्कूल नहीं आ रहे हैं उनका नामांकन रद्द किया जाए. "हम लोग लगातार छात्रों के अभिभावक से संपर्क कर रहे हैं. उन्हें जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि बच्चों की उपस्थिति स्कूल में बनी रहे. उसके बावजूद अगर अभिभावक नहीं समझ पा रहे हैं तो विभाग के आदेशानुसार उनका नामांकन रद्द करना पड़ रहा है."
अब तक हुई कार्रवाई
विभाग के आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा बच्चों का नामांकन पश्चिम चंपारण में रद्द हुआ है. कल 10946 छात्र-छात्राओं का नाम काटा गया. दूसरे स्थान पर अररिया जिला रहा, जहां 10448 बच्चों का नाम काटा गया. नालंदा जिले में 1074 बच्चों का नाम काटा गया. मुजफ्फरपुर में 7658, बांका में 7646, मधेपुरा में 7443, पूर्णिया में 6996 बच्चों का नाम काटा गया है.
प्रदेश में एक लाख से अधिक छात्रों का नाम स्कूलों से रद्द
दरअसल शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के आदेश के बाद विभाग ने कार्रवाई शुरू की तो बड़े स्कैम की ओर शक की सुई घूमी. एक से अधिक जगहों पर छात्रों का नामांकन और नामांकन डुप्लीकेसी की परंपरा को समाप्त करने के लिए केके पाठक ने यह कदम उठाया है.