Chhapra : सारण जिले का मढ़ौरा जो कभी बिहार का मैनचेस्टर कहलाता था। यहां पर चार-चार फैक्ट्रियां थी। जिसमें, काफी सारे कामगार काम करते थे। यह ऐसा इलाका था जहां पर 24 घंटे फैक्ट्री की चिमनी से धुआं निकलता रहता था और कामगार तीनों शिफ्ट में काम करते थे लेकिन, एक समय ऐसा भी आया जब यहां पर एक-एक करके चारों फैक्ट्रियां बंद हो गई और कामगार बेरोजगार हो गए। इसके बाद से यह कस्बा वीरान हो गया। वहीं यूपीए और एनडीए की सरकार बनती रही। लेकिन, मढ़ौरा लेकर लगातार अटकलें का दौर जारी रहा की बंद पड़ी फैक्ट्रियां चालू होगी या नहीं। लेकिन, यूपीए और इंडिया की सरकार में मढ़ौरा क्षेत्र में एक डीजल इंजन निर्माण की बात शुरू हुई और धीरे-धीरे इस कारखाने में मूर्त रूप लेना शुरू किया। हालांकि, दोनों गठबंधन इसे अपनी उपलब्धि बताते हैं।
फिलहाल, यहां पर डीजल इंजन के निर्माण तो नहीं होता है। लेकिन, उसका असेंबलिंग किया जाता है और मरहौरा में असेंबल्ड इंजन पर मेड इन गांधीधाम गुजरात और रोजा उत्तर प्रदेश लिखा जाता है। इसको लेकर भी यहां पर काफी राजनीति हुई लेकिन, आज भी किसी भी इंजन पर मेड इन मढ़ौरा नहीं लिखा जाता है। वहीं भारत की औद्योगिक क्रांति के नए अध्याय के साथ जुड़ रहा है। इस लोकोमोटिव फैक्ट्री में बना इंजन पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी को निर्यात किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 20 जून को रेल इंजन की खेप की रवाना करेंगे। यहां की वेबटेक डीजल लोकोमोटिव फैक्ट्री ने न सिर्फ भारतीय रेलवे को नई ऊर्जा दी है।
बल्कि, अब यह संयंत्र भारत को वैश्विक लोकोमोटिव मेन्युफेक्चरिंग हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में बढ़ रहा है। यह पीएम मोदी के मेक इन इंडिया के विजन को पूरा करेगा। वहीं इस फैक्टरी की स्थापना 2018 में की गई थी। 2018 में स्थापित यह संयंत्र अब तक 729 शक्तिशाली डीजल इंजन बना चुका है। इनमें 4500 एचपी के 545 और 6000 एचपी के 184 इंजन शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया विजन को साकार कर रही है। पहली बार भारत के किसी राज्य से विदेश के लिए लोकोमोटिव इंजन का निर्माण और निर्यात हो रहा है। 26 मई को दक्षिण अफ्रीका के गिनी देश के तीन मंत्रियों ने संयंत्र का दौरा किया था। इसके बाद 140 लोकोमोटिव इंजनों की डील फाइनल की गयी थी। इसका नाम कोमो दिया गया था। यह डील करीब तीन हजार करोड़ रुपये की है।
छपरा से पंकज श्रीवास्तव की रिपोर्ट