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देश की राजनीति संक्रमण काल से गुजर रही है;विजय सिंह

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बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने देश की वर्तमान राजनीति पर बड़ा बयान दिया है।उन्होंने कहा कि आज देश की राजनीति एक संक्रमण काल से गुजर रही है । राजनीति में स्पष्ट रूप से दो ध्रुव बनते जा रहे हैं । एक तरफ नरेंद्र मोदी की निष्ठा, नीयत और नीति में विश्वास करने वाले लोग हैं जो या तो NDA से सीधे तौर पर जुड़े हैं या सहानुभूति रखते हुए मुद्दों के आधार पर NDA का समर्थन करते हैं । दूसरी तरफ केवल नोट और वोट के लिए राजनीति करने वाले परिवारवाद और भ्रष्टाचार के पोषक लोग हैं।श्री सिन्हा ने आगे कहा कि NDA ने हमेशा सकरात्मक राजीनीति को बढ़ावा दिया है । इस गठबंधन की बुनियाद ही राजनीति को लोकनीति से जोड़कर राष्ट्रनीति के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए रखी गयी थी । चुनावों में होने वाले तात्कालिक नफे-नुकसान से इस दृष्टिकोण पर कोई असर नहीं हुआ है । इसलिए अपने गठन के  25 साल बाद भी यह गठबंधन न केवल अस्तित्व में है बल्कि केंद्र के अलावा कई राज्यों में 'स्थिरता के साथ सुशासन' वाली सरकार की अगुवाई कर रहा है ।श्री सिन्हा ने कहा कि वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो राजनीति को अपने परिवार की सत्ता का जरिया बनाने वाले लोग इकट्ठे हो गए हैं । इनके दल और दृष्टिकोण किसी न किसी परिवार और उनके वंशजों के इर्दगिर्द परिचालित होते हैं । आज परिवारवादी सत्ता-सामंतों ने 'इंडी गठबंधन' बनाया है । आम चुनाव के प्रचार से लेकर संसद के अंदर और बाहर ये जिस प्रकार की भाषा, विमर्श और व्यवहार को प्रदर्शित कर रहे हैं , उससे साफ है कि उनका मकसद देश की जनता की भलाई नहीं है बल्कि वे सिर्फ अपने अपने परिवार की राजनीति को सुरक्षित रखना चाहते हैं ।श्री सिन्हा ने कहा कि विपक्ष का काम केवल विरोध के लिए विरोध करना नहीं होता है । विपक्ष पर तो 'वैकल्पिक आवाज' बनकर सरकार की नीतियों को अधिक कारगर बनाने की जिम्मेदारी होती है । हम NDA के लोग जब भी संसद में या राज्यों में विपक्ष में रहे हैं, हमने हमेशा सक्रिय और सकारात्मक राजनीतिक हस्तक्षेप करते हुए सच्ची जनभावनाओं को सरकार तक पहुंचाने का प्रयास किया । लोगों के बीच गए, गलत नीतियों का विरोध किया लेकिन जब 'व्यापक जनहित' के मामले आए या राष्ट्र के कल्याण की बात हुई सरकार के साथ मजबूती से खड़े भी रहे । लेकिन आज विपक्ष में बैठे लोगों में यह भावना नहीं है । वे विचार-विमर्श की जगह विभाजन और विद्वेष की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं । वे नहीं समझ पा रहे कि उनके इस बर्ताव से न तो  जनता का भला हो पाएगा और न ही उनकी राजनीति  ज्यादा समय तक चल पाएगी ।

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