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बिहार के इस मुस्लिम बहुल गांव के हर घर गूंजती है बांसुरी, रहता है जन्माष्टमी का इंतजार

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पूरे देशभर में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव जन्माष्टमी को काफी धूमधाम से मनाया जाता है. मथुरा-वृंदावन से लेकर देश के कोने-कोने में तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. भगवान कृष्ण को बांसुरी वाले के नाम से भी जाना जाता है. ऐसे में हम आपको मुजफ्फरपुर के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां हर मुस्लिमों के घर से बांसुरी की आवाज सुनाई देती है. इन मुस्लिम परिवारों को हर साल जन्माष्टमी का बेसब्री से इंतजार रहता है.

हम बात कर रहे है मुजफ्फरपुर जिला के कुढ़नी थाना क्षेत्र के सुमेरा मुर्गीयाचक की जहां एक बड़ा सा मोहल्ला अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज का है. इस गांव में मुस्लिमों की अबादी अच्छी खासी है और ये लोग मुख्य रूप से बांसुरी निर्माण कार्य से जुड़े हुए हैं. इस गांव के ज्यादातर मुस्लिम परिवार बांसुरी बनाते है और बाजारों और मेलों में बेचते हैं. ये काम इनके पूर्वजों ने शुरू किया था और कई पीढ़ियों से बांसुरी बनाने का काम निरंतर जारी है

जन्माष्टमी का रहता इंतजार


बांसुरी के कारीगर नूर आलम बताते हैं कि यह हमारे पूर्वजों का सिखाया हुआ काम है, लेकिन अब इसकी डिमांड कम हो गई है. इस पेशे से अब घर का गुजारा मुश्किल है. मेले में थोड़ा बहुत बिकता है. हालांकि हम सबको जन्माष्टमी का इंतजार रहता है, क्योंकि जन्माष्टमी में बांसुरी की अच्छी खासी बिक्री हो जाती है.

जन्माष्टमी पर होती खूब बिक्री


वहीं बुजुर्ग कारीगर वली मोहम्मद बताते हैं कि करीब 40 वर्षों से वह इस पेशे से जुड़े है. जिले के अलग-अलग इलाके से बांस खरीदकर लाते है. मेले में अब ज्यादा बिक्री नहीं होती और आधुनिक खिलौने के आगे लोग इसे खरीदना नहीं चाहते है, लेकिन जन्माष्टमी में अच्छी खासी बिक्री हो जाती है. कारीगर चाहते हैं कि इनके पेशे को सरकार का सहयोग मिले. हालांकि इन कारीगरों को उम्मीद है कि हर बार की तरह इस बार भी उनकी अच्छी बिक्री होगी.

दो दिन मनाई जा रही जन्माष्टमी

भादो माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाने वाली जन्माष्टमी इस बार 6 और 7 सितंबर को मनाई जा रही है. चूंकी जन्माष्टमी दो दिन मनाई जा रही है, लेकिन गृहस्थ जीवन वालों के लिए 6 सितंबर का मूहूर्त शुभ माना जा रहा है.

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