Daesh NewsDarshAd

मोरों को नहीं मिला ठिकाना, बेगाना हुआ Bihar का मोर गांव, CM Nitish की घोषणा के बाद भी नहीं हुआ विकास

News Image

बिहार के मोतिहारी में कल्याणपुर प्रखंड का माधोपुर गोविंद मोर गांव के रूप में चर्चित रहा है. यहां नाचते-झूमझूमते मोरों को देखने दूर दूर से लोग आते थे. बारिश की आहट मात्र से मोरों का नृत्य करना देखते बनता था. लेकिन मोरों को ठिकाना नहीं मिलने से मोर गांव आज बेगाना दिख रहा है. लिहाजा ग्रामीणों को पर्यटन स्थल के रूप में मोर गांव के विकसित होने का सपना धरा का धरा रह गया. इसका ग्रामीणों में काफी मलाल है. 

मुख्यमंत्री ने सेवा यात्रा के दौरान किया था गांव का दौरा

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सेवा यात्रा के दौरान अप्रैल 2012 में मोर ग्राम का दौरा किया था. उस समय उन्होंने मोर ग्राम को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का आश्वासन दिया था. उनके निर्देश पर वन विभाग व पशु पक्षी संरक्षक टीम ने भी मोर ग्राम का दौरा किया था. इसके बावजूद माधोपुर गोविंद गांव मोर अभ्यारण्य नहीं बन सका.

200 से घटकर मोरों की संख्या 10-12 पहुंच चुकी है

छह दशक पहले ग्रामीणों द्वारा बाहर से मोर खरीदकर लाए गए थे. लगभग 1950 में माधोपुर गोविंद गांव के कुछ लोग बिहार के प्रसिद्ध सोनपुर पशु मेला देखने गए थे. वहां से लौटते वक्त एक ग्रामीण मोर-मोरनी का जोड़ा अपने साथ लेकर आया था। जोड़ा को गांव में खुला छोड़ दिया गया. मोर-मोरनी का वह जोड़ा उस गांव में विचरण करता था. गांव के किसान उन्हें फसलों के बीज खिलाते थे. तब ग्रामीण अन्य पशु-पक्षियों और बाहरी व्यक्तियों से उस जोड़े की रक्षा भी करते थे.

धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़कर 200 से ज्यादा पहुंच गयी थी. लेकिन बाद के दिनों में गन्ना व सब्जी के फसलों में कीटनाशक डाले जाने व भेडिय़ों द्वारा शिकार किये जाने के कारण मोरों की संख्या घटने लगी. साथ ही सरकारी स्तर पर संरक्षण नहीं मिलने से आज 10-12 मोर ही बच गये हैं. आज भी इनको कोई ठिकाना नहीं मिल पाया है. 

रिटायर्ड फौजी ने उठाया था संरक्षण का बीड़ा

गांव के रिटायर्ड फौजी मोहन सिंह ने मोरों के संरक्षण का बीड़ा उठाया था. मोरों की प्यास बुझाने व जलक्रीड़ा के लिए बड़ा तालाब भी खुदवाया गया था. लेकिन मोरों के रहने सहने के लिए कोई बसेरा नहीं मिला. मोर कभी बांसवारी तो कभी बगीचे में भटकते मिल जाते थे. मोरों को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते थे. लेकिन अब इनके वजूद पर संकट खड़ा हो गया है. 

मनीछपरा पंचायत के मुखिया गुड्डू सिंह बताते हैं कि 2012 में अपनी सेवा यात्रा के दौरान ग्रामिणों के विशेष अनुरोध पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोर गांव पहूंचे थे. वहीं उन्होंने गांव का भ्रमण किया था और मोर गांव को पर्यटक स्थल के रूप में विकसीत करने की घोषणा की थी तब लोगों में गांव के विकास को लेकर एक उम्मीद जगी थी लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी गांव का विकास नहीं होने से ग्रामिणों मे मायूसी है.

मुखिया ने बताया कि सेवा यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री के दौरे से मोर ग्राम के विकसित होने व मोरों के संरक्षण की उम्मीद जगी थी. लेकिन सरकारी स्तर पर मोरों को कोई संरक्षण नहीं मिला. 

गांव के बुजूर्ग रामाश्रय सिंह बताते हैं कि मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद मुख्य वन संरक्षक एवं पक्षी विशेषज्ञों ने मनीछपरा गांव का दौरा भी किया था. वहीं लोगों को इस दिशा मे शीघ्र कार्यवाई का आश्वासन भी दिया था लेकिन आज तक कोई पलटकर नहीं आया. नीतीश कुमार वर्ष 2012 में जब आए थे तो हमारे गांव में 200  से ऊपर मोरों की संख्या थी लेकिन ना जाने किसकी नजर लग गई की यह राष्ट्रीय पक्षी विलुप्त होने के कगार पर आ गया है. मोर गांव आज भी अपने विकास की राह के लिए टकटकी लगाए देख रहा है. 

बता दें कि माधोपुर गांव में पर्यटन की असीम संभावना है और सरकार को इस मामले में गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है जिससे मोर गांव पर्यटन के रूप मे विकसीत हो सके. साथ ही सूखे पड़े जलाशयों को मनरेगा या कोई और योजना से तैयार करा कराया जाए. जिसमें सालों भर मोर को पानी पीने के लिये मिले तो मोर इधर उधर नहीं भटक कर आएंगे और उसकी सुरक्षा भी हो पाएगी और मोर की संख्या भी एकबार फिर से बढ़ने लगेगी.

Darsh-ad

Scan and join

Description of image