मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम विधानसभा चुनाव परिणाम को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहा जा रहा है. साल 1998 के बाद से इन राज्यों के विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव से करीबन साल भर से कम के अंतराल पर होते रहे हैं. साल 2003 के बाद से तो इन राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में महज 6 महीनों का गैप रहा है.
क्या वाकई इन राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम लोकसभा चुनाव पर कोई असर डालते हैं या सेमीफाइनल जैसे होते हैं? आइये देखते हैं हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और राजस्थान के विधानसभा और लोकसभा चुनाव का डाटा क्या बता रहा है.
राजस्थान
पहले राजस्थान की बात करते हैं. राजस्थान के चुनावी आंकड़ों पर साल 1998 से नजर डालें तो पता लगता है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न बिल्कुल अलग है. भले ही दोनों चुनाव के बीच कुछ महीने का अंतर हो, लेकिन दोनों के रिजल्ट का एक दूसरे पर कोई खास असर नहीं पड़ता.
मसलन- साल 1998 के विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस सरकार बंपर वोट से सत्ता में आई तो अगले साल यानी 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा भारी पड़ी. हालांकि 2003 से लेकर 2014 के बीच राजस्थान में एक खास पैटर्न दिखाई दिया. इस दरम्यान जिस पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की, वही लोकसभा चुनाव में भी भारी पड़ी.
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश की सियासत भी लगभग राजस्थान जैसी है. 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी तो अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी भारी पड़ी. 2003-2004 में हुए विधानसभा व लोकसभा चुनाव दोनों में बीजेपी का पलड़ा भारी रहा. 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन दोहरा नहीं पाई
छत्तीसगढ़
अब छत्तीसगढ़ की बात करते हैं, जिसका गठन साल 2000 में हुआ. छत्तीसगढ़ के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो 2003 के बाद से अब तक राज्य में किसी की भी सत्ता रही हो, बीजेपी हर बार लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करती रही है. राज्य के गठन के बाद कांग्रेस अब तक सिर्फ एक या दो लोकसभा सीटें ही जीत पाई है.
तो क्या है इसका निचोड़?
तीनों राज्यों के पिछले दो दशक के विधानसभा व लोकसभा चुनाव परिणाम से पता लगता है कि हिंदी पट्टी के इन तीनों राज्यों में विधानसभा चुनाव का परिणाम चाहे जो हो, बीजेपी लोकसभा चुनाव में भारी पड़ती रही है. विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर भी थोड़ा-थोड़ा बढ़ता रहा है.