देश के 77वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के आन बान और शान के प्रतीक तिरंगे का औरंगाबाद में रंग तो एक दिखा लेकिन रूप दो दिखे. एक रूप में रंगों और खुशियों की रंगीनी रही. तो वहीं दूसरे रूप में रंगीनी तो थी लेकिन साथ में गमगीनी भी. अवसर था 77वें स्वतंत्रता दिवस के दिन पर शहीद सैनिक की अंतिम विदाई का. एक ओर शान से तिरंगा लहरा रहा था तो दूसरी ओर तिरंगे में लिपटा शहीद अंतिम यात्रा कर रहा था. एक ओर मुख्य समारोह में औरंगाबाद के जिलाधिकारी शहर के गांधी मैदान में तिरंगे का ध्वजारोहन कर सलामी दे रहे थे तो दूसरी ओर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान औबरा प्रखंड मुख्यालय के दोमुहान स्थित शमशान में अपने शहीद साथी संजय कुमार दुबे को संगीनें झुका कर सलामी दे रहे थे. फायर झोंक कर अंतिम विदाई दे रहे थे.
उधर, डीएम ने झंडोतोलन समारोह में परेड की टुकड़ी को अनुमति देकर कार्यक्रम का विसर्जन कराया. इधर, बीएसएफ के जवानों ने फायर झोंक कर शहीद साथी को अंतिम विदाई देकर विसर्जन किया. इस दौरान शहीद के बड़े पुत्र स्वस्तिक (12) ने अपने पिता को मुखाग्नि दी. मुखाग्नि के बाद जैसे-जैसे अग्नि तेज होती गई, वैसे-वैसे परिजनों की आंखों से आंसूओं की धारा तेज होती गई. इस मौके पर भारी संख्या में स्थानीय नागरिक, गणमान्य लोग, ओबरा के शासन-प्रशासन के अधिकारी, जन प्रतिनिधि एवं शहीद सैनिक के परिजन मौजूद रहे. इस दौरान सबकी आंखें नम रही और सभी ने नम आंखों से शहीद सैनिक को अंतिम विदाई दी. अंतिम विदाई के दौरान का माहौल पूरी तरह गमगीन रहा.
तिरंगे में लिपटा शव आते ही चित्कार करने लगे परिजन
इसके पूर्व सोमवार को देर रात शहीद जवान का शव लेकर राजस्थान के जैसलमेर से बीएसएफ के अधिकारी ओबरा के पंडित मुहल्ला स्थित पैतृक घर पर पहुंचे. शव लेकर आए वाहन पर शहीद जवान का कॉफिन देखते ही चित्कार कर उठे. परिजनों की चीख-पुकार से रात के सन्नाटें को भेदते हुए पूरा मुहल्ला जाग उठा. मुहल्ले के लोग अपने घरों से निकलकर शहीद जवान के घर पर आकर परिजनों को सांत्वना देने लगे. परिजनों के रूदन से मुहल्ले के लोगों की भी आंखें नम हो गई. लोगों के ढांढ़स बंधाने के बाद परिजन कुछ देर के लिए शांत हुए. फिर सुबह होने का इंतजार होने लगा. सुबह होते ही अंतिम संस्कार की तैयारी हुई. इसके बाद आठ बजे के करीब शहीद सैनिक की शव यात्रा निकली. शवयात्रा पंडित मुहल्ला से निकलकर बाजार रोड, दुर्गा चौक, सूर्य मंदिर, काली स्थान, एनएच-139, बेल मोड़, बेल रोड होते दोमुहान स्थित शमशान तक पहुंची जहां, तिरंगे में लिपटे शहीद सैनिक को सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई.
ड्यूटी के दौरान सड़क हादसे में शहीद हो गए थे संजय
गौरतलब है कि, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में भारत-पाक सीमा पर राजस्थान के जैसलमेर में कार्यरत बिहार के औरंगाबाद के ओबरा के पंडित मुहल्ला के जवान संजय कुमार दुबे की पिछले सप्ताह शनिवार को देर शाम ड्यूटी के दौरान सड़क हादसे में घायल होने के बाद मौत हो गई. वहां सेना का एक बस जवानों को लेकर सीमा पर जा रहा था. इसी दौरान वाहन इब्राहिम की ढाणी और लंगतला के बीच खड्ड में पलट गई. हादसे में पांच जवान गंभीर रूप से घायल हो गये. आनन-फानन में घायल जवानों को इलाज के लिए वहां के सेना अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान संजय दुबे की मौत हो गई थी. इलाज के बाद चार अन्य जवानों की हालत खतरे से बाहर हो गयी थी. वहीं, हादसे के बाद शनिवार को देर रात जवान की मौत की खबर बीएसएफ के जैसलमेर कार्यालय से ओबरा थाना को दी गई थी.
इसके बाद थाना द्वारा यह सूचना मृत जवान के परिवार को देने के साथ ही परिजनों में हाहाकार मच गया था. घर से महिलाओं के रोने और चिखने चिल्लाने की आवाज आने लगी थी. मुहल्ले के लोगों की भीड़ जमा हो गई थी. हर कोई इस मनहूस खबर को जानकर गमगीन हो उठा. सबकी आंखे नम हो गई. शहीद जवान की पत्नी रिंकू देवी का इस मनहूस खबर को सुनकर सबसे बुरा हाल था. वह पति की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी. उसका रोते-रोते हाल बुरा था. आज भी शहीद सैनिक का शव आते ही पत्नी का वैसा ही हाल हो गया. वह बार-बार बेहोश हो जा रही थी. मुहल्ले के लोगों द्वारा परिजनों को लगातार ढांढ़स बंधाया गया और सांत्वना दी गई. शहीद सैनिक के दाह संस्कार के बाद उत्साह और उमंग के राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस पर भी पंडित मुहल्ले में मातम पसरा है.
बीएसएफ में 2002 में हुआ था संजय का चयन
संजय दुबे 2002 में बीएसएफ में भर्ती हुए थे. उनके दो बेटे स्वस्तिक (12 वर्ष) और शुभ (10 वर्ष) का है. शहीद जवान के पिता केदार दुबे का बेटे का शव देखकर रो-रोकर बुरा हाल हो गया. उन्होंने रोते हुए कहा कि, बेटे के निधन से मेरा घर परिवार बर्बाद हो गया है. परिवार पूरी तरह से बेसहारा हो गया है. दो बेटों के सिर से पिता का साया उठ गया है. मेरे लिए अब अपना जीवन पहाड़ सा हो गया है. बेटे की बीवी का हाल बेहाल है. परिवार पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा है. अब घर परिवार कैसे संभलेगा, इसकी चिंता उन्हें खाए जा रही है.