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अमर शहीद खुदीराम बोस की 115वीं शहादत दिवस, मुजफ्फरपुर में दी गई श्रद्धांजलि

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अमर शहीद खुदीराम बोस की 115वीं शहादत दिवस मुजफ्फरपुर के खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में फांसी स्थल पर सम्मान पूर्वक मनाया गया. इस अवसर पर तिरहुत प्रमंडल के आयुक्त, आईजी, डीएम, एसएसपी सहित बड़ी संख्या में लोगों ने पुष्प और माला से श्रद्धांजलि दी. सुबह-सुबह जेल के अंदर फांसी स्थल और सेल में ये कार्यक्रम आयोजित हुआ. सेंट्रल जेल में अहले सुबह अमर शहीद खुदीराम बोस को जेल व जिला प्रशासन की ओर से श्रद्धांजलि दी गई. अमर शहीद खुदीराम बोस के गांव मिदनापुर से आए उनके परिवार के लोगों ने गीत गाकर श्रद्धांजलि अर्पित की. इसके साथ ही पहले अमर शहीद के सेल में उनके तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया. 

इसके बाद लोग सेल से फांसी स्थल पर आए. फांसी स्थल पर जेल के अधिकारियों, आईजी पंकज कुमार, डीएम प्रणव कुमार, एसएसपी राकेश कुमार ने श्रद्धांजलि अर्पित की. वहीं, उनकी आत्मा की शांति के लिए मौन भी रखा गया. फिर जेल के पार्क में बने शहीद खुदीराम बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया और सलामी भी दी गई. केंद्रीय कारा को सजा कर रखा गया था. जेल को रंगीन बल्ब और फूल-पत्तियों से सजाया गया था. बता दें कि, फांसी की सजा सुनाने के बाद खुदीराम बोस ने अपनी चार अंतिम इच्छाएं पूरी करने का आग्रह किया था. लेकिन, अंग्रेजों ने इनकार कर दिया था. 

उसमें अपनी माटी चूमने से लेकर काली मां की चरणामृत पीने की इच्छाएं शामिल थीं. 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर के तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश किंग्सफोर्ड को मारने के लिए बग्घी पर खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चाकी ने बम फेंका था. लेकिन, उस बग्घी में दो यूरोपियन महिलाओं की मौत हो गई थी. इसके बाद दोनों भाग निकले. खुदीराम बोस को समस्तीपुर के पूसा के पास से पकड़ लिया गया जबकि प्रफुल्ल चाकी ने मोकामा घाट पर अंग्रेजों से घिरने पर खुद को गोली मार ली थी. केस की सुनवाई के दौरान खुदीराम बोस को दोषी पाते हुए फांसी की सजा सुनाई गई. 11 अगस्त 1908 को तड़के सुबह 3 बजकर 55 मिनट पर मुजफ्फरपुर के केंद्रीय कारा में खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई. मुजफ्फरपुर की धरती पर आज 115 साल पुराना इतिहास एक बार फिर जिवंत हुआ और खुदीराम अमर रहे के नारे गूंजे. 

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