मध्य प्रदेश में बीजेपी ने चौंकाते हुए मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया है. ये फैसला इसलिए भी चौंकाने वाला था, क्योंकि पार्टी के तमाम बड़े नेता और खुद मोहन यादव को इसका अंदाजा नहीं था. दरअसल, सोमवार को मध्य प्रदेश के पर्यवेक्षक और हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने विधायक दल की बैठक में मोहन यादव के नाम का ऐलान किया. इसके बाद उन्होंने शिवराज सिंह चौहान से कहा कि वो सीएम पद के लिए मोहन यादव के नाम का प्रस्ताव पेश करें. दिलचस्प बात ये है कि जब ये सब हो रहा था, तब मोहन यादव आखिरी कतार में बैठे हुए थे. तभी शिवराज ने उनसे कहा, 'अरे मोहन जी, खड़े तो हो जाइए.'
इस प्रस्ताव का समर्थन करने वालों में नरेंद्र तोमर, कैलाश विजयवर्गीय राजेंद्र शुक्ला और अन्य थे. बता दें कि राजेश शुक्ला और जगदीश देवड़ा मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री होंगे. वहीं, नरेंद्र सिंह तोमर विधानसभा स्पीकर होंगे.
मोहन यादव उज्जैन दक्षिण से विधायक हैं और वह शिवराज सरकार में मंत्री थे. मोहन यादव को आरएसएस का बेहद करीबी माना जाता है. उनके नाम की घोषणा बेहद चौंकाने वाली है. एमपी के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने काफी संघर्ष के बाद राजनीति में मुकाम हासिल किया है. छात्र राजनीति से करियर की शुरुआत करने वाले मोहन यादव बीजेपी के स्थापित नेता हैं. उज्जैन संभाग के बड़े नेताओं में उनकी गिनती होती है.
मोहन यादव 2 जुलाई 2020 को शिवराज सिंह चौहान सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे. उनको उच्च शिक्षा मंत्री का कामकाज सौंपा गया था. यादव की छवि हिंदुवादी नेता की रही है. 25 मार्च 1965 को उज्जैन में जन्मे मोहन यादव ने विक्रम यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है.
हाल के 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोहन यादव ने कांग्रेस उम्मीदवार चेतन प्रेमनारायण यादव के खिलाफ 12,941 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी और उज्जैन दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से एक बार फिर विधायक चुने गए. इस जीत ने विधायक के रूप में उनका लगातार तीसरा कार्यकाल तय किया, जिसमें उन्हें 95,699 वोट मिले. उज्जैन दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र, जो मालवा उत्तर क्षेत्र का हिस्सा है और उज्जैन लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. 2003 से यह भाजपा के लिए एक गढ़ रहा है.
मनोनीत सीएम मोहन यादव ने कहा, “मैं पार्टी का एक छोटा कार्यकर्ता हूं. मैं आप सभी को, प्रदेश नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व को धन्यवाद देता हूं. आपके प्यार और समर्थन से मैं अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की कोशिश करूंगा.”
भारतीय जनता पार्टी ने हालिया विधानसभा चुनाव में राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 163 पर जीत हासिल की है. बीजेपी ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के तौर पर किसी नेता के नाम को सामने नहीं रखा था.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक विधायकों की बैठक में निवर्तमान सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मोहन यादव के नाम का प्रस्ताव रखा और फिर उस पर मुहर लग गई. तमाम राजनीतिक पंडितों को चौंकाते हुए मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने वाले उज्जैन के विधायक डॉ मोहन यादव ने प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी ने मोहन यादव को सीएम चुनकर कई हित साधने की कोशिश की है. बिहार में जातिगत सर्वे के नतीजे सामने आने के बाद से विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ और कांग्रेस पार्टी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जातियों की हिस्सेदारी का मुद्दा उठा रही है.
शिवराज सिंह चौहान ओबीसी से हैं और उनकी जगह लेने वाले मोहन यादव भी ओबीसी से ही आते हैं. जानकारों का कहना है कि उनकी नियुक्ति के जरिए बीजेपी की नजर बिहार और उत्तर प्रदेश पर भी है. जानकारों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान के लगातार सीएम रहने से सरकार के ख़िलाफ़ जो एंटी इन्क्बैंसी बनी, नया चेहरा लाकर बीजेपी उसे थामने की कोशिश में है.
इसके साथ ही आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. मोहन यादव के नाम की घोषणा के बाद उन्होंने राज्यपाल से मिलकर इस्तीफा सौंप दिया है. इसके बाद उनके भविष्य को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं. अब शिवराज सिंह चौहान क्या करेंगे. उन्हें जब इस बात का अंदेशा हो गया था कि अब वह सीएम नहीं होंगे तो कुछ दिनों पहले कहा था कि मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा. अब आलाकमान ने फैसला ले लिया है. इसके बाद उनके भविष्य को लेकर चर्चा शुरू हो गई है.
उनके इस्तीफे के बाद यह चर्चा हो रही है. शिवराज सिंह चौहान अब केंद्र की राजनीति में शिफ्ट होंगे. उन्हें केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी लोकसभा चुनाव से पहले दी जा सकती है. यह जिम्मेदारी सरकार में होगी. नरेंद्र सिंह तोमर के इस्तीफे के बाद कृषि मंत्रालय खाली है. अटकलें हैं कि शिवराज सिंह चौहान को केंद्र में नरेंद्र सिंह तोमर की जगह मिल सकती है. नरेंद्र सिंह तोमर एमपी विधानसभा के अध्यक्ष बन गए हैं. शिवराज केंद्र में मंत्री बनाए जा सकते हैं. यदि चुनाव न हो तो भी वे मोदी मंत्रीमंडल में शपथ ले सकते हैं. क्योंकि कोई भी मंत्री बनने के बाद भी 6 महीने तक अपने पद पर रह सकता है. यह भी हो सकता है कि राज्यसभा में उन्हें भेजा जा सकता है. हालांकि सवाल है कि शिवराज सिंह चौहान इसके लिए तैयार होंगे या नहीं.
हालांकि यह भी अटकलें हैं कि उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाकर राजनीतिक पारी को विराम दिया जा सकता है. वहीं, इसके लिए शिवराज सिंह चौहान तैयार होंगे. यह मुश्किल है. शिवराज सिंह चौहान नतीजों के बाद से ही मध्य प्रदेश में एक्टिव हो गए हैं. वह लगातार मिशन-24 के लिए जुट गए हैं. उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा है कि मैं मध्य प्रदेश को नहीं छोड़ रहा हूं. मध्य प्रदेश से आगामी विधानसभा चुनाव में 29-29 सीटें जीतकर मोदी जी के गले में डालूंगा.
वहीं, एक चर्चा यह भी है कि उन्हें संगठन में कोई बड़ी भूमिका दी जा सकती है. 2018 के विधानसभा चुनाव में जब उनकी हार हुई थी तो पार्टी ने उन्हें उपाध्यक्ष बनाया था. इसके बाद उन्हें सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया गया था. उस समय भी शिवराज सिंह चौहान वहां नहीं जाना चाहते थे लेकिन पार्टी के फैसले के खिलाफ भी नहीं जा सके थे.
गौरतलब है कि अब सबकी निगाहें दिल्ली पर टिकी है कि शिवराज सिंह चौहान के भविष्य पर क्या फैसला होगा. वहीं, भोपाल में अपने लिए उन्होंने सीएम रहते हुए दूसरा घर तैयार करवा लिया था. साथ ही अपनी लाडली बहनों को भी संकेत दे दिए थे कि मैं जब चला जाऊंगा तब बहुत याद आऊंगा. अब शिवराज सिंह चौहान चले गए हैं और लाडली बहनों को एक सप्ताह पहले सातवीं किस्त की राशि मिली है. ऐसे में उनके अगले कदम पर लोगों की निगाहें टिकी हैं.
शिवराज ने करीब 17 साल तक मध्यप्रदेश की बागडोर संभाली और प्रदेश को बीमारू राज्य से अग्रणी राज्यों की श्रेणी में खड़ा किया. हालांकि अब उन्हें लोकसभा 2024 तक इंतजार करना होगा. लोकसभा चुनाव के बाद ही उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. क्योंकि मध्यप्रदेश में 29 संसदीय सीटों पर चुनाव होना है. हो सकता है शिवराज को सांसद पद का चुनाव लड़ाया जाए और उसके बाद केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी दी जाए या फिर उन्हें संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी जाए. लेकिन इसके लिए लोकसभा चुनाव तक उन्हें इंतजार करना होगा. आने वाले समय में उन्हें क्या जिम्मेदारी दी जा सकती है...यह तो वक्त ही बताएगा.