Desk- देश के चुनावी इतिहास में पहली बार लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए मतदान होने वाला है, इसके लिए सत्ताधारी और विपक्षी दलों के गठबंधन की अपनी -अपनी जिद को माना जा सकता है, सत्ताधारी बीजेपी हर हाल में लोकसभा अध्यक्ष के साथ ही उपाध्यक्ष का पद भी अपने ही गठबंधन के साथ रखना चाहती है, वहीं विपक्षी दल लोकसभा अध्यक्ष के लिए सत्ताधारी दल के प्रत्याशी को तभी समर्थन देने की बात कह रहा था जब उपाध्यक्ष का पद विपक्षी गठबंधन को दिया जाए पर भाजपा इसके लिए तैयार नहीं हुई.
भाजपा के एनडीए गठबंधन ने फिर से लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए ओम बिरला का नामांकन कराया है, जबकि विपक्षी गठबंधन की तरफ से के.सुरेश को मैदान में उतार गया है. आज दोनों प्रत्याशियों ने लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कर दिया है और कल विधिवत रूप से चुनाव होगा.
बताते चले कि आमतौर पर यह परंपरा रही है कि लोकसभा अध्यक्ष का पद सत्ताधारी गठबंधन के पास रहता है उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दल के प्रत्याशी को दिया जाता है.इसका उदाहरण 1991 से 96 के बीच पीवी नरसिंहा राव की सरकार को लिया जा सकता है. उस कांग्रेस की सरकार के कार्यकाल के दौरान भाजपा के एस.मल्लिकार्जुनइयाह लोकसभा के उपाध्यक्ष रहे. वहीं अटल बिहारी वाजपेई की एनडीए सरकार में 1999 से 2004 के बीच कांग्रेस के पी.एम सईद उपाध्यक्ष रहे. 2004 से 2009 के बीच कांग्रेस की मनमोहन सरकार के दौरान उपाध्यक्ष पद पर शिरोमणि अकाली दल के चरणजीत सिंह अटवाल उपाध्यक्ष रहे, जबकि 2009 से 2014 के मनमोहन सिंह के कार्यकाल में बीजेपी के करिया मुंडा उपाध्यक्ष पद पर रहे.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और एनडीए को अपार समर्थन मिला था और बीजेपी ने अपने सहयोगी aidmk.के एम.थम्बिदुरै को उपाध्यक्ष बनाया गया था जबकि 2019 में Bjp और एनडीए सरकार को जबरदस्त बहुमत मिली थी और 2019 से 2024 के बीच उपाध्यक्ष का पद खाली रहा था.
2024 के चुनाव में विपक्षी दलों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के नेताओं ने उपाध्यक्ष पद पर अपना दावा जताया था, पर बीजेपी उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दलों को देने को तैयार नहीं है यही वजह है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के द्वारा विपक्षी दलों से सर्वसम्मति की कोशिश बेकार हो गई. राहुल गांधी ने दो टूक शब्दों में कहा हम आपके लोकसभा अध्यक्ष पद के प्रत्याशी का समर्थन करेंगे बदले में आप उपाध्यक्ष पद पर हमारा समर्थन करें.
इस चुनाव के साथ ही स्पष्ट हो गया है कि 18वीं लोकसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच विभिन्न मुद्दों पर सहमति से ज्यादा टकरा ही ज्यादा देखने को मिलेगा.