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'ऐ गाय चराने वालों, सूअर चराने वालों....' फिर लालू स्टाइल देखने को तैयार बिहार?

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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का हर अंदाज बेहद खास होता है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव 2024 की जंग से पहले वो फिर से एक्टिव दिख रहे. वो कभी पटना के मरीन ड्राइव घूमने पहुंच जा रहे तो कभी अपने गृह जिले का दौरा कर रहे. आरजेडी सुप्रीमो को करीबी ये जानते हैं कि वो यूं ही ऐसा नहीं कर रहे.

आरजेपी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव अब अपने पुराने रंग में आ चुके हैं. यह दिखने में भले मनोरंजक सा लगता है पर उनकी इन हरकतों में राजनीति के काफी गहरे रंग होते हैं. और ये ऐसे रंग होते हैं जो गरीब तबके को प्रभावित तो करते हैं बल्कि सामाजिक जीवन और उसके दायित्व के प्रति जागृत भी करते हैं. दरअसल आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की ऐसी हरकत या अजीब तरह के स्लोगन इनकी राजनीतिक ताकत भी हैं. सच मानिए तो उनके इसी अंदाज की वजह से उन्हें सामाजिक न्याय के मसीहा जैसे संबोधन से नवाजा गया.

लालू यादव जब टैंकर के साथ दलित बस्तियों में पहुंच गए

तब राजद सुप्रीमो लालू यादव पहली बार सीएम बने थे. एक दिन अहले सुबह लालू यादव पानी से भरे टैंकर के साथ पटना की लगभग सारी बस्तियों में पहुंचे. वहां वे पहुंच कर एक कुर्सी पर बैठ गए और एक-एक कर बच्चों के पहले बाल कटवाए और फिर नहला कर साफ कपड़े पहनवाए. साथ ही उनके माता-पिता से यह वचन लिया कि बच्चों को स्कूल भेजोगे. लालू प्रसाद के इस मजमे ने उन्हें दलित बच्चों का हीरो तो बना ही डाला साथ ही दलित बस्तियों पर लालू यादव की राजनीति का रंग भी चढ़ गया.

जब पटना के नाला रोड पहुंचे लालू यादव

कभी आरजेडी नेता रहे रंजन यादव के कारण लालू यादव का नाला रोड आना जाना लगा रहता था. दलित बस्तियों में लालू यादव की पैठ पहले भी थी. झुग्गी झोपड़ी में रह रहे दलित बस्ती के कुछ लोगों ने पक्के मकान की बात की. लालू यादव तुरंत तैयार हो गए और वहां पर आलीशान मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बन कर तैयार हो गया.

जब दिलीप कुमार के स्टाइल में हैट पहन कर निकल जाते

कभी-कभी लालू यादव गरीब बस्तियों में पहुंच जाते और उनके साथ ही नाश्ता करते. एक बार जाड़े के दिनों में लालू यादव ओवरकोट, पेंट शर्ट और हैट पहन कर हाथ में बगुली (एक प्रकार का डंडा) लेकर पहुंच गए. ठीक वैसे ही रंग में जो दिलीप कुमार पर फिल्माया गया था- 'साला मैं तो साहेब बन गया.' गरीब बच्चों और महिलाओं को उनका यह रूप बहुत पसंद आया.

क्या थी सोच?

दरअसल राजद सुप्रीमो लालू यादव के इस लाइफ स्टाइल से गरीब तबके में एक जबरदस्त संदेश जाता था. अचानक से छोटे-छोटे बच्चों में हसरतें पैदा होने लगती. उनमें कुछ बनने या बन सकते हैं का एक जज्बा पैदा होता था. लालू यादव की इस आदत से गरीब तबकों में संघर्ष का माद्दा विकसित हुआ. और अचानक से छोटी-छोटी बस्तियों के लड़कों में अपनी बात रखने की हिम्मत होने लगी. ये लोग एक तरह से धरातल पर लालू यादव के कैडर के रूप में एक नई शक्ति बन कर उभरे. ऐसे ही लोगों के बल पर लालू यादव ने राजनीति की धारा बदल दी.

ध्यान दीजिए 'टाइगर अभी जिंदा है'

राजनीतिक जगत के लिए यह चौंकाने बाली बात होगी कि लालू यादव अब फिर अपने पुराने रंग में आ गए हैं. यूं ही नहीं वे तफरी के लिए निकल रहे हैं. चाहे वो गंगा नदी के किनारे बने मरीन ड्राइव पर आइसक्रीम खाते तो कभी भुट्टा खाते दिख रहे हों. अब लालू प्रसाद अपनी निजी वाहन में पटना में शिवानंद तिवारी और जय प्रकाश यादव के साथ घूम रहे हों. पटना के सबसे सक्रिय और सबसे जीवंत जगह इनकम टैक्स, डाक बंगला और गांधी मैदान के आस पास घूम रहे हों तो समझ लीजिए उनकी राजनीतिक कारीगरी शुरू हो गई है.

इस राजनीतिक कारीगरी का ही एक तरीका है रथ पर सवार होकर शहर का हाल-चाल लेना. पटना के मरीन ड्राइव पर जाना. एनडीए के लिए लालू यादव का जीवंत अंदाज में निकलना एक तरह से खतरे की घंटी है. ऐसा इसलिए कि बिहार का चुनावी मैदान एक बार फिर इन नारों से पटनेवाला है, 'ऐ गाय चराने वालों, सूअर चराने वालों..'.

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