इंडिया गठबंधन की बैठक तीन महीने बाद हुई. इस मीटिंग में 28 दल पहुंचे. तीन घंटे से ज्यादा मीटिंग चली. उससे पहले दस तरह की अलग-अलग मुलाकातें विपक्षी नेताओं ने कीं. लेकिन निकला क्या?
इंडिया गठबंधन की बैठक में सबसे बड़ा सवाल यही था कि आखिर नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी गठबंधन का चेहरा कौन होगा. इस बारे में बैठक में चर्चा हुई. सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे किया. केजरीवाल ने प्रस्ताव का समर्थन किया. लेकिन फैसला कुछ नहीं हुआ. खटपट होने का अलग दावा है.
बैठक से पहले दूसरा सवाल उठ रहा था कि इंडिया गठबंधन का संयोजक कौन होगा? इस चौथी बैठक में संयोजक को लेकर ना कोई चर्चा हुई ना कोई फैसला हुआ.
30 जनवरी से होंगी संयुक्त रैलियां!
इसके अलावा सीटों के बंटवारे को लेकर सबसे ज्यादा चिंता कई दलों को है. विपक्षी गठबंधन की बैठक में चर्चा इस पर हुई है. लेकिन कोई मोटा फॉर्मूला अभी नहीं बना है. ये कहकर छोड़ दिया गया कि पहले राज्य के स्तर पर नेता बात करेंगे. साथ ही एक साथ चुनाव प्रचार के मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ इस बैठक में बात हुई है. 30 जनवरी से शुरुआत संभव है. ऐसा सूत्रों ने बताया है.
EVM पर भी चर्चा
ईवीएम को लेकर जो शंका जताई जाती है. इस मुद्दे पर भी इंडिया गठबंधन की बैठक में चर्चा हुई है. VVPAT पर्ची बैलेट पेपर की तरह गिनी जाए ऐसे प्रस्ताव पर एकमत बना है.
सांसदों के निलंबन पर भी बैठक में चर्चा
141 सांसदों के निलंबन को लेकर काफी चर्चा हुई. बैठक में तय हुआ कि 22 दिसंबर को देश में प्रदर्शन करेंगे. यानी ये पहला मौका होगा जब बंद कमरों की बैठक से आगे बढ़कर इंडिया गठबंधन सड़क पर एक दिख सकता है.
पीएम पद के चेहरे पर नहीं बनी कोई सहमति?
लेकिन चेहरे को लेकर जहां समाधान निकलना था, वहां बैठक में नया चक्रव्यूह आपस में ही बना हुआ दिखा है. ऐसे में सवाल अब भी बरकरार हैं.
क्या नरेंद्र मोदी के खिलाफ इंडिया गठबंधन की तरफ से बिना चेहरे के ही उतरा जाएगा?
क्या नरेंद्र मोदी के खिलाफ राहुल गांधी के चेहरे पर एकमत इंडिया गठबंधन नहीं हो पा रहा?
क्या राहुल गांधी के चेहरे पर एकमत ना हो पाने के बीच खड़गे का नाम कई दलों ने आगे किया?
क्या इंडिया गठबंधन की तरफ से चेहरे के तौर पर खड़गे के नाम पर कांग्रेस सहमति नहीं जता पाएगी?
घूम कर सवाल फिर वही लौट आता है कि क्या नरेंद्र मोदी के खिलाफ इंडिया गठबंधन बिना चेहरे के ही उतरना चाहता है? इसी सवाल का जवाब समझने के लिए इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक को समझने की कोशिश करते हैं. जिसके होने से कुछ घंटे पहले तक ममता बनर्जी ये बताती रहीं कि पीएम पद के दावेदार का फैसला चुनाव के बाद होगा.
ममता बनर्जी ने कई नेताओं से की चर्चा
खबर है कि ममता बनर्जी ने गठबंधन के चेहरे के लिए बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का प्रस्ताव रखा. ममता बनर्जी ने कहा है कि उन्होंने पीएम पद की दावेदारी के लिए खड़गे के नाम के लिए अरविंद केजरीवाल, उद्दव ठाकरे समेत कई नेताओं से चर्चा कर ली है. ममता की बात के बाद अरविंद केजरीवाल ने दावा है कि कहा- देश को हम पहला दलित प्रधानमंत्री दे सकते हैं.
ममता ने आगे किया खड़गे का नाम
खड़गे का नाम आगे यानी राहुल गांधी का नाम पीछे. क्या इसीलिए बात ही नहीं बनी. और जब मीटिंग के बाद सवाल खड़गे से हुआ तो उन्होंने पहले जीतो फिर चुनो की पुरानी बात दोहरा दी. खड़गे भले कहें कि चिंता जीतने की है. लेकिन जीतने से पहले ही खटपट गठबंधन में बढ़ने का दावा है.
INDIA गठबंधन में हुई खटपट
सूत्रों के हवाले से खबर है कि INDIA गठबंधन की बैठक में जैसे ही ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री उम्मीदवार के लिए आगे किया. खबर है कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार नाराज हो गए. नाराज भी इतना कि नाराज लालू और नीतीश गठबंधन की बैठक से जल्दी निकले और प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शामिल नहीं हुए. बिहार का एंगल ये हो सकता है कि नीतीश अगर चेहरा दिल्ली के लिए बनेंगे तभी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तेजस्वी जा सकते हैं. यानी कुर्सियों के खेल में चेहरे का चक्रव्यूह बन चुका है.
इसीलिए लौटकर क्या फिर वही सवाल है. क्या नरेंद्र मोदी के सामने विपक्षी गठबंधन बिना चेहरे के ही 2024 में उतरेगा? जहां राहुल गांधी के नाम पर ममता, केजरीवाल समेत कई दल राजी होने से बचते हैं. ममता जब खड़गे का नाम आगे बढ़ाती हैं तो कांग्रेस, नीतीश, लालू तस्वीर साफ नहीं करते. तो चौथी बैठक से क्या मिला? फिलहाल चेहरे को लेकर सिर्फ चर्चा और कुछ नहीं.
सवाल यह भी है कि चेहरे को लेकर खींचतान क्यों है? वजह है सीटों का बंटवारा. तब ऐसे में खबर यह है कि इंडिया गठबंधन में सबसे पहले सीट शेयरिंग पर सहमति बनाई जाएगी. हांलाकि सबसे बड़ी चुनौती यही है, क्योंकि सीटों का बंटवारा तय होने से ही गठबंधन का 2024 में एकजुट होकर लड़ना तय होगा.
खबर है कि 31 दिसंबर तक सीटों के बंटवारे पर गठबंधन में सहमति बनाने की पुरजोर कोशिश रहेगी. दावा ये भी है कि प्रधानमंत्री पद के दावेदार और संयोजक पर जल्द फैसला लिया जाएगा. लेकिन कब फिलहाल ये साफ नहीं हुआ है. बैठक में ये भी तय हुआ कि 10 प्वाइंट का एजेंडा आगे बनाया जाएगा. कॉमन मिनिमम प्रोग्राम अलग होगा. यानी पहले सीटें बांट ली जाएं फिर देखेंगे चेहरा कौन, संयोजक कौन और एजेंडा क्या होगा?
लेकिन बड़ी बात तो ये है कि इस बैठक में जहां एक ओर जिस सीट शेयरिंग पर सहमति बनती दिख रही थी, उसी मुद्दे पर ममता बनर्जी की पार्टी खुश नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि बंगाल में कांग्रेस का सीटों के बंटवारे पर अभी स्टैंड साफ नहीं है. बताते चलें कि टीएमसी, जेडीयू समेत कई दलों की राय है कि 31 दिसंबर तक सीटों का बंटवारा तय हो जाए. वहीं नीतीश कुमार ने कहा है कि पहले सीट बंटवारा कर लो तभी अब अगली बैठक बुलाई जाए.
सीट शेयरिंग पर हर पार्टी की अलग राय
गौर करने वाली बात यह भी है कि टीएमसी चाहती है कि कांग्रेस को उन 300 सीटों पर लड़ना चाहिए जहां सीधे बीजेपी से लड़ाई है. इसके अलावा गठबंधन के साथी चाहते हैं कि बाकी राज्यों में क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस प्राथमिकता दे. महाराष्ट्र में सीट बंटवारे का फैसला दिल्ली में बैठकर किया जाए, ये बात उद्दव ठाकरे की पार्टी ने कही. इसके साथ ही झारखंड में सीट बंटवारे का फैसला राज्य के स्तर पर ही किया जाए, ये हेमंत सोरेन चाहते हैं.
सीट बंटवारा फॉर्मूला 1
बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, सीट शेयरिंग के लिए पहले जिस-जिस स्टेट में हमारे लोग हैं, वहां पर पहले वो समझौता करेंगे. अगर कहीं दिक्कत है, नहीं बन सकता तो यहां हमारे इंडिया गठबंधन के नेता बात करेंगे.
सीट बंटवारा फॉर्मूला 2
तमिलनाडु में हो, केरल में हो, कर्नाटक में हो, या तेलंगाना में हो, बिहार में हो, यूपी में सुलझ जाएगा.
सीट बंटवारा फॉर्मूला 3
दिल्ली या पंजाब का है, समस्या को कैसे सुलझाना है, ये भी बात बाद में तय की जाएगी.
सीट शेयरिंग ही है सबसे बड़ी चुनौती
आपको बता दें कि सीटों का बंटवारा ही बड़ी चुनौती है. इतनी बड़ी कि टीएमसी को कांग्रेस के किंतु परंतु से नाराजगी है. शायद तभी ममता बैठक से पहले रेडी टू एलायंस के सवाल पर रेडी टू टॉक यानी पहले बात तो हो कहने लगीं. गठबंधन की बैठक में दावा है कि नीतीश कुमार ने ये तक कहा कि जल्दी सीट बंटवारा करके कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया जाए. नीतीश ने इस बात पर भी जोर दिया कि अगर राज्यों में मिलकर कांग्रेस लड़ती तो नतीजे कुछ और होते.
अब सवाल है कि जिन नीतीश के चेहरे को लेकर बार बार जेडीयू नेता जोर देते आए. अबकी बार भी बैठक से पहले पोस्टर बैनर दिखने लगे. उस संयोजक पद की कोई चर्चा नहीं हुई.