बिहार में शराबबंदी कानून लागू है बावजूद इसके राज्य में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद भी शराबबंदी कानून से सूबे में शराब की खपत और आपूर्ति में कोई कमी नहीं आई है. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो आंकड़े दिए हैं उससे ये साफ पता चल रहा है. इन आंकडों के मुताबिक 2016 के कानून के तहत लगभग 50% मामले पिछले डेढ़ साल में दर्ज किए गए. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को शराबबंदी कानून के सात वर्षों के दौरान दर्ज मामलों और लंबित मामलों पर डेटा पेश करने का निर्देश दिया था. इसी के बाद नीतीश सरकार ने एक हलफनामा दायर कर अदालत को बताया कि बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 के तहत 4.7 लाख से अधिक मामले लंबित थे.
आपको बता दें कि बिहार सरकार के वकील न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ के सामने पेश हुए. शराबबंदी की घोषणा सीएम नीतीश कुमार ने साल 2016 में ही की थी. राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा कि 74 विशेष अदालतें, जो विशेष रूप से निषेध कानून के तहत अपराधों से निपटने के लिए स्थापित की गई थीं, ने काम करना शुरू कर दिया है. पिछले डेढ़ साल में मामलों के निपटान की दर में वृद्धि हुई है. हलफनामे के अनुसार, 2016 से दर्ज कुल मामले 6.6 लाख थे, जिनमें से 3.2 लाख मामले पिछले डेढ़ साल में दर्ज किए गए थे.
हालांकि सरकार ने ये भी बताया कि मामलों के निपटाने में तेजी आई थी. क्योंकि राज्य ने पिछले साल कानून में संशोधन किया था ताकि पहली बार शराब पीने के आरोपी अपराधियों को जुर्माना भरने के बाद रिहा किया जा सके. संशोधित कानून के अनुसार, जुर्माना नहीं भरने पर एक महीने की कैद होगी.
नीतीश सरकार का SC में हलफनामा
हलफनामे में कहा गया है, 'यह प्रस्तुत किया गया है कि जनवरी 2022 से बिहार राज्य के सभी जिलों में 74 विशेष उत्पाद अदालतें काम कर रही हैं. ये विशेष अदालतें बहुत अधिक संख्या में मामलों की सुनवाई और निपटान कर रही हैं. नवीनतम आंकड़ों के संदर्भ में, विशेष अदालतों के कामकाज के बाद से दर्ज किए गए मामलों की कुल संख्या 3,25,081 है, और पूर्ण किए गए परीक्षणों की कुल संख्या 1,87,692 है. इन आंकड़ों से पता चलता है कि उत्पाद शुल्क अदालतों के गठन के बाद से मुकदमे समयबद्ध तरीके से पूरे किए जा रहे हैं.'