बिहार के पश्चिम चंपारण के प्रसिद्ध मर्चा चावल को जीआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) टैग मिल गया. इसके साथ ही राज्य के जीआई टैग वाले कृषि उत्पादों की संख्या छह हो गई। इससे पहले सूची में भागलपुरी जर्दालू आम, कतरनी चावल, मगही पान, शाही लीची और मिथिला मखाना शामिल हैं. इन फसलों के स्वाद और गुणवत्ता को देखते हुए जीआई टैग में शामिल किया गया है.
बता दें कि मर्चा चावल को जीआई टैग वाले कृषि उत्पादों की सूची में शामिल करने के लिए मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह की ओर से आवेदन दिया गया था. यह पश्चिम चंपारण के मैनाटांड प्रखंड के सिंगासनी गांव में है. जिले के डीएम और डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा की ओर से भी इसके पक्ष में अनुशंसा की गई थी. वैश्विक स्तर पर मर्चा धान को पहचान मिलने के बाद किसानों के चेहरे खिल गए हैं.
इसलिए मर्चा के नाम से है लोकप्रिय
पश्चिम चंपारण के 18 में से छह प्रखंडों को ही सुगंधित मर्चा धान के उत्पादन के लिए उपयुक्त माना जाता है. हालांकि, इसका उत्पादन अन्य प्रखंडों में भी होता है, लेकिन उसकी गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं होती है. इस चावल का आकार और स्वरूप काली मिर्च जैसा होता है, इसीलिए इसे मिर्चा या मर्चा चावल कहा जाता है. अच्छी फसल हो तो एक हेक्टेयर में 20-25 कुंतल धान का उत्पादन होता है. जीआई टैग की अवधि 10 वर्षों के लिए होती है. गुणवत्ता बनी रही तो आगे भी विस्तार मिलता है.
सुगंध के लिए मशहूर है मर्चा चावल
पश्चिम चंपारण में मर्चा धान की खेती करीब एक हजार एकड़ में होती है. 500 किसान इसकी खेती करते हैं. इसकी खेती नरकटियागंज, गौनाहा, सिकटा एवं मैनाटांड़ प्रखंडों में की जा रही है. बासमती, मर्चा व आनंदी प्रभेद के धान की प्रजातियों की पहचान चंपारण की मिट्टी से जुड़ी है. इन तीनों प्रजातियों के धान बेहतर सुगंध एवं लजीज स्वाद के लिए पहचान रखता है. मर्चा धान काफी सुगंधित होता है. इसका चूड़ा काफी पसंद किया जाता है.