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कभी चलता था राजनीति से बॉलीवुड तक सहारा का सिक्का, 14 लाख लोगों को दी नौकरी, फिर एक दिन कैसे सब हो गया खत्म?

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सहारा ग्रुप बहुत लंबे समय तक भारतीय क्रिकेट टीम और भारतीय हॉकी टीम का स्पॉन्सर रहा था. एक समय पर यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता था. खबरों के मुताबिक, सहारा के पास लगभग 14 लाख कर्मचारी थे. कंपनी का मूल्यांकन 2 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक था. यह सब हासिल हुआ था एक सितारे के कारण जो बिहार के अररिया से निकलकर देश के व्यावसायिक आसमान पर छा गया था. इस सितारे का नाम था सुब्रत रॉय सहारा, जिन्हें उनकी कंपनी के कर्मचारी सहारा श्री के नाम से बुलाते थे.

सहारा समूह के संस्थापक सुब्रत रॉय का 75 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. वह लंबे समय से कैंसर समेत कई शारीरिक समस्याओं से पीड़ित थे. 12 नवंबर को उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वहां मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली. बुधवार को उनका पार्थिव शरीर लखनऊ के सहारा स्टेट में लाया जाएगा. जहां उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी जाएगी और उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. सहारा श्री के निधन पर सहारा इंडिया परिवार शोकाकुल है. 

सुब्रत रॉय का जन्म बिहार के अररिया में 10 जून 1948 को हुआ था. उनके पिता इंजीनियर थे और सुब्रत भी कोलकाता से शुरुआती पढ़ाई के बाद इंजीनियरिंग के लिए गोरखपुर चले गए. उन्होंने गोरखपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में बिजनेस की शुरुआत भी गोरखपुर से ही की. पढ़ाई में वहां उनका मन नहीं लगा.

सुब्रत रॉय ने अपने करियर की शुरुआत गोरखपुर में नमकीन-स्नैक्स बेचने से की थी. वह बिजनेस करना चाहते थे. उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर एक स्कूटर पर नमकीन-बिस्किट बेचना शुरू किया. वह अपने लैंब्रेटा स्कूटर पर जया प्रोडक्ट नाम का नमकीन बेचा करते थे. यह उनके व्यावसायिक करियर की शुरुआत थी. इसके बाद 1978 में उन्होंने गोरखपुर में एक छोटे से ऑफिस में सहारा समूह की नींव रखी. उन्होंने दोस्त के साथ मिलकर ही सहारा चिट फंड कंपनी की नींव रखी. यह स्कीम ऐसी थी कि इसे गांवों तक पहुंच मिल गई. एक समय था जब 100 रुपये की कमाई वाले लोग भी इसमें 20 रुपये का निवेश करके रिटर्न पा सकते थे. हालांकि, इस स्कीम पर 1980 में सरकार द्वारा रोक लगा दी गई.

इसके बाद सहारा ने हाउसिंग डेवलपमेंट के क्षेत्र में कदम रखा. हालांकि, वे यहीं नहीं रुके. रियल एस्टेट, फाइनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर, मीडिया, एंटरटेनमेंट, हेल्थ केयर, हॉस्पिटैलिटी, रिटेल, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी हर तरफ उन्होंने अपने पैर पसारे. वह भारत के दूसरे सबसे बड़े नियोक्ता भी बने. 1991 में सहारा ग्रुप ने राष्ट्रीय सहारा नाम का अखबार निकाला. बाद में कंपनी ने सहारा टीवी नाम से अपना चैनल भी शुरू किया. बता दें कि यह कंपनी मीडिया से लेकर रियल एस्टेट तक सभी उद्योगों तक फैली हुई थी.

हालांकि, ये उपलब्धि हासिल करने से पहले उन्हें एक हल्का झटका लगा जब एक इनकम टैक्स ऑफिसर की नजर उनके कारोबार पर पड़ी. प्रसनजीत सिंह नाम के इस अधिकारी को कुछ हेरफेर दिखाई दी तो उन्होंने इसकी जांच करनी चाही. लेकिन सहारा के पॉलिटिकल कनेक्शन उस समय बहुत मजबूत थे. इसी के बल पर अधिकारी का ट्रांसफर करा दिया गया.

सुब्रत रॉय ने मुंबई व लखनऊ समेत देश के कई इलाकों में जमीनें खरीदी. लखनऊ में तो उन्होंने सहारा नाम से एक पूरा इलाका ही बसा डाला था. उनके पास देशभर में 750 एकड़ से ज्यादा जमीन है. इतना ही नहीं सहारा के पास अमेरिका में 4400 करोड़ के 2 होटल भी हैं.

सहारा के लिए बड़ी मुसीबत तब खड़ी हुई जब उन्होंने अपनी 2 कंपनियों के लिए 2009 में सेबी से आईपीओ लाने की अनुमति मांगी. जैसा कि आमतौर पर होता है सेबी ने उनसे कंपनी से जुड़े विस्तृत दस्तावेज जमा करने को कहा. सहारा ने ऐसा किया और सेबी को उसमें बड़ी गड़बड़ियां नजर आईं. सेबी ने पाया कि इन कंपनियों ने बिना लिस्ट हुए ही 3 करोड़ लोगों से 24000 करोड़ रुपये जुटाए थे. यह नियमों का उल्लंघन था और इसके लिए सहारा पर 12000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया.

सेबी ने जब सहारा से निवेशकों के दस्तावेज मांगे तो कंपनी की ओर से 127 ट्रक डॉक्यूमेंट्स भेजे गए. मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी सेबी के पक्ष में फैसला दिया. सहारा को तगड़ा झटका तब लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को 24000 करोड़ रुपये निवेशकों को वापस करने के लिए कहा. इतना ही नहीं उन्हें निवेशकों को 15 फीसदी ब्याज के साथ इस रकम को वापस करने का आदेश दिया गया. सहारा ने फैसले को नहीं माना और वह कोर्ट में पेश भी नहीं हुए. कोर्ट की आदेश की अवहेलना के मामले में उन्हें 2014 में गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि, 2 साल बाद वह बेल पर जेल से बाहर आ गए लेकिन उनकी परेशानियां खत्म नहीं हुईं.

एक समय था जब सुब्रत रॉय जब क्रिकेट सितारों और बॉलीवुड सितारों के साथ एक भव्य समारोह की मेजबानी करते थे. कॉर्पोरेट टाइकून को नियमित रूप से विदेशी नेताओं, भारतीय राजनेताओं और अन्य प्रभावशाली हस्तियों के साथ भी देखा जाता था. सुब्रत रॉय ने 1978 में मात्र 2000 रुपये से बिजनेस शुरू किया था. कुछ ही समय में वह नई ऊंचाई पर पहुंच गए. सहारा के प्रभारी बने. सुब्रत रॉय ने देश के सबसे शक्तिशाली वित्तीय साम्राज्यों में से एक के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि, जब 24,000 करोड़ रुपये के सहारा फंड के कुप्रबंधन का आरोप सामने आया, तो उनकी सारी प्रसिद्धि धूल में मिल गई.

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