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कभी रिक्शा चलाने वाले रत्नेश सदा, अब चला रहे बिहार का मंत्रालय, संघर्ष भरा रहा है सफर

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बिहार सरकार के मंत्री और सीएम नीतीश कुमार के करीबी रत्नेश सदा का एक कथित ऑडियो वायरल हो रहा है. इस ऑडियो ने जदयू खेमे में हड़कंप मचा दिया है. कथित ऑडियो में मंत्री रत्नेश सदा अपने समर्थकों को बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी का पुतला जलाने की बात कर रहे हैं. हालांकि, इस ऑडियो पर किसी भी जदयू नेता ने प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन विरोधी यह कह रहे हैं कि सीएम नीतीश कुमार की पार्टी में ही फूट है. जदयू के दो वरीय नेता एक-दूसरे के विरोध में है.

वायरल हो रहे ऑडियो में एक समर्थक ने मंत्री रत्नेश सदा को फोन किया. इसमें समर्थक अपना नाम सरवन सदा बताता है. उसने कहा कि वह मुंगेर के टेटियाबंबर प्रखंड का रहने वाला है. मंत्री रत्नेश सदा ने उससे पूछा कि  क्या बात है? इसपर समर्थक कहता है कि हमलोगों को भारी तकलीफ है कि भीम संसद में जब आप बोल रहे थे तो आपको खींच कर बैठा दिया गया. इसपर मंत्री रत्नेश सदा ने कहा कि पुतला जलाओ अशोक चौधरी का. इसके बाद समर्थक ने कहा कि क्या अशोक चौधरी ने दलितों को जुटाया था? इस पर कहा गया कि पुतला जलाओ अशोक चौधरी का. अशोक चौधरी का पुतला जलाओ और उसके खिलाफ लिखो.

बताया जा रहा है कि 26 नवंबर को पटना में भीम संसद का आयोजन हुआ था. इसमें दलित समाज के लोग भारी संख्या में पहुंचे थे. कहा जा रहा है कि इस कार्यक्रम में जब मंत्री रत्नेश सदा बोलने के लिए खड़े हुए तो कुछ ही देरी में मंत्री अशोक चौधरी ने उन्हें बैठा दिया. इसी बात को लेकर मंत्री रत्नेश सदा के समर्थकों में काफी नाराजगी है. समर्थकों का कहना है कि मंत्री अशोक चौधरी ने उनके नेता रत्नेश सदा का अपमान किया है.

बिहार सरकार के मंत्री रत्नेश सदा का कथित ऑडियो क्लिप वायरल होने के बाद से सियासी गलियारों में संभावनाओं की सियासत पर चर्चा तेज हो गई है. चर्चा तेज़ है कि नीतीश कैबिनेट में फिर से एक पद खाली होने वाली है. संतोष सुमन के इस्तीफा देने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने जिन्हें मंत्री बनाया था, अब उन्हें किनारा लगाया जा सकता है.

दर्श न्यूज इस वायरल ऑडियो की पुष्टि नहीं करता है. हालांकि, इसके सामने आने के बाद बिहार की सियासत गर्मा गई है. रत्नेश सदा बिहार में जेडीयू का प्रमुख महादलित चेहरा हैं. वे मुसहर समाज से आते हैं. जीतनराम मांझी के महागठबंधन से अलग होने के बाद उनके बेटे संतोष सुमन की जगह रत्नेश सदा को एससी एसटी कल्याण मंत्री बनाया गया था.

सियासी गलियारों में यह चर्चा इसलिए तेज हुई क्योंकि सीएम नीतीश के सबसे करीबी नेताओं में से एक मंत्री श्रवण कुमार ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा है कि, अगर कोई मंत्री पार्टी के खिलाफ़ क़दम उठाता है तो, उस पर विचार करते हुए कार्रवाई होगी.

जेडीयू की 'भीम संसद' को लेकर बिहार की राजनीति पहले से गरमाई हुई है. वहीं, इसको लेकर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने रविवार को कहा था कि कार्यक्रम के विज्ञापन में सभी का नाम है, लेकिन रत्नेश सदा और नील का नाम है, फोटो नहीं है. भीम राव अंबेडकर के नाम पर भीम संवाद कर रहे हैं, लेकिन फोटो नहीं है. ओबीसी, एससी के लोग ललन सिंह, अशोक चौधरी, संजय झा के फोटो से प्रभावित होंगे क्या? जिनका समाज से कोई मतलब नहीं है सिर्फ बयानबाजी करते हैं, जो मंत्री और अधिकारियों के आगे पीछे करके राजनीति चला रहे हैं.

वहीं जीतन राम मांझी के बेटे और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन ने कहा है कि पंचायत प्रेरक, टोला सेवक और तालिमी मरकज के रूप में कार्य कर रहे लोगों को प्रलोभन देकर भीम संसद में बुलाया गया था. सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर जनता दल यूनाइटेड ने भीम संसद का आयोजन किया. मंत्री रत्नेश सदा का अपमान भी किया गया. उन्होंने दावा किया कि यह बात दलित समाज के लोग भी जानते हैं कि किस तरह से लगातार मुख्यमंत्री दलितों का अपमान कर रहे हैं. पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को सदन के अंदर सीएम नीतीश कुमार ने अपमानित करने का काम किया. कल बिहार सरकार के मंत्री रत्नेश सदा को भी भरी सभा में अपमानित करने का काम किया गया. मुख्यमंत्री का सोच दलितों को लेकर क्या है, यह दलित समाज के लोग जानते हैं.

आइए जानते हैं बिहार सरकार में महादलित मंत्री रत्नेश सदा के संघर्षों भरे सफर के बारे में...

बिहार के पूर्व सीएम और 'हम' के संरक्षक जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन ने जब नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दिया था. तो बिहार कैबिनेट में संतोष सुमन की जगह रत्नेश सदा ने ली. रत्नेश सदा सहरसा जिले की सोनबरसा सीट से तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. अब वो मंत्रिमंडल में शामिल हैं. 16 जून को नीतीश कैबिनेट का विस्तार हुआ. रत्नेश सदा के पास मंत्री पद की शपथ लेने का लेटर पहुंचा था.......जेडीयू विधायक रत्नेश सदा सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं. उनके पिता लक्ष्मी सदा मजदूर रहे हैं. खुद रत्नेश सदा ने लम्बे समय तक रिक्शा चलाया है. अब नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनकर विभाग चला रहे हैं.

मांझी के बेटे संतोष सुमन की जगह मंत्रिमंडल में शामिल हुए रत्नेश सदा भी मुसहर समाज से आते हैं. बिहार की सियासत के जानकारों का मानना है कि जीतन राम मांझी से ज्यादा जनाधार रत्नेश सदा का है. रत्नेश सदा जेडीयू के उन नेताओं में से एक हैं, जिनपर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भरोसा करते हैं. यही वजह है कि रत्‍नेश सदा को नीतीश कैबिनेट में जगह मिली है. 

रत्नेश सदा सरल स्वभाव के पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं. चुनाव आयोग में 2020 में दायर किए हलफनामे के अनुसार, उनकी शैक्षणिक योग्यता स्नातक है. उन्होंने संस्‍कृत में आर्चाय की डिग्री हासिल की है. इस वक्त वो 49 साल के हैं. हलफनामे के मुताबिक, उनकी चल-अचल संपत्ति 1.30 करोड़ है. चुनाव आयोग में दाखिल हलफनामे में रत्नेश सदा पर किसी तरह का कोई भी आपराधिक केस नहीं है. वे सहरसा जिले के कहरा कुट्टी वार्ड नंबर 6 के रहने वाले हैं. उनके तीन बेटे और दो बेटियां हैं.

सहरसा के सोनबरसा सीट से तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वाले रत्नेश सदा के माता-पिता मजदूर थे......मजदूरी में मिलने वाले अनाज से घर के 10 बच्चों का पालना मुश्किल था, परिणामस्वरूप रत्नेश सदा और उनके भाई-बहनों के लिए बिना खाए सो जाना आम बात थी. बकौल सदा, माता-पिता को मजदूरी में धान-गेहूं मिलने पर जश्न जैसा माहौल होता था क्योंकि भात और गेहूं के आटे की रोटी भी परिवार के लिए दुर्लभ चीज थी. 

 एक रोज तो तीन दिन से भूखे परिवार को खिलाने के लिए रत्नेश सदा को 12 रुपए में दिन भर नदी से बांस निकालने का काम करना पड़ा था. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार के नए मंत्री और तीन बार के जदयू विधायक रत्नेश सदा की कहानी संघर्षों से भरी रही है. रत्‍नेश सदा बताते हैं क‍ि उनके समाज की सबसे बड़ी समस्‍या है श‍िक्षा का अभाव. रत्‍नेश ने खुद बड़ी मुश्‍क‍िल से ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी की.

रत्नेश सदा बिहार के महादलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और खुद को कबीरपंथी बताते हैं. उन्होंने बताया कि कैसे एक हत्‍या की वजह से उनके मन में राजनीति ज्वाइन करने का ख्‍याल आया. साल 1995 की बात है. विष्णुदेव सदा नामक एक वामपंथी नेता की अपराध‍ियों ने हत्या कर दी थी. विष्णुदेव सदा के ल‍िए आयोजित एक शोकसभा में रत्‍नेश सदा को भी बुलाया गया. उस कार्यक्रम में परिवार को सांत्वना देने के ल‍िए वामपंथी राजनीतिक संगठन सी.पी.आई (एम) के गणेश शंकर विद्यार्थी भी पहुंचे हुए थे.

रत्नेश बताते हैं कि तब राज्य में हत्या, लूट और अपहरण की घटनाएं चरम पर थीं. विष्णुदेव सदा की शोक सभा से लौटने के बाद रत्नेश सोच में पड़ गए कि समाज में फैली इन समस्याओं का क्या उपाय है? इंटरव्यू में सदा बताते हैं, “हथियार उठाने से काम नहीं चलता. पढ़ तो लिया था. लेकिन तब अपने दम कर कुछ करने का सामर्थ्य नहीं था. सोचते-सोचते मुझे लगा कि सभी तालों को खोलने की एक ही चाभी है-राजनीति. एक साल पहले ही नीतीश कुमार ने समता पार्टी का गठन हुआ था. तब रामजी राय समता पार्टी के उम्मीदवार थे. मैं उन्हीं के सम्पर्क में आया. वह चुनाव तो हार गए. लेकिन मुझे उन्होंने पार्टी का पंचायत अध्यक्ष बनाया और फिर प्रखंड अध्यक्ष बनाया.”

रत्नेश सदा ने साल 2001 में ग्राम प्रधान (मुखिया) का चुनाव लड़ा था. दरअसल, तब सदा ने गांव में ‘झोला छाप डॉक्टर’ की ख्याति हासिल कर ली थी. इसके पीछे भी एक कहानी है. 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रत्नेश सदा घर से कई किलोमीटर दूर रहते थे. जब साल 1991 की जनवरी में सदा घर आए तो उनका परिवार पिछले तीन दिनों से भूखा था. रत्नेश सदा को देखते ही घर के सभी लोग रोने लगे. घर में कुछ खाने को था नहीं तो पूरा परिवार खेसारी का साग खाकर सो गया.

सुबह से ही परिवार काम मिलने के इंतजार में था. तभी एक बांस का व्यापारी आया. उसे नदी से बांस निकलवाना था. नदी से 200 बांस निकालने पर 24 रुपये मिलते. सदा के लिए अकेले इतना काम करना संभव नहीं था. उन्होंने पड़ोस से अपने मामा को बुला लिया. दोनों ने पहले अपनी मजदूरी के 12-12 रुपये लिए. रत्‍नेश ने चावल खरीद कर पर‍िवार को द‍िया और फिर द‍िन भर बांस निकालने का काम किया. मजदूरी के उसी पैसे से सदा के परिवार ने भात खाया.

नदी से बांस निकालने के बाद सदा, नदी पार कर जंगल के रास्ते अपनी मंजिल (जहां रहकर पढ़ाई करते थे) की तरफ निकल पड़े. रास्ते उनकी मुलाकात साधु श्याम सुंदर से हुई. श्याम सुंदर संत होने के साथ-साथ ग्रामीण चिकित्सक भी थे. सदा, साधु का झोला लेकर साथ चलने लगे. रास्ते की बातचीत में साधु को साद की गरीबी और मजबूरी का पता चला. उन्होंने सदा को अपने क्लीनिक पर काम दे दिया. वहां काम करते हुए ही सदा ने संस्कृत में बीए किया. वहां सीखे काम की बदौलत आगे चल कर सदा ने रोजी कमाने के ल‍िए ‘झोला छाप डॉक्‍टर’ का भी काम क‍िया.

ब‍िहार में आई व‍िनाशकारी बाढ़ में क‍िए गए राहत कार्यों के चलते वह शरद यादव जैसे नेता की नजर में आए. बाद में एक पत्रकार ने उनके ल‍िए माहौल बनाया और महादल‍ित सम्‍मेलन करवाने की चुनौती रत्‍नेश सदा को स्‍वीकार करवा दी. इस सम्‍मेलन की सफलता के चलते 2010 में उन्‍हें जदयू से व‍िधायक का ट‍िकट म‍िला. तब से वह लगातार व‍िधायक हैं.

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