विष्णु पुराण का एक श्लोक है, 'उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्तति: ' यानी जो समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित है वो भारतवर्ष है और उसमें भरत की संतानें बसी हुई हैं. जब भारत अभी दुनिया की बीस बड़ी आर्थिक ताकत वाले देशों के संगठन जी-20 की मेजबानी कर रहा है. तब एक आमंत्रण पत्र पर लिखे भारत शब्द ने पूरे देश में सियासी हलचल मचा दी. सवाल पूछा जाने लगा कि क्या केंद्र सरकार अब देश का नाम इंडिया और भारत नहीं बल्कि सिर्फ भारत करने वाली है? इसकी 4 वजहें हैं.
पहले राष्ट्रपति भवन की तरफ से G20 के दौरान डिनर के लिए जारी निमंत्रण पत्र में 'द प्रेसीडेंट ऑफ भारत' लिखा दिखा. फिर G20 बैठक में अधिकारियों के बदले हुए पहचान पत्र सामने आए हैं, जिसमें भारत लिखा हुआ है. इसके बाद एक ऐसी तस्वीर भी सामने आई, जहां दक्षिण अफ्रीका और ग्रीस में प्रधानमंत्री के दौरे पर फंक्शन नोट्स पर 'प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत' लिखा दिखा. वहीं चौथी तस्वीर सात सितंबर को होने वाले इंडोनेशिया के दौरे के फंक्शन नोट की है. उसमें भी प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत ही लिखा हुआ है.
आपको बता दें कि देश में जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियां जोरों पर हैं. इस बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के एक निमंत्रण पत्र को लेकर विवाद हो गया है. राष्ट्रपति ने जी-20 के डिनर के लिए यह निमंत्रण पत्र भेजा है. इसमें प्रेजिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेजिडेंट ऑफ भारत लिखा गया है. इसी से देश की राजनीति गर्माई हुई है. विपक्ष का आरोप है कि सरकार देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत करना चाहती है. सरकार ने इसी महीने संसद का विशेष सत्र बुलाया है. दावा किया जा रहा है कि इसमें इंडिया का नाम बदलकर भारत रखने के लिए एक प्रस्ताव लाया जा सकता है. एक अनुमान के मुताबिक अगर देश का नाम बदला जाता है तो उस पर करीब 14,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च आ सकता है.
यह कोई पहला मौका नहीं है जब कोई देश अपना नाम बदल रहा हो. अब से पहले भी ऐसे कई परिवर्तन इस दुनिया ने देखे हैं.
हॉलैंड नीदरलैंड बन गया.
तुर्की का नाम तुर्किए हुआ.
चेक रिपब्लिक चेकिया हो गया.
सियाम थाईलैंड बन गया.
बर्मा म्यांमार हो गया.
ईस्ट जर्मनी 1990 से सिर्फ जर्मनी नाम से जाना गया.
फ्रेंच सूडान 1960 में माली हो गया.
तो क्या इसी तरह 2024 या उससे पहले ही इंडिया और भारत के नाम से मशहूर हमारा देश सिर्फ भारत के नाम से जाना जाएगा? देश में मंगलवार को चर्चा का सिर्फ एक ही विषय रहा. 'इंडिया बनाम भारत'.
अब सवाल उठता है कि अगर वाकई नाम बदलने लग गए तो कितना खर्च लगेगा. इसका कोई पुख्ता हिसाब तो अब तक नहीं सामने नहीं आया है, लेकिन जो रिसर्च बताती है उसे ही आधार मानें तो दावा होता है कि एक शहर का ही नाम बदलने में औसत 300 करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं. अब सवाल है कि इंडिया हटाकर सिर्फ भारत नाम हुआ तो कितना खर्च देश की जनता पर आएगा?
हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका ने 1972 में अपना नाम बदला था. पहले इसे सीलोन के नाम से जाना जाता था. इसी तरह 2018 में अफ्रीकी देश स्वाजीलैंड ने अपना नाम बदलकर इस्वातिनी कर दिया था. स्वाजीलैंड के राजा को लगा कि स्वाजीलैंड नाम औपनिवेशिक काल की याद दिलाता है. तब दक्षिण अफ्रीका के एक वकील डैरेन ओलिवियर ने किसी देश का नाम बदलने की प्रक्रिया में आने वाले खर्च को निकालने के लिए एक फॉर्म्युला निकाला था. उन्होंने इसकी तुलना किसी बड़ी कंपनी की रिब्रांडिंग एक्सरसाइज से की थी और इस आधार पर कुल खर्च निकाला था.
ओलिवियर के मुताबिक किसी बड़ी कंपनी की एवरेज मार्केटिंग कॉस्ट उसके कुल रेवेन्यू का करीब छह फीसदी होता है. रिब्रांडिंग में कंपनी की कुल कॉस्ट उसके ओवरऑल मार्केटिंग बजट का 10 परसेंट तक जा सकती है. इसके मुताबिक उन्होंने स्वाजीलैंड का नाम बदलने पर कुल छह करोड़ डॉलर का खर्च आने का अनुमान लगाया था. ओलिवियर ने इसके लिए स्वाजीलैंड के रेवेन्यू को इस्तेमाल किया था.
फाइनेंशियल ईयर 2023 में देश का रेवेन्यू 23.84 लाख करोड़ रुपये रहा. इसमें टैक्स और नॉन-टैक्स रेवेन्यू शामिल है. ओलिवियर के फॉर्म्युला के हिसाब से इंडिया का नाम बदलकर भारत करने में करीब 14,304 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. इससे एक महीने के लिए 80 करोड़ लोगों का पेट भरा जा सकता है. सरकार फूड सिक्योरिटी प्रोग्राम पर हर महीने करीब 14,000 करोड़ रुपये खर्च करती है. देश में हाल के वर्षों में कई शहरों के नाम बदले गए हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने में 300 करोड़ रुपये से अधिक खर्च आया था.
गौरतलब है कि पहले भी ऐसी मांगें उठती रही हैं....
साल था 2004, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. विधानसभा में एक प्रस्ताव पास हुआ. मांग की गई थी कि संविधान में India, That is भारत को भारत दैट इज इंडिया कर देना चाहिए.
वहीं 2012 में कांग्रेस के सांसद रहे शांताराम नाइक राज्यसभा में बिल लाए. मांग की थी कि संविधान की प्रस्तावना में अनुच्छेद एक में और संविधान में जहां-जहां इंडिया शब्द का उपयोग हुआ हो, उसे बदल कर भारत कर दिया जाए.
इसके बाद 2014 में योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा में एक निजी विधेयक पेश किया था. इसमें संविधान में 'इंडिया' शब्द की जगह पर 'हिन्दुस्तान' शब्द की मांग की गई थी, जिसमें देश के प्राथमिक नाम के रूप में 'भारत' का प्रस्ताव किया गया था.
सदन ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट तक ये मांगें पहले उठ चुकी हैं. मार्च- 2016 में इंडिया नाम हटाकर भारत करने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी.
- 2016 में तब चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर और जस्टिस यू यू ललित ने याचिकाकर्ता से कहा था कि भारत कहिए या इंडिया कहिए, जो मन है कहिए. अगर आपका मन भारत कहने का है तो कहिए. अगर कोई इंडिया कहता है तो कहने दीजिए.
- चार साल बाद 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा इंडिया की जगह भारत नाम रखने वाली याचिका को खारिज किया.
- 2020 में चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा था कि संविधान में भारत और इंडिया दोनों नाम दिए गए हैं.
यानी ये चर्चा अभी की नहीं, पुरानी है. हांलाकि सियासत नई जरूर है. गौर करने वाली बात है कि नाम बदलने के मुद्दे पर अब तक सरकार की ओर से कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन जरूर साफ हो गया है कि भारत और इंडिया दोनों नाम से जो देश 7 दशक से ज्यादा से संविधान मुताबिक जाना जा रहा है. वहां भारत और इंडिया के बीच अब खेमे बंटने लगे हैं.