मनीष सिसोदिया के जेल चले जाने के बाद उनकी सरकारी जिम्मेदारियां आतिशी मार्लेना और सौरभ भारद्वाज में बांट दी गयीं, लेकिन राजनीतिक गतिविधियों की सारी ही जिम्मेदारी संजय सिंह पर आ गयी थी. संजय सिंह आम आदमी पार्टी के लिए सड़क से संसद तक मोर्चा संभालते थे. AAP के राजनीतिक फैसलों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हुआ करती थी. देश भर में संगठन के विस्तार का काम देखने के साथ साथ संजय सिंह विपक्षी दलों के साथ तालमेल बिठाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं. जो शख्स अकेले इतनी सारी जिम्मेदारियां निभा रहा हो, उसकी गैरमौजूदगी का असर आसानी से समझा जा सकता है. आम आदमी पार्टी बनने के पहले से ही मनीष सिसोदिया और संजय सिंह, अरविंद केजरीवाल के दायें और बायें हाथ हुआ करते थे. मनीष सिसोदिया आगे भी मोर्चे पर तैनात नजर आते थे, और परदे के पीछे ज्यादातर इंतजाम संजय सिंह ही देखा करते थे.
दिल्ली में सरकार बन जाने के बाद जब अरविंद केजरीवाल ने 2017 में पंजाब का रुख किया तो प्रभारी के लिए एक नहीं नाम सूझा - संजय सिंह. देखते देखते संजय सिंह ऐसे काम के कार्यकर्ता बन गये कि हर जगह वो आम आदमी पार्टी का चेहरा नजर आने लगे थे - कोई भी महत्वपूर्ण मीटिंग हो तो अरविंद केजरीवाल के साथ संजय सिंह जरूर जाते, और जहां केजरीवाल नहीं जाते वहां तो संजय सिंह को रहना होता ही था.
ये कहना तो मुश्किल है कि अरविंद केजरीवाल के लिए मनीष सिसोदिया का जेल जाना बड़ा झटका रहा या संजय सिंह की गिरफ्तारी, लेकिन इस बात में तो कोई दो राय नहीं कि अचानक अरविंद केजरीवाल की चुनौतियों चौतरफा बढ़ गयी हैं.
1. केजरीवाल खुद भी घिरने लगे हैं
भले ही आम आदमी पार्टी के नेताओं के सपोर्ट में विपक्षी दल केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बतायें - लेकिन ये विडंबना ही है कि जो अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला कर राजनीति में आये थे, उनके ज्यादातर करीबी साथी करप्शन के आरोपों से ही जूझ रहे हैं. दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री रहते सत्येंद्र जैन सबसे पहले मनी लॉन्ड्रिंग केस में जेल गये, लेकिन फिलहाल वो जमानत पर हैं. दिल्ली शराब नीति में गड़बड़ी को लेकर डिप्टी सीएम रहते मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था, बाद में वो प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्त में आ गये. अभी तक जेल में हैं - और अब संजय सिंह भी गिरफ्तार किये जा चुके हैं. खुद अरविंद केजरीवाल भी अपने सरकारी आवास की मरम्मत को लेकर फंस चुके हैं. सीबीआई ने इस मामले की भी जांच शुरू कर दी है - और वैसे ही केजरीवाल के एक और करीबी राघव चड्ढा पर भी जांच एजेंसियों की नजर बताई जा रही है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया से लेकर संजय सिंह की गिरफ्तारी तक, सभी एक्शन को गैरकानूनी बता रहे हैं, लेकिन अदालत पहुंच कर पैरवी लगता है, कमजोर पड़ जाती है. तभी तो मनीष सिसोदिया को अब तक जमानत नहीं मिल सकी है. मनीष सिसोदिया की जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक महत्वपूर्ण सवाल ये उठाया गया है कि दिल्ली शराब केस में आम आदमी पार्टी को पार्टी क्यों नहीं बनाया गया?
इस बहस में भी अरविंद केजरीवाल ही उलझते नजर आ रहे हैं. क्योंकि सरकार हो या आम आदमी पार्टी उनकी मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता. दिल्ली का मुख्यमंत्री होने के नाते तो वो किसी महत्वपूर्ण फैसले से अनभिज्ञता भी जाहिर नहीं कर सकते, कोई भी नीतिगत फैसला मुख्यमंत्री की मंजूरी के बगैर हो सकता है क्या? जिस तरीके से संजय सिंह की गिरफ्तारी हुई है, उसमें सोशल मीडिया पर एक क्रोनोलॉजी भी समझायी जा रही है. सूत्रों के हवाले से शराब घोटाला केस के एक आरोपी दिनेश अरोड़ा के सरकारी गवाह बन जाने का पता चला है. कहा जा रहा है कि संजय सिंह ने ही दिनेश अरोड़ा को अरविंद केजरीवाल से मिलवाया था - और संजय सिंह के कहने पर ही मनीष सिसोदिया को 82 लाख रुपये का चेक दिया था, लेकिन वो दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए था. भले ही ये पुलिसिया कहानी लगती हो. भले ही ये ईडी के अधिकारियों की लिखी स्क्रिप्ट हो, लेकिन घेरे में तो अरविंद केजरीवाल ही फंस रहे हैं.
2. विपक्षी दलों के साथ अब डील कौन करेगा?
एनसीपी नेता शरद पवार ने बताया है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल कांग्रेस को लोक सभा की तीन सीटें देने को तैयार हो गये हैं. दिल्ली में लोक सभा की सात सीटें हैं और सभी पर बीजेपी का कब्जा है. मान लेते हैं कि सीटों का बंटवारा फाइनल नहीं हुआ है, लेकिन डील भी तो संजय सिंह की बदौलत ही संभव हो पा रही है. आम आदमी पार्टी और और विपक्षी दलों के बीच संजय सिंह सेतु बने हुए थे. चाहे वो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की बुलाई हुई मीटिंग ही क्यों न हो, कांग्रेस से तनाव भरे रिश्ते के बावजूद संजय सिंह वहां हर बार नजर आये.
दिल्ली की ही तरह पंजाब का मामला भी है. और उन राज्यों में भी जहां आम आदमी पार्टी की नजर है, या फिर गुजरात जैसे राज्य जहां विधानसभा चुनाव में उसे 5 सीटें मिल चुकी हैं. आम आदमी पार्टी में और कोई भी नेता ऐसा तो नजर नहीं आता जो संजय सिंह की तरह ये काम कर सके. फर्ज कीजिये मनीष सिसोदिया बाहर भी आ जाते हैं तो भी ये काम उनके लिए मुश्किल है. वो अरविंद केजरीवाल के प्रतिनिधि बन कर जनता के बीच खड़े हो सकते हैं, सरकारी कामकाज संभाल सकते हैं, लेकिन विपक्षी नेताओं के तालमेल के लिए नेता के अथॉरिटी लेटर के साथ-साथ अपनी काबिलियत भी बहुत मायने रखती है.
3. राज्यों में संगठन कौन खड़ा करेगा?
अरविंद केजरीवाल को जब आम आदमी पार्टी की तरफ से राज्य सभा में अपने नेता को भेजने की बारी आई तो कई सारे दावेदार सामने खड़े थे, लेकिन बाजी मारी संजय सिंह ने. नतीजा ये हुआ कि अरविंद केजरीवाल को कुमार विश्वास की नाराजगी झेलनी पड़ी और आशुतोष तो आम आदमी पार्टी ही छोड़ दिये. ये तो मानना ही पड़ेगा कि अरविंद केजरीवाल को संजय सिंह से जो अपेक्षा रही होगी, कभी निराश नहीं हुए होंगे. तभी तो दिल्ली बाहर 2017 में पंजाब का रुख किया तो संजय सिंह को ही विधानसभा चुनावों के लिए प्रभारी बनाया गया. संजय सिंह AAP की सरकार तो नहीं बनवा सके, लेकिन मुख्य विपक्षी पार्टी तो बना ही दिया. बाद में वो यूपी और बिहार जैसे राज्यों के प्रभारी बनाये गये थे, साथ में पूर्वोत्तर और अन्य राज्यों में भी संदीप पाठक के साथ अहम भूमिका में रहे हैं. आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के साथ साथ वो पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति और राष्ट्रीय कार्यकारी के सदस्य भी हैं. जाहिर है, संजय सिंह को भी अगर मनीष सिसोदिया की तरह जेल में लंबा वक्त गुजारना पड़ा तो आम आदमी पार्टी के साथ साथ अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें तो बढ़ेंगी ही.
4. मोदी सरकार से आगे बढ़ कर मोर्चा कौन लेगा?
संजय सिंह की गिरफ्तारी पर राज्य सभा सांसद संजय राउत का कहना है, 'संजय सिंह एक लड़ने वाले जुझारू आदमी हैं... नेता हैं... साफ-सुथरे चरित्र के आदमी हैं... बस बोलते हैं सरकार के खिलाफ... सवाल खड़े करते हैं.' खुद भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में काफी समय बिता चुके संजय सिंह के मामले में भी करीब करीब ऐसी ही अवधारणा रही है. संजय सिंह भी संजय राउत और एनसीपी नेता नवाब मलिक की तरह ही आक्रामक बयानों के लिए जाने जाते हैं. संसद में भी और प्रेस कांफ्रेंस या टीवी बहसों में भी. संजय सिंह का ये रूप तब भी देखने को मिला था जब अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं की तोड़ फोड़ के बाद वो एक टीवी बहस में हिस्सा ले रहे थे - और दूसरी तरफ से डिफेंड करने के लिए बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या आये हुए थे. राजनीति में भी माहौल बनाना जरूरी होता है. समर्थकों को मोटिवेट करने के लिए ये सब जरूरी होता है. कुछ हो न हो, समर्थकों को लगता है कि उनका नेता लड़ रहा है. आगे बढ़ कर दो-दो हाथ कर रहा है - संजय सिंह की गैरमौजूदगी में आम आदमी पार्टी का ये पक्ष भी कमजोर ही लगेगा.