सेम सेक्स मैरिज यानी कि समलैंगिक विवाह की मांग करने वाली याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. इस मुद्दे पर काफी देर सुनवाई के बाद बड़ा फैसला सामने आया है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के द्वारा विवाह को कानूनी मान्यता और मौलिक अधिकार देने से इनकार कर दिया गया है. बता दें कि, इसे लेकर माना जा रहा था कि अदालत से कोई बड़ा फैसला आ सकता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर कोई निर्णय नहीं दिया और गेंद सरकार के पाले में डाल दी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि, हम ना तो कानून बना सकते हैं और ना ही सरकार पर इसके लिए दबाव डाल सकते हैं.
लेकिन, सुनवाई के दौरान सेम सेक्स मैरिज को लेकर कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी की गई. बात कर लें फैसले से जुड़े 5 प्रमुख बातों की तो उनमें शामिल है-
1. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है. इसका कहना है कि ये काम सरकार का है.
2. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम को रद्द करने से इनकार कर दिया.
3. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि, सरकार एक कमिटी बना सकती है, जो समलैंगिक जोड़े से जुड़ी चिंताओं का समाधान करेगी और उनके अधिकार सुनिश्चित करेगी.
4. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि विपरीत लिंग वाले नागरिक से ट्रांसजेंडर नागरिक को मौजूदा कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है, यानी एक समलैंगिक लड़का एक लड़की से शादी कर सकता है.
5. पांच जजों की पीठ ने बहुमत से ये फैसला दिया है कि समलैंगिक जोड़े को बच्चे को गोद लेने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है.
बता दें कि, फैसला सुनाने के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने भी कई अहम बातें कही. जैसे -
* चीफ जस्टिस ने कहा कि, समलैंगिकता एक ऐसा विषय है, जो सिर्फ शहर के उच्च तबके तक सीमित नहीं है. इस समाज के लोग हर जगह हैं. उन्होंने सरकार से इस शादी को कानूनी मान्यता देने को कहा.
* सीजेआई ने बताया कि सरकार का काम नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है. विवाह कानूनी दर्जे वाला है, लेकिन इसे मौलिक अधिकार नहीं कहा जाता है. उन्होंने कहा कि पिछले 200 सालों में विवाह में कई तरह के बदलाव आए हैं.
* चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट को समलैंगिक विवाह के लिए निरस्त कर देना गलत है. लेकिन ये जरूरी है कि सरकार इस तरह के संबंधों को कानूनी दर्जा दे, ताकि उन्हें उनके जरूरी अधिकार मिल सकें.
* सीजेआई चंद्रजूड़ ने कहा कि हर किसी को अपना साथी चुनने का अधिकार है. जिस तरह से दूसरों को ये अधिकार मिला है, ठीक वैसे ही समलैंगिक तबके को भी अपने साथी के साथ रहने का अधिकार है. ये अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है.
* फैसले में सीजेआई ने कहा कि अविवाहित जोड़े को बच्चा गोद लेने से रोकने वाला प्रावधान गलत है, जिसकी वजह से समलैंगिक जोड़े को भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. ये अनुच्छेद 15 का हनन है.
* सीजेआई ने कहा कि सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव नहीं किया जाए. ऐसे जोड़े के खिलाफ एफआईआर तभी दर्ज की जाए, जब शुरुआत जांच पूरी हो जाए. पुलिस को समलैंगिक जोड़ों की मदद करनी चाहिए.
* चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में सिफारिश की कि केंद्र सरकार को एक कमिटी बनानी चाहिए, जिसका काम एक ऐसी व्यस्था बनाना हो, जिसमें राशन कार्ड, बैंक में नॉमिनी, मेडिकल जरूरतों के लिए फैसला लेने, पेंशन जैसे लाभ समलैंगिक जोड़े को मिल सके.