अंग्रेजों के जुल्म की कहानी को अपने आप में संजोकर खड़ी एक ऐसी पेड़ जो आज रख-रखाव के अभाव में सूख तो गई है लेकिन विगत 100 वर्षों से इस स्थान पर आज भी खड़ी है. जी हां, हम बात कर रहे हैं मोतिहारी के तुरकौलिया की जहां एक नीम का पेड़ आज भी अंग्रेजों के जुल्म की गवाही दे रहा है. मोतिहारी जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित तुरकौलिया गांव जो आज एक अंचल बन चुका है, वहां पर खड़ी पेड़ अंग्रेजों के जुल्म की कई दास्तां को बयां करती है. आपको बता दें कि, अंग्रेजी हुकूमत के दौरान पूर्वी चंपारण जिले में नील की खेती व्यापक पैमाने पर की जाती थी. साथ ही जो किसान नील की खेती करने से इनकार करते थे, उसे अंग्रेज अफसर के सिपाही इस पेड़ में बांधकर कोड़े से पिटाई करते थे.
यह सब की भी गवाही यह पेड़ आज भी उस जुल्मों के सितम की कहानी बयां करती है. महात्मा गांधी जब पहली बार राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर पूर्वी चंपारण पहुंचे तो उन्हें यहां के लोगों ने यह बताया कि, महात्मा इस चम्पारण की धरती पर अंग्रेजों का अत्याचार काफी बढ़ा हुआ है. जिसके कारण यहां के किसान काफी व्यथित हैं. यह सुनकर महात्मा गांधी कुछ लोगों को साथ लेकर मोतिहारी के तुरकौलिया पहुंचे. जो 4 अगस्त 1917 का दिन था, जिसकी गवाही आज भी यहां लगे शिलालेख पर उल्लेखित हैं. जब महात्मा गांधी तुरकौलिया पहुंचे तो वहां उन्हें यह बताया गया कि, यह वही पेड़ है जिस पर अंग्रेजों ने कितने ही नीरीह और बेबस लाचार किसानों को बांधकर कोड़े से पिटाई की है. महात्मा गांधी ने उस पेड़ को देखा साथ ही वहां के लोगों से उनका हाल-चाल भी पूछा और वापस मोतिहारी लौट आए.
इसके बाद मोतिहारी से ही चंपारण सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत हुई और अंग्रेजों को भारत छोड़कर भागना पड़ा था. दिन बितता गया समय बितता गया लेकिन अंग्रेज अफसरों की वह दी हुई जख्म को अपने में संजोकर वह पेड़ आज से कुछ वषों पहले तक खड़ा था. लेकिन, रख-रखाव के अभाव में इस ऐतिहासिक पेड़ ने अपने दम को तोड़ दिया और आज सिर्फ एक बेजान-सी तस्वीर के रूप में खड़ी है. जब आजादी के बाद जिला प्रशासन को इस बात की खबर लगी तो जिला प्रशासन ने उस जगह पर उस नीम के पेड़ को धरोहर के रूप में रखने के लिए चारों तरफ से बाउंड्री वॉल भी कराया. साथ में एक शिलालेख भी लगाया, जिस पर तमाम बातें वर्णित है. महात्मा गांधी कब इस जगह पर आए थे और उन्होंने क्या देखा था. तस्वीर भले ही पुरानी हो लेकिन आज भी अंग्रेजी हुक्मरानों का वह दर्द जिसे उन्होंने दिया उसे यह पेड़ बयां कर ही जाती है.
मोतिहारी से प्रशांत कुमार की रिपोर्ट