Join Us On WhatsApp

'पहले की सरकारों को ISRO पर विश्वास ही नहीं था', Chandrayan 3 का क्रेडिट PM को नहीं तो किसे देंगे?

nambi narayanan on chandrayan 3 give credit to pm modi

चांद पर भारत के पहुंचने के बाद ISRO की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है. एक और शख्स है जिसे आप मीडिया और सोशल मीडिया में काफी देख रहे होंगे. बाल और दाढ़ी सफेद हो चुकी है. आंखों के सामने चश्मा है, चेहरे पर मुस्कान लिए इस शख्स की पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चा हो रही है. शायद आप समझ गए हों! जी हां, हम इसरो के साइंटिस्ट रहे नंबी नारायणन की बात कर रहे हैं. चंद्रयान-3 की सफलता पर उन्होंने कहा कि हमने जो हासिल किया है वह अविश्वसनीय है. चंद्रयान-2 की विफलता पर ध्यान दिया गया, सुधारा गया और नतीजा हमारे सामने हैं. इसी दौरान फिल्म जगत में भी उनका नाम गूंजने लगा. दरअसल, चांद पर विक्रम लैंडर के उतरने के ठीक बाद राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा हुई. दिलचस्प है कि उसी 'रॉकेट्री: द नांबी इफेक्ट' को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के रूप में सम्मानित किया गया जो नंबी नारायणन के जीवन पर बनी है. फिल्म में आर. माधवन ने नंबी की भूमिका निभाई है. बात यहीं तक नहीं रुकी. अब भाजपा ने नंबी के एक इंटरव्यू का हिस्सा शेयर कर सियासी जगत में खलबली मचा दी है.

इस इंटरव्यू में नंबी कहते हैं कि इसरो के शुरुआती वर्षों में पिछली सरकारों (कांग्रेस) ने पर्याप्त फंड का आवंटन नहीं किया. उन्होंने यहां तक कह दिया सरकार को तब इसरो पर भरोसा ही नहीं था. ऐसे में बहुत से लोग नंबी के बारे में जानना चाहते हैं कि इसरो में उन्होंने क्या योगदान दिया था और बाद में किस आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया. उन्होंने पीएम मोदी के बारे में भी कुछ ऐसा कहा, जो कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को चुभ रहा होगा.

चंद्रयान का क्रेडिट PM को नहीं तो किसे देंगे?

दरअसल, यह वीडियो ऐसे समय में सोशल मीडिया पर आया है जब भारत चांद पर उतर चुका है. इस इंटरव्यू में नंबी नारायणन कहते हैं कि जब इसरो ने अपनी विश्वसनीयता स्थापित की तब स्पेस एजेंसी को पर्याप्त फंडिंग मिलने लगी. उन्होंने कहा, 'तब हमारे पास जीप नहीं होती थी. हमारे पास एक कार नहीं थी. हमारे पास कुछ नहीं था... हमारे लिए कोई बजट आवंटन नहीं था. यह शुरुआती दौर की बात है.' इधर, विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मून लैंडिंग का सारा क्रेडिट लेने का आरोप लगा रहा है. पीएम लैंडिंग वाले दिन लाइव दिखे उस पर भी सवाल उठ रहे हैं. जब नंबी से यह सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 एक नेशनल प्रोजेक्ट है तो और किसे क्रेडिट दिया जाएगा. प्रधानमंत्री को नहीं तो किसे? नंबी ने कहा कि आप प्रधानमंत्री को पसंद नहीं करते हैं यह आपकी समस्या है.

नंबी, जासूसी और पाकिस्तान

सबसे पहले जान लीजिए कि नंबी नारायणन पर जासूसी का आरोप लगा था. अगर आपने रॉकेट्री फिल्म देखी होगी तो महसूस किया होगा कि कैसे इसरो का साइंटिस्ट जासूसी के आरोप में फंसता चला जाता है. लोग उसे शक की नजर से देखते हैं, अपमानित करते हैं. उसका सब कुछ छिन जाता है. यह कहानी षड्यंत्र, आरोप, अरेस्ट के बाद 24 साल की कानूनी लड़ाई का दर्द परदे पर उकेरने में सफल रहती है. देश को एहसास हुआ कि नंबी ने क्या कुछ बर्दाश्त किया होगा.

अब जान लेते हैं कि नंबी कैसे फंसे थे. दरअसल, 1994 में अक्टूबर के महीने में मालदीव की मरियम राशिदा को तिरुवनंतपुरम से गिरफ्तार किया जाता है. उस पर आरोप था कि उसने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन की खुफिया जानकारी पाकिस्तान को बेची थी. अगले महीने क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट के डायरेक्टर नारायण और दो अन्य वैज्ञानिकों को गिरफ्तार कर लिया गया. इन पर इसरो के रॉकेट इंजन की गुप्त जानकारी पाकिस्तान को देने के गंभीर आरोप लगे. आईबी पूछती रही और नारायणन आरोपों से इनकार करते रहे. अगले महीने यानी दिसंबर 1994 में केस सीबीआई के पास पहुंच गया.

सीबीआई ने पाया कि आईबी और केरल पुलिस के आरोप सही नहीं हैं. सीजेएम कोर्ट में कहा गया कि मामला फर्जी है और कोई सबूत नहीं मिले हैं. सभी छूट गए लेकिन केरल की नई सरकार बनी तो फिर से जांच के आदेश दे दिए गए. 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को ही रद्द कर दिया। 1999 में जब नारायण ने मुआवजे के लिए याचिका लगाई और उनके पक्ष में आदेश आया तो केरल सरकार ने इसे चुनौती दी. हाई कोर्ट के कहने पर 2012 में 10 लाख रुपये देने के आदेश हुए. पुलिसवालों के खिलाफ भी मामला चला.

आखिरकार सितंबर 2018 में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण पूरी तरह बेदाग निकले. 14 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि साइंटिस्ट नारायणन को केरल पुलिस ने बेवजह अरेस्ट किया और मानसिक प्रताड़ना दी. साइंटिस्ट को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश आया. नंबी ने इसरो में अपने कार्यकाल के दौरान PSLV में इस्तेमाल किए किए जाने वाले इंजन को बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. वह एयरोस्पेस इंजीनियर थे. आज पूरा देश उनके योगदान को समझता है और उन्हें सम्मान की नजरों से देखता है. 2019 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

आसमान में उड़ा फैटबॉय, देखते रहे नंबी


यह तस्वीर 5 जून 2017 की है जब श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी एमके III लॉन्च होने की खबर टीवी पर आ रही थी. तिरुवनंतपुरम में अपने घर में बैठे नंबी बड़ी उत्सुकता से लाइव देख रहे थे. GSLV Mk III को ही 'फैटबॉय' कहा जाता है. जरा सोचिए उस समय नंबी के मन में कैसे भाव आ रहे होंगे. दरअसल, नंबी नारायणन उस टीम के मुखिया थे जिसने क्रायोजेनिक टेक्नॉलजी विकसित की थी. उसी की मदद से यह फैटबॉय आसमान को नापने जा रहा था.

Scan and join

darsh news whats app qr
Join Us On WhatsApp