लोकसभा चुनाव में 148 दिन बचे हैं, मगर चुनाव से पहले मुद्दों को मांजा जा रहा है. इस बीच एक नया मुद्दा उछला है. ये मुद्दा है जाति का. जिसको लेकर ठाकुर और ब्राह्मण नेता आमने-सामने हैं. दरअसल 21 सितंबर को राज्यसभा में आरजेडी के सांसद मनोज झा ने ओमप्रकाश वाल्मीकि की एक कविता पढ़ी, इस कविता का नाम था ठाकुर का कुआं, मनोज झा के कविता पढ़ने के हफ्ते भर बाद अब इसे मुद्दा बना लिया गया है.
आरजेडी के ही ठाकुर नेता कह रहे हैं कि मनोज झा ब्राह्मण हैं और उन्होंने ठाकुरों का अपमान किया है. जेडीयू के नेता भी मनोज झा पर जोरदार प्रहार कर रहे हैं.
ओम प्रकाश वाल्मिकि की इस कविता को पढ़ते वक्त मनोज झा ने नहीं सोचा होगा कि बिहार के ठाकुरों की त्योरियां चढ़ जाएंगी, मूछों पर ताव, और माथे पर तनाव उभर आएगा.
मनोज झा जो खुद ब्राह्मण हैं, उन्होंने कविता पढ़ दी ठाकुरों की आलोचना वाली, इसपर बिहार के ठाकुर उबल पड़े. वैसे मनोज झा भी इस बात से अनजान नहीं थे कि उनकी बात का मतलब अलग निकाला जाएगा, और मायने ही बदल दिए जाएंगे.
अपनी ही पार्टी के निशाने पर मनोज झा
अब मनोज झा खुद अपनी ही पार्टी आरजेडी के नेताओं के निशाने पर हैं. आरजेडी विधायक चेतन आनंद ने कहा कि हम सदन में होते तो मनोज झा को ऐसा बोलने नहीं देते, वहीं धरना देते. हम ये सब बर्दाश्त नहीं करेंगे.
वहीं चेतन आनंद के पिता और पूर्व सांसद आनंद मोहन ने कहा कि झा जी ने ठाकुरों को बदनाम करने वाली कविता क्यों पढ़ी. हालांकि, नेताओं का बयान जो हो, लेकिन पार्टी के तौर पर RJD मनोज झा के साथ खड़ी है. मनोज की स्पीच को RJD के ट्विटर अकाउंट से शेयर किया गया है. इसमें लिखा है कि राज्यसभा सांसद प्रोफेसर डॉक्टर मनोज झा ने संसद के विशेष सत्र के दौरान शक्तिशाली, शानदार और जीवंत भाषण दिया.
विरोध सिर्फ RJD तक सीमित नहीं है. बीजेपी के ठाकुर विधायक भी नाराज हैं. विधायक नीरज कुमार बबलू बोले कि अगर वह विधायक की जगह राज्यसभा सांसद होते और राज्यसभा में मौजूद होते तो वहीं मनोज झा का मुंह तोड़ देते.
इतना ही नहीं जेडीयू के MLC संजय सिंह ने तो यह तक कह दिया कि क्षत्रिय गर्दन कटवा भी सकता है और काट भी सकता है इसलिए सोच समझकर बयानबाजी की जाए.
बिहार में राजपूत-ब्राह्मण की कितनी जनसंख्या
बिहार की कुल जनसंख्या में से पांच फीसदी राजपूत और पांच फीसदी ही ब्राह्मण हैं. आरा, सारण, महाराजगंज, औरंगाबाद, वैशाली और बक्सर जिले में राजपूतों की पकड़ है. वहीं गोपालगंज, बक्सर, आरा, कैमूर, दरभंगा और मधुबनी जिले ब्राह्मण बहुल हैं.
Lokniti-CSDS के सर्वे के मुताबिक, 2020 के विधानसभा चुनाव में 55 फीसदी राजपूत और 52 फीसदी ब्राह्मणों ने NDA को वोट किया है. वहीं, 9 फीसदी राजपूत और 15 फीसदी ब्राह्मणों ने महागठबंधन को वोट किया था.
बिहार में दोनों जातियों के बीच बहस के बीच ये समझना भी जरूरी है कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में इस विवाद का क्या असर हो सकता है. आंकड़ों की मानें तो दोनों ही जाति मुख्य तौर पर बीजेपी गठबंधन NDA का वोटबैंक रही हैं. लेकिन ठाकुरों का जो थोड़ा बहुत वोट RJD-JDU को मिलता रहा है, वह और कम हो सकता है.
बिहार में ब्राह्मणों का वोटिंग पैटर्न (2000-2014)
वोटिंग पैटर्न से पता चलता है कि विधानसभा चुनाव में भले ब्राह्मण वोट सबसे ज्यादा JDU को मिला लेकिन लोकसभा में बीजेपी ने यहां बाजी मार ली.
बिहार में राजपूतों का वोटिंग पैटर्न (2000-2014)
दूसरी तरफ राजपूतों के वोटबैंक की बात करें तो चुनाव चाहे विधानसभा का हो या फिर लोकसभा का, इनकी पहली पसंद बीजेपी ही रही है.
नोट: साल 2000 में JDU के वोट में समता पार्टी के वोट भी शामिल हैं
Source: CSDS
फिलहाल बिहार में मनोज झा की कविता पर ठाकुरों की तलवारें खिंच गई हैं, और जब तक 2024 के चुनाव हो नहीं जाते लगता नहीं कि ये म्यान में जाने वाली हैं. ऐसे में नुकसान और फायदा किसे होगा ये देखने वाली बात होगी.