बिहार में जाति-जमात की तो बात होती ही रहती है. बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि जाति के बिना बिहार की राजनीति बेमानी है. जाति के जहर से तबाह बिहार को अब ‘कैंसर’ जैसी बीमारी ने जकड़ लिया है. इन सबसे भारी मानसिक ऊहापोह में फंसे राजनीतिक दलों के नेता अब तू-तड़ाक और बाप-दादा की बेसुरी बतकही पर उतर आए हैं. लोक नायक जय प्रकाश नारायण की जन्मतिथि पर तो एक ऐसा नजारा देखने-सुनने को मिला, जिसकी कोई कल्पना ही नहीं कर सकता.
नीतीश भड़के सम्राट चौधरी की टिप्पणी पर
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने बुधवार को जय प्रकाश नारायण की जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में शिरकत की. जेपी को माल्यार्पण के बाद जब वे पत्रकारों से मुखातिब हुए तो किसी ने सम्राट चौधरी की वह टिप्पणी उन्हें सुना दी, जिसमें कहा गया था कि नीतीश कुमार भूल गए हैं कि गोरौल में लालू यादव ने अपने गुंडों से उन्हें पिटवाया था. आज उसी लालू के साथ वे गलबहियां डाले हुए हैं। इतना सुनते ही नीतीश ऐसे भड़के किसम्राट के बाप को भी लपेटे में ले लिया. उन्होंने कहा कि सबको पता है कि उसके (सम्राट) के बाप (शकुनी चौधरी) को किसने एमएलए बनवाया. किसने उन्हें मंत्री बनवाया. बगल में खड़े तेजस्वी यादव की ओर इशारा कर नीतीश ने कहा कि इसके बाप ने उसे एमएलए बनाया. अब इस पार्टी-उस पार्टी में घूम रहा है. अंट-शंट बोलते रहता है.
लालू यादव ने किया था कैंसर का जिक्र
बिहार में जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद विरोधी इसमें कमियां बता रहे थे. सर्वेक्षण की रिपोर्ट को यह कह कर खारिज कर रहे थे कि लालू यादव के दबाव में M-Y (मुस्लिम-यादव) समीकरण को साधने के लिए नीतीश ने ऐसी रिपोर्ट तैयार कराई है, जिसमें मुस्लिम और यादवों की खासा आबादी बताई गई है. किसी एक जाति में यादवों की आबादी अधिक है तो मुसलमान उससे थोड़ा अधिक हैं. लालू प्रसाद यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर लिखा था- ‘जातिगत जनगणना के विरुद्ध जो भी लोग हैं, वो इंसानियत, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक बराबरी तथा समानुपातिक प्रतिनिधित्व के खिलाफ हैं. ऐसे लोगों में रत्ती भर भी न्यायिक चरित्र नहीं होता है. किसी भी प्रकार की असमानता एवं गैर बराबरी के ऐसे समर्थक अन्यायी प्रवृत्ति के होते हैं, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल और केवल जन्मजात जातीय श्रेष्ठता के आधार एवं दंभ पर दूसरों का हक खाकर अपनी कथित श्रेष्ठता को बरकरार रखना चाहते हैं. कैंसर का इलाज सिरदर्द की दवा खाने से नहीं होगा.
डेप्युटी सीएम को तुम कहते हैं सीएम
हर महकमे और पेशे का अपना प्रोटोकॉल होता है. सीएम बड़ा पद है और डेप्युटी सीएम उससे नीचे का पद होता है. लेकिन ऑफिसियल डेकोरम में किसी सार्वजनिक स्थान पर सीएम अपने डेप्युटी सीएम को कभी तुम नहीं कह सकता. यहां सामान्य शिष्टाचार है. कोई लिखित प्रावधान इसके लिए संविधान में नहीं है, जिसकी नेता अक्सर दुहाई देते हैं। यहां तक कि मंत्रियों के लिए भी तुम शब्द का प्रयोग अच्छा नहीं लगता. मंत्री और मुख्यमंत्री के संबंध घरेलू ही क्यों न हों, लेकिन आफिसियल डेकोरम सार्वजनिक जीवन में किसी को तुम कहने की इजाजत नहीं देता. कई मौकों पर नीतीश अपने डेप्युटी सीएम के बारे में कहते सुने जा सकते हैं- इससे पूछ लीजिए...इसके पिता ने बनाया...इसको कह दिया है, उसको हमने ही.
देवी-देवता, धर्मग्रंथ भी रहे निशाने पर
बिहार के राजनीतिज्ञों की जुबान अक्सर बिगड़ती रही है. कभी ब्राह्मणों के लिए पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के कड़वे बोल निकलते हैं तो कभी सवर्णों के बारे में मंत्री आलोक मेहता उल्टा-सीधा बोल जाते हैं. शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर तो अपने बिगड़े बोल के लिए अब काफी मशहूर हो चुके हैं. रामचरित मानस, मनुस्मृति और तुलसीदास उनके निशाने पर रहते हैं. अब तो उनके सपनों में राम भी आते हैं. उन्हीं की तरह बीजेपी के एक नेता हैं. उनके सपने में कृष्ण आने लगे हैं. हाल के दिनों में बिहार की राजनीति में नेताओं के बिगड़े बोल के उदाहरण सामने आते रहे हैं. नीतीश कुमार को लेकर विरोधी दल के नेताओं ने कई तरह के भाषा का प्रयोग किया. बीजेपी की ओर से उन्हें मानसिक तौर पर कमजोर और कभी 'पलटूराम' जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है. कुल मिलाकर बिहार की राजनीति में भाषा की मर्यादा का ख्याल बहुत कम रखा जाता है.