बिहार की नीतीश सरकार और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के बीच किसी-न-किसी बात को लेकर टकराव की खबरें आती रहती हैं, लेकिन इस बार बात मुख्यमंत्री के सबसे बड़े ड्रीम प्रोजेक्ट को लेकर आ गई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के गांवों में आजीविका के संसाधन बढ़ाते हुए गरीबी हटाने के लिए जिस बिहार रूरल लाइवलीहुड प्रोमोशन सोसायटी (जीविका) को न केवल शुरू कराया, बल्कि राज्य की ज्यादातर योजनाओं से जोड़कर इसका लगातार विस्तार किया, उसके अंदर भ्रष्टाचार की जानकारी पहले भी सामने आती रही है. इस बार यह जानकारी इसलिए गंभीर हो गई, क्योंकि जीविका में रहे राज्य स्तर के एक बड़े अधिकारी ने सोशल मीडिया के जरिए कुछ जानकारी सार्वजनिक की और यह स्क्रीनशॉट के रूप में भाजपा के फायरब्रांड सांसद और पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह के पास पहुंच गई. मंत्रालय ने बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग को जांच कर रिपार्ट भेजने को कहा है.
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को बिहार प्रदेश जीविका कैडर संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप कुमार सिंह ने 29 जुलाई को पटना से एक ईमेल भेजा था. इस ईमेल में जीविका के राज्य परियोजना प्रबंधक (मानव संसाधन) आनंद शंकर के ढाई दर्जन सोशल मीडिया पोस्ट का स्क्रीनशॉट भेजा गया है. जीविका की वेबसाइट पर आनंद शंकर अब भी इसी पद पर कायम हैं, हालांकि उन्हें अंदरूनी तौर पर दरकिनार किया जा चुका है. आनंद शंकर ने जीविका में हजार करोड़ से ज्यादा के घोटाले के साथ नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की जानकारी अपने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दी थी.
वह लगातार ऐसे पोस्ट लिख रहे हैं. एक हिंदी न्यूज वेबसाइट ने 27 जुलाई से अबतक कई बाद आनंद शंकर से मोबाइल पर संपर्क कर इस बारे में प्रमाण मांगा, लेकिन वह कह रहे हैं कि जांच होगी तो कागजात सौंपेगे. केंद्रीय मंत्रालय की ओर से बिहार के ग्रामीण विकास विभाग के पास जांच के लिए चिट्टी आने के बाद भी वह लगातार सोशल मीडिया के जरिए कुछ-न-कुछ जानकारी संकेत के रूप में दे रहे हैं. बिहार प्रदेश जीविका कैडर संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप कुमार सिंह ने हिंदी न्यूज वेबसाइटसे कहा कि जब कोर्ट या सरकार सोशल मीडिया पोस्ट पर स्वत: संज्ञान लेने में सक्षम है तो इसकी जांच कराने में दिक्कत क्यों हो रही है?
जीविका की वेबसाइट पर राज्य परियोजना प्रबंधक (मानव संसाधन) के रूप में कायम आनंद शंकर ने सोशल मीडिया पोस्ट पर संकेतों के जरिए नियुक्ति घोटाले और गबन की जानकारी दी है. इन घोटालों में से कुछ हिस्सा उनके पद पर रहते हुए भी मीडिया में छह साल पहले आए थे. तब मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट के कारण किसी ने मुंह नहीं खोला था, लेकिन अब आनंद शंकर के सोशल मीडिया पोस्ट के स्क्रीनशॉट के आधार पर जांच के लिए चिट्टी आ गई है. आनंद शंकर ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए संकेतों में जीविका निदेशक राम निरंजन सिंह पर नियुक्तियों में गड़बड़ी-मनमानी और गबन का आरोप लगाया है. इसमें बताया गया है कि किन-किन जिलों में गबन हुआ है, किस-किस तरीके से सरकारी फंड का बंदरबांट किया गया है और किन-किन लोगों ने आरोप सामने आने के बावजूद मामले को दबाने में कैसी भूमिका निभाई.
जीविका के राज्य परियोजना प्रबंधक (मानव संसाधन) आनंद शंकर ने सिस्टम से किनारे किए जाने के बाद अपने मानव संसाधन विभाग के अंदर हुई नियुक्तियों पर भी सवाल उठाया है. सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा गया है कि नियुक्तियों के करीब 70 प्रतिशत कर्मियों का अनुभव प्रमाण पत्र फर्जी है। गलत सर्टिफिकेट के आधार पर नियुक्ति हासिल करने वालों की उन्होंने जीविका प्रोजेक्ट के सीईओ से जांच की भी अपील की थी. कंसल्टेंट रखने में हुए घोटाले से इनके भुगतान में भी फर्जीवाड़े का संकेत दिया गया है. इसके अलावा यह भी बताया गया है कि जिन पदों के लिए 12 साल के अनुभव की दरकार थी, उसमें भी हेरफेर कर जबरन नियुक्तियां कराई गईं और मना करने वाले को ही सजा दी गई. सीईओ से ग्राम संगठन एवं संकुल संघों की जांच के लिए अपील करते हुए यह भी लिखा गया है कि सिर्फ इसकी जांच से करोड़ों का घोटाला सामने आ जाएगा.