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बिहार का यह इकलौता जंगल बना दुर्लभ जानवरों का गढ़, टाइगर से लेकर किंग कोबरा तक आएंगे नजर

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बिहार के पश्चिमी चंपारण का वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में बाघ, किंग कोबरा, गिद्ध और बार्किंग डियर सहित दर्जनों जानवरों का बसेरा है. यहां जानवरों की करीब 60 प्रजातियां पाई जाती हैं. आप भी वीटीआर की सैर के साथ इनके दीदार कर सकते हैं. 

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व जैव विविधता के दृष्टिकोण से बेहद सराहनीय है. वीटीआर के सीएफ नेसामणि की मानें तो करीब 900 स्क्वायर किलोमीटर में फैले बिहार के इस इकलौते टाइगर रिजर्व में पेड़-पौधों की 90, बाघों के अलावा जंगली जानवरों की 60, पक्षियों की 300 और रेप्टाइल्स की 30 प्रजातियां मौजूद हैं. बिहार के इस इकलौते टाइगर रिजर्व 'वामिकी' में तमाम दुर्लभ वन्य जीव पाए जाते हैं. इनको देखकर आप रोमांचित हो उठेंगे.

नेचर एनवायरमेंट एंड वाइल्ड लाइफ सोसायटी के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिषेक ने बताया कि वीटीआर में लेपर्ड की एक खास प्रजाति 'क्लाउड लेपर्ड' पाई जाती है. यह दुर्लभ वन्य जीवों की श्रेणी में आते हैं, जोकि देश के गिने-चुने राज्यों में ही पाए जाते हैं.

वीटीआर में स्लॉथ बियर भी खूब पाए जाते हैं. ये दुनिया में मौजूद भालू की 8 प्रजातियों में से एक है. विशेष रूप से ये दीमक और चीटियों को खाने में माहिर होते हैं. इनका वजन लिंग के आधार कर 60 से 140 किलोग्राम तक होता है. एक मादा स्लॉथ बियर का गर्भधारण चक्र 210 दिनों का होता है.

वीटीआर में पाए जाने वाले दुर्लभ वन्य जीवों की श्रेणी में किंग कोबरा भी शामिल है. मुख्य रूप से ये जीव दक्षिण भारत में पाए जाते हैं, लेकिन बात यदि बिहार की जाए तो यहां यह सिर्फ वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगलों में ही पाए जाते हैं. इनकी लंबाई 12-15 फीट तक होती है. एक्सपर्ट बताते हैं कि यह दुनिया के सबसे बड़े जहरीले सांप होते हैं, जो आहार के रूप में दूसरे सांपों को खाते हैं.

सबसे तेज बाइट फोर्स वाले वन्य जीवों में से एक 'लकड़बग्घे' भी वीटीआर के जंगलों में पाए जाते हैं. मुख्य रूप से ये स्केवेंजर होते हैं, जो मरे हुए जानवरों को खाते हैं. अधिकांश जानवरों की तुलना में लकड़बग्घे का पाचन तंत्र बेहद मजबूत होता है. यही कारण है कि यह जानवर सड़ चुके जानवरों की हड्डियों तक को पचा लेते हैं.

'ढोल' कुत्ते की एक ऐसी प्रजाति है, जो कि जंगलों में 15-20 के झुंड में रहते हैं. ये शिकारी कुत्ते होते हैं, जो वन्य प्राणियों का शिकार कर अपना पेट भरते हैं. बड़े झुंड में रहने की वजह से ये बाघ तक से भिड़ जाते हैं. ये इतने बेरहम होते हैं कि अपने शिकार को चारों तरफ से घेर कर उसे जिंदा ही नोंचकर खाने लगते हैं. देश के कुछ ही राज्य में ये वन्य प्राणी पाए जाते हैं. बिहार का वाल्मीकि टाइगर रिजर्व उनमें से एक है.

इंडियन गौर के नाम से मशहूर यह विशालकाय और मस्कुलर जीव वीटीआर के जंगलों में खूब पाए जाते हैं. इनका वजन 900 किलो तक होता है. खास बात यह है कि ये देश के कुछ ही राज्यों में ही पाए जाते हैं, जिनमें से बिहार एक है. ये इतने शानदार दिखते हैं कि एक बार सामने आ जाने पर इनसे नजरें नहीं हटती हैं.

गैंडे को चलता-फिरता टैंक कहते हैं. इनकी चमड़ी इतनी सख्त और मोटी होती है कि इन्हें भेद पाना बाघ के लिए भी असंभव होता है. इनका वजन 1500 किलो और खाल की मोटाई 2.5 इंच तक होती है. वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में इन्हें खूब देखा जाता है.

वीटीआर में मगरमच्छों की भरमार है. पूरे देश में मध्य प्रदेश की चंबल नदी में इनकी संख्या सर्वाधिक है और बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले की गंडक नदी इनके संरक्षण के लिए दूसरा सबसे बड़ा केंद्र है. पानी के शहंशाह कहे जाने वाले मगरमच्छों का बाइट फोर्स 3700 पीएसआई तक होता है.

वीटीआर के जंगलों में हाथी भी पाए जाते हैं. यहां इनके लिए सूबे का एकमात्र एलीफेंट रेस्क्यू सेंटर भी बनाया गया है. एक वयस्क एशियन हाथी का वजन 6 हजार किलो तक होता है, साथ में इनकी चमड़ी भी बेहद मोटी होती है.

पश्चिम चम्पारण जिले का वीटीआर पूरे देश में बाघों की बढ़ती संख्या के लिए जाना जाता है. वर्ष 2023 में आए एनटीसीए के आंकड़े के मुताबिक, वर्तमान में यहां कुल 54 बाघ हैं. इन शानदार वन्य जीवों को देखने के लिए ही यहां हर वर्ष दुनिया के कई देशों से पर्यटक आते हैं. एक्सपर्ट की मानें तो नेपाल के चितवन नेशनल पार्क से सटे होने के कारण वीटीआर में पाए जाने वाले बाघों का जीन, देश के अन्य टाइगर रिजर्व में मौजूद बाघों की तुलना में बेहद अलग एवं खास है.

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