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हर बिहारी के लिए गौरव का विषय है श्रीबाबू की विरासत : विजय कुमार सिन्हा

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बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह को उनकी जयंती पर याद करते हुए उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि श्रीबाबू बिहार ही नहीं बल्कि देश के उन विरले नेताओं में से हैं जिनका व्यक्तित्व और कृतित्व अपने आप में एक मिसाल है । वे जितने अच्छे वक्ता थे, उतने ही बड़े संगठनकर्ता थे । जितने कुशल प्रशासक थे, उतने ही व्यापक जनाधार वाले नेता थे । पहले उन्होंने  गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन से लेकर बिहार में किसान आंदोलन को दिशा देने और फिर भारत छोड़ो आंदोलन में  उल्लेखनीय भूमिका निभाते हुए खुद को महान क्रांतिकारी साबित किया । फिर 1937 में प्रांतीय सरकार में प्रीमियर बनकर और आगे 1946 से 1961 तक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने लोकसेवा का प्रतिमान सामने रखा, वह आज भी एक आदर्श के रूप में स्थापित है ।श्री सिन्हा ने कहा कि बतौर मुख्यमंत्री श्री बाबू ने राज्य में 'अच्छी नीति पर आधारित राजनीति' को बढ़ावा दिया । वे जिस सामाजिक वर्ग से आते थे, उसका आक्रोश झेलते हुए भी जमींदारी उन्मूलन के अपने संकल्प को पूरा किया । उन्हीं के नेतृत्व में दलित समाज के लोगों का पहली बार देवघर के बैद्यनाथ मंदिर में प्रवेश संभव हो पाया था । उनके नेतृत्व में बिहार ने औद्योगिक कॉरिडोर पर आधारित विकास की राह देश को दिखाई थी । अविभाजित बिहार के झारखंड वाले हिस्से में भारी उद्योग, खनिज उद्योग के विकास से लेकर बक्सर-बेगूसराय इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के विकास की रूपरेखा उन्होंने ही रखी थी । उनके नेतृत्व में हमारा राज्य देश के सबसे सुशासित 5 राज्यों में शामिल था । देश के प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी आज श्री बाबू के "सबका साथ सबका विकास" के विचारधारा का संवाहक बन राष्‍ट्र निर्माण में अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। श्री सिन्हा ने कहा कि विकास-पुरुष होने के साथ-साथ 'बिहार केशरी' शुचिता की राजनीति के भी पर्याय थे । उन्हें अपनी जनसेवा पर इतना अटल विश्वास था कि कभी अपने लिए वोट मांगने लोगों के बीच नहीं गए । और हर बार जनता ने  पहले से अधिक बहुमत देकर उनका समर्थन किया । अपने जीवनकाल में उन्होंने अपने परिजनों के लिए न कोई धनसंग्रह किया और न ही परिवार के किसी व्यक्ति को राजनीति में आने दिया। श्री सिन्हा ने कहा कि श्री बाबू जैसे विराट  शख्सियत को जाति, क्षेत्र, विचारधारा और समय की परिसीमा में नहीं बांधा जा सकता है । उनसे हर दौर, समाज और आयुवर्ग के लोग कुछ न कुछ सकारात्मक बातें सीख सकते हैं। सही मायने में वे बिहार की  लोकतांत्रिक परम्परा के सच्चे प्रतिनिधि थे । उनकी विरासत हर बिहारी के लिए गर्व का विषय है। इसलिए हर बिहारी को विकसित बिहार बनाने का सामुहिक संकल्प लेना चाहिए । यही श्रीबाबू के प्रति हम सबकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

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