बिहार के महागठबंधन में खेला शुरू हो गया है. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने केंद्र सरकार के महिला आरक्षण बिल का बिना शर्त समर्थन देने का एलान कर दिया है. पार्टी ने कहा है कि वह संसद में इस विधेयक का समर्थन करेगी. वहीं लालू प्रसाद यादव शुरू से ही महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करते रहे हैं. बता दें कि सोमवार की शाम मोदी कैबिनेट की बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे दी गयी है. वैसे सरकार ने जब से संसद का पांच दिवसीय विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की थी, उस समय से ही ये चर्चा हो रही थी कि इस सत्र में महिला आरक्षण विधेयक को लाया जा सकता है.
जेडीयू का खुला समर्थन का एलान
लेकिन महिला आरक्षण विधेयक पर सबसे बड़ी खबर बिहार से आई है. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने संसद में महिला आरक्षण विधेयक के समर्थन का एलान कर दिया है. जेडीयू के राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी संसद में महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करेगी. ये पूछे जाने पर कि क्या उनकी पार्टी कोटे के भीतर कोटा यानि पिछड़ी जाति के महिलाओं के लिए भी सीट रिजर्व करने की मांग करेगी? केसी त्यागी ने कहा कि पार्टी की जो भी मांग होगी वह संसद में रखी जाएगी. लेकिन महिलाओं को आरक्षण का विधेयक जिस भी प्रारूप में आ रहा है, उसका समर्थन किया जाएगा.
राजद को करारा झटका
महिला आरक्षण बिल को समर्थन देने वाले जेडीयू के एलान से सबसे करारा झटका लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी राजद को लगा होगा. लालू प्रसाद यादव औऱ उनकी पार्टी महिला आरक्षण बिल का शुरू से ही विरोध करते रहे हैं. बताते चलें कि कैसे राजद से लेकर समाजवादी पार्टी जैसे दलों के कारण 27 सालों से महिला आरक्षण बिल लटका हुआ था.
सबसे पहली बार महिला आरक्षण बिल को एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 12 सितंबर 1996 को पेश करने की कोशिश की. लेकिन इसके तुरंत बाद देवगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गई. देवगौड़ा सरकार को समर्थन दे रहे लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव खुलकर महिला आरक्षण बिल के विरोध में थे.
शरद यादव ने कहा था कि वे संसद में जहर खा लेंगे लेकिन बिल पास नहीं होने देंगे
जून 1997 में फिर इस विधेयक को पारित कराने का प्रयास हुआ. उस समय शरद यादव ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा था, ''परकटी महिलाएं हमारी महिलाओं के बारे में क्या समझेंगी और वो क्या सोचेंगी.'' शरद यादव ने कहा था कि वे संसद में जहर खा लेंगे लेकिन बिल को पास नहीं होने देंगे.
1998 में 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए की सरकार ने भी महिला आरक्षण बिल को पेश करने की कोशिश की. लेकिन राजद और सपा जैसी पार्टियों के कारण सफलता नहीं मिली. वाजपेयी सरकार ने 13वीं लोकसभा में 1999 में दोबारा महिला आरक्षण बिल को संसद में पेश करने की कोशिश की. लेकिन राजद, सपा जैसी पार्टियों ने फिर से पूरजोर विरोध किया. वाजपेयी सरकार ने 2003 में एक बार फिर महिला आरक्षण बिल पेश करने की कोशिश की. लेकिन प्रश्नकाल में ही जमकर हंगामा हुआ और बिल पारित नहीं हो पाया.
लालू ने दी थी यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी
मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र में बनी यूपीए सरकार ने 2010 में महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में पेश किया. लेकिन सपा-राजद ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी. इसके बाद बिल पर मतदान स्थगित कर दिया गया था. बाद में नौ मार्च 2010 को राज्यसभा ने महिला आरक्षण बिल को पारित किया. लेकिन उससे पहले मार्शल्स के सहारे राजद, सपा जैसी पार्टियों के सांसदों को सदन से बाहर निकालना पड़ा था. लालू, मुलायम जैसे नेताओं से डरी तत्कालीन यूपीए सरकार ने बिल को लोकसभा से पारित कराने के बजाय उसे स्टैंडिंग कमेटी में भेज दिया.
क्या है महिला आरक्षण बिल?
अगर महिला आरक्षण बिल पारित हो जाता है तो संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई यानी 33 फीसदी सीटें आरक्षित हो जाएंगी. महिला आरक्षण विधेयक के अनुसार, संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों को आरक्षित हो जाएंगी. इस बिल के मुताबिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें एससी-एसटी समुदाय से आने वाली महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी. -महिला आरक्षण बिल के अनुसार, महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण 15 साल के लिए ही होगा.