सुपौल के सरकारी स्कूल की व्यवस्था आए दिन सुर्खियों में रहती है. ताजा मामला सदर प्रखंड के मलहनी पंचायत से जुड़ा है. जहां, प्राथमिक विद्यालय सिमरा टोला मालिकाना स्कूल की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी और स्कूल का भवन वर्ष 2009 में बन कर तैयार हो गया. लेकिन, स्कूल जाने के लिए आज तक विद्यालय को रास्ता का प्रबंध नहीं किया जा सका है. जिसके चलते बच्चों और शिक्षकों को स्कूल जाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. हाल यह है कि, स्कूल नहीं पहुंच पाने के कारण कई दिनों से स्कूल का संचालन सड़क किनारे एक दुकान के बरामदे पर किया जाने लगा है.
हालांकि, जब सुखाड़ का समय रहता है तो बच्चे पगडंडी के सहारे किसी तरह स्कूल पहुंच जाते हैं. लेकिन, बारिश के दिनों में स्कूल पहुंचना न बच्चे के वश में रहता है और न शिक्षक के वश में. दरअसल, विद्यालय के तीन तरफ पानी भरा रहता है और एक तरफ निजी व्यक्ति का घर. ऐसे में विद्यालय जाने का कोई रास्ता नहीं है. खासकर बारिश के दिनों में स्कूल का संचालन बेहद ही कठिन हो जाता है. ऐसी स्थिति में वैकल्पिक रूप से इस स्कूल के बच्चों को स्कूल के पास ही सड़क किनारे एक दुकान के बरामदे पर बैठाकर पठन-पाठन का कार्य होता है.
खास बात यह भी है कि, सदर प्रखंड के मलहनी पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय सिमरा टोला मालिकाना में ही एक और अन्य विद्यालय नव सृजित विद्यालय थलहा मुसहरी परसरमा को भी वर्ष 2015 में ही शिफ्ट कर दिया गया है. इस तरह दोनों विद्यालयों को मिलाकर कुल 133 छात्र छात्राएं नामांकित हैं और कुल 5 टीचर हैं. लेकिन, पढ़ने के लिए उचित जगह नहीं मिलने के कारण बच्चों के भविष्य पर लगातार खतरा मंडरा रहा है.
वैसे शिक्षा को सुधारने के लिए सरकार बड़ी-बड़ी बातें करती है. लगातार अपर मुख्य सचिव विभिन्न जिलों के स्कूलों का दौरा कर इसका जायजा ले रहे हैं. लेकिन, जब स्कूल जाने के लिए रास्ता ही नहीं हो तो बच्चे स्कूल कैसे पहुंचेंगे. क्या सड़क किनारे किसी दुकान के बरामदे पर बैठ कर गुणात्मक शिक्षा मिल सकती है? खास बात यह भी है कि सूबे के शिक्षा मंत्री शिक्षा के सुधार को लेकर जो बातें कहते हो लेकिन धार्मिक बातों को लेकर वो खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं.
मालूम हो कि, साल 2023 फरवरी में समाधान यात्रा के तहत खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस मल्हनी पंचायत का दौरा कर चुके हैं. बावजूद इसके इस पंचायत की सूरत नहीं बदल सकी है. ऐसे में अब देखना लाजिमी होगा कि, इस विद्यालय के बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए विभाग कब तक पहल कर पाती है. दूसरी तरफ गौर करने वाली बात यह भी है कि, इस पर शिक्षा विभाग के अधिकारी एक शब्द भी बोलने को तैयार नहीं है.
सुपौल से पियूष राज की रिपोर्ट