बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक से जुड़े चर्चे तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. इधर, शिक्षकों के बीच केके पाठक को लेकर आक्रोश भी बरकरार है. जिस तरह से केके पाठक ने एक नए प्रशासकीय शैली को विकसित किया है. अपनी इस अजूबे शैली में न तो वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुन रहे हैं और न ही राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर की. ऐसे में अब केके पाठक की वही नए कार्यशैली पर सवाल उठने शुरु हो गए हैं. दरअसल, शिक्षाविद और विश्लेषकों की माने तो केके पाठक अराजक हो गए हैं. दरअसल, केके पाठक अपने दो निर्देशों के कारण बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और शिक्षक संघ की नजरों में अराजक पदाधिकारी हो गए हैं. यही कारण है कि, एसीएस केके पाठक के कई आदेश से शिक्षक संघ की ओर से नाराजगी व्याप्त है.
स्कूलों की टाइमिंग का मुद्दा
बात करेंगे पहले निर्देश की तो, शिक्षा विभाग के एसीएस केके पाठक ने सीएम नीतीश कुमार के उस आदेश को नहीं माना, जिसे लेकर विधानसभा में सरकार की ओर से आश्वासन दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा के चलते सत्र के दौरान स्कूल की टाइमिंग को लेकर अभिज्ञता जताई और सदन को इस बात के लिए आश्वस्त किया कि स्कूल की टाइमिंग 10 से चार ही रहेगी. सदन में सभी के सामने नीतीश कुमार ने साफ तौर पर कहा था कि-'हम लोग भी स्कूल में थे तो यही टाइमिंग था. केवल शिक्षक 15 मिनट पहले आते थे और 15 मिनट बाद जाते थे.' अब सीएम नीतीश कुमार ने तो सदन में यह बात कह दी लेकिन शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक अपने आदेश पर अड़े रहे. उन्होंने सभी डीईओ और डीपीओ के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग की और सबको निर्देश देकर कहा कि, हर हाल में स्कूल सुबह 9 से शाम 5 बजे तक ही चलेगा.
कटिहार में किया था क्लियर
हालांकि, आपको यह भी बता दें कि, केके पाठक जब कटिहार में स्कूलों के निरीक्षण के दौरे पर पहुंचे थे तब उन्होंने स्कूलों की टाइमिंग को लेकर ही शिक्षकों और छात्रों से बातचीत की थी. इस दौरान उन्होंने कहा था कि, स्कूलों का समय 10 बजे से 4 बजे तक होगा. उन्होंने शिक्षकों से ये भी अपील की कि, वे थोड़ा पहले स्कूल आएं और थोड़ा लेट से घर जाएं. 10 से 4 बजे स्कूल होने का मतलब ठीक उसी समय पर आना नहीं है. कुछ देर पहले आना होगा और कुछ देर बाद जाना होगा. वहीं, इस बात का हवाला देते हुए कुछ लोग यह कह रहे थे कि, केके पाठक ने मुख्यमंत्री की बात मान ली है. अब स्कूल के समय को लेकर कोई सस्पेंस नहीं है. लेकिन, ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ. इसके उलट टाइमिंग के लेकर शिक्षकों के बीच और भी कंफ्यूजन पैदा हो गया. ऐसा इसलिए क्योंकि, स्कूल का समय बदलने को लेकर शिक्षा विभाग की ओर से किसी भी तरह का आधिकारिक तौर पर लेटर जारी नहीं किया गया. किसी भी तरह की आधिकारिक सूचना शिक्षा विभाग की ओर से जारी नहीं होने के कारण टाइमिंग को लेकर शिक्षकों के बीच कंफ्यूजन बरकरार रह गया.
राजभवन के आदेश को भी अनदेखा
अब बात कर लें दूसरे निर्देश की तो, शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने राजभवन के आदेश को भी अनदेखा कर दिया है. राज्यपाल के निर्देश के विरुद्ध जाकर 28 फरवरी को शिक्षा विभाग की ओर से कुलपतियों, कुलसचिवों और परीक्षा नियंत्रकों की बैठक बुलाई है. केके पाठक के इस निर्देश के बाद शिक्षा विभाग और राजभवन आमने-सामने हो गया है. जिसका नतीजा भी यह देखने के लिए मिला कि, राजभवन से जारी निर्देश में बिहार शिक्षा विभाग की ओर से 2 और 3 मार्च को आयोजित होने वाले उन्मुखीकरण कार्यक्रम में विश्वविद्यालयों के पदाधिकारियों के भाग लेने सीधे रोक लगा दी है. तो इन दो प्रमुख कारणों के कारण केके पाठक पर अब सवाल खड़े होने शुरु हो गए हैं. इधर, नियोजित शिक्षकों का मुद्दा भी सुर्खियों में है. जिस तरह से विरोध-प्रदर्शन किए जा रहे हैं, उससे कुछ भी छिपा नहीं रह गया है. खैर, अब आगे किस तरह की गतिविधियां होती है, यह देखने वाली बात होगी.