लालू यादव की पार्टी के द्वारा 22 सीटों पर लोकसभा के उम्मीदवारों की घोषणा मंगलवार की देर शाम कर दी गई. आरजेडी के सोशल मीडिया एकाउंट एक्स के जरिये एक पोस्ट किया गया, जिसमें आरजेडी के सभी कैंडिडेट्स के नाम का जिक्र किया गया था. इस लिस्ट में लालू यादव की दो बेटियों से लेकर पूर्व मंत्री और कुछ खास जातियों के उम्मीदवारों पर भी जोर दिया गया. इस बीच बात कर लें वैशाली लोकसभा सीट की तो यहां से मुन्ना शुक्ला को आरजेडी ने उम्मीदवार बनाया है. वहीं, मुन्ना शुक्ला का नाम सामने आते ही ऐसा कहा जा रहा है कि, आरजेडी ने कहीं ना कहीं एनडीए का गणित बिगाड़ दिया है. साथ ही इस बार का रिजल्ट 2019 के लोकसभा चुनाव से एकदम अलग होगा, ऐसा भी कयास लगाया जा रहा है.
एनडीए का बिगड़ेगा खेल !
वहीं, वैशाली लोकसभा क्षेत्र पर गौर किया जाए तो, इसकी सीमा 7 लोकसभा क्षेत्र से मिलती है. तो वहीं, एनडीए के प्रत्याशियों पर ध्यान दें तो, उसकी ओर से कुल आठ में से एक सीट पर भी भूमिहार उम्मीदवार नहीं दिया गया और अब आरजेडी मुन्ना शुक्ला को उतारकर इसका माइलेज लेने की कोशिश में है. बता दें कि, वैशाली से सटे पूर्वी चंपारण, शिवहर, सारण, महाराजगंज और खुद वैशाली में एनडीए का उम्मीदवार राजपूत जाति से है. मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और हाजीपुर में ही अलग जाति के उम्मीदवार एनडीए के हैं. एनडीए के राजपूत कैंडिडेट के पक्ष में राजपूत वोटरों का एकतरफा वोट पड़ेगा ये तो तय ही माना जा रहा है. लेकिन, अब मुन्ना शुक्ला के जरिए राजद की कोशिश सारण, पूर्वी चंपारण और महाराजगंज के भूमिहारों को साधने की होगी.
एनडीए के कोर भूमिहार वोट का टूटना तय !
वहीं, मुजफ्फरपुर और महाराजगंज में कहीं से अगर कांग्रेस एक और भूमिहार उतारती है जैसी कि चर्चा शुरु से हो रही है तो फिर एनडीए के कोर भूमिहार वोट का टूटना तय कहा जा रहा है. वैशाली में भी मुन्ना शुक्ला बहुत मजबूत स्थिति में होंगे. वहीं, मुन्ना शुक्ला के पिछले राजनीतिक गतिविधियों पर नजर डालें तो, यहां से 2004 में वो निर्दलीय लोकसभा लड़े थे और दूसरे नंबर पर रहे थे. इस सीट पर साढ़े तीन दशक से राजपूत सांसद जीत रहे हैं. मुन्ना शुक्ला 2009 में यहीं से एनडीए के उम्मीदवार थे और रघुवंश सिंह से हार गए थे. तब ढाई लाख वोट इनको मिले थे. पहली बार में भी इसी के आस-पास वोट मिला था. 2014 में पत्नी अन्नू शुक्ला निर्दलीय लड़ी और एक लाख वोट पा गईं. यानि कि, मुन्ना शुक्ला के पास अपना बेस वोट कम से कम एक लाख और अधिकतम ढाई लाख है. इसमें अगर यादव और मुस्लिम जोड़ दिया जाए तो समीकरण भारी पड़ता है.
पहली बार आरजेडी ने उतारा भूमिहार कैंडिडेट
इधर, राजपूत जाति की एनडीए उम्मीदवार वीणा सिंह को लेकर वैसे भी पहले से माहौल यहां ठीक नहीं है. ऐसे में जो लोकल भाजपा के राजपूत विधायक हैं वो खुलकर वीणा सिंह के साथ जाएंगे इसकी संभावना अब कम दिखती है. क्योंकि हर राजपूत विधायक को अगले साल जीत के लिए अपने क्षेत्र में भूमिहार वोट की जरूरत होगी. बिना भूमिहार पारू, साहेबगंज, बरूराज के ये एमएलए नहीं बन पाएंगे, ऐसे में वो क्या करेंगे आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं. वहीं, अब पहली बार राजद ने इतने सालों में किसी भूमिहार को इस सीट पर उतारा है. ऐसा कहा जा रहा कि, बड़ा दांव खेल दिया है. सिर्फ एक सीट से राजद ने आठ सीटों को संदेश देने की कोशिश की है. हालांकि, ये कोशिश कितनी कामयाब होगी ये तो देखने वाली बात होगी लेकिन राजद के इस फैसले से वैशाली में एनडीए का मामला बिगड़ सकता है. वहीं, चर्चा यह भी है कि, वैशाली में यदि सीट वीआईपी को जाती और मुन्ना शुक्ला के अलावा कोई और उम्मीदवार चाहे भूमिहार ही क्यों नहीं होता तो वीणा सिंह की राह आसान हो सकती थी लेकिन लालू यादव वैशाली सेअपना उम्मीदवार उतार दिया. देखना होगा कि, जनता किसे समर्थन देती है.