एक बार फिर 'वन नेशन वन इलेक्शन' बिल को लेकर मुद्दा गर्माता हुआ नजर आ रहा है. केंद्र सरकार साल 2018 से ही ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर जोर देती नजर आई. हालांकि, विपक्ष इसके विरोध में उतरता दिखा. केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच पांच दिवसीय विशेष सत्र बुलाया है। पिछले 10 सालों में यह पहली बार है, जब मोदी सरकार ने कोई स्पेशल सेशन बुलाया. माना जा रहा कि इस दौरान एक बार फिर ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ बिल केंद्र सरकार ला सकती है. आखिर क्या है ये ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ बिल और क्यों बीजेपी इसके पक्ष में है.
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन?
आसान शब्दों में इसका मतलब यह है कि एक ही समय पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाना. मौजूदा समय बीजेपी इसके पक्ष में है. उनका विचार है कि वन नेशन वन इलेक्शन से खर्चा भी कम आएगा. फिलहाल होता क्या है कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं. जब किसी राज्य की एक विधानसभा का कार्यकाल पूरा होता है तब वहां चुनाव करवा दिए जाते हैं. कहीं 2021 में चुनाव हुए तो कहीं 2024 में होंगे. वहीं, लोकसभा के भी अपने कार्यकाल के हिसाब से चुनाव होते हैं. ऐसे में बीजेपी चुनाव से होने वाले खर्चे को कम करने के लिए वन नेशन वन इलेक्शन बिल के लिए जोर दे रही है.
क्या फायदे होंगे?
-लगातार चुनाव के कारण रुकने वाले विकास के कार्य नहीं रुकेंगे
-बार-बार चुनाव पर होने वाला भारी-भरकम खर्च बचेगा
-सुरक्षा बलों की तैनाती पर होने वाले खर्च में कमी होगी
-चुनावी भ्रष्टाचार रुकेगा
क्यों हो रहा है एक साथ चुनाव का फैसला?
-2019 के चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे, यह खर्च अगले चुनाव में 80 हजार करोड़ के पार जा सकता है
-विधानसभाओं के चुनाव हर छठे महीने होते हैं, इस फैसले के बाद चुनाव 30 महीने बाद होंगे
पहले थी वन नेशन वन इलेक्शन?
ऐसा नहीं है कि बीजेपी इस बिल को लाकर कुछ नया करने जा रही है. आपको बता दें कि साल 1967 तक देश में वन नेशन वन इलेक्शन नीति के आधार पर इलेक्शन करवाए जाते थे. यानी कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक ही साथ होते थे. हालांकि, बाद में कुछ राज्यों में 1968 और 1969 में चुनाव करवाने पड़े और लोकसभा के चुनाव साल 1970 में हुए. इस कारण तब से आजतक विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक ही समय पर नहीं हो सके, लेकिन अब केंद्र सरकार फिर से पुरानी नीति को दोहराना चाहती है ताकि बार-बार अलग समय पर चुनाव करवाकर अधिक खर्चा ना करवाया जाए.
12 राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के आसपास आते हैं
फिलहाल, करीब 12 राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के आस-पास ही होते हैं, ऐसे में इन राज्यों में ज्यादा मुश्किल नहीं आएगी. लेकिन अन्य राज्यों में या तो कार्यकाल के दौरान ही चुनाव करवाना पड़ें या फिर चुनावों को थोड़ा शिफ्ट करना होगा ताकि उनकी तारीख लोकसभा चुनाव के आसपास ही आ जाए.
क्यों हो रहा विरोध ?
बीजेपी के इस विचार पर विपक्ष जमकर विरोध कर रहा है. उनका मानना है कि ऐसा होने से वोटर्स के जजमेंट पर असर पड़ता है क्योंकि राज्य और देश के मुद्दे अलग अलग हैं और अगर 5 साल में एक ही बार पूरे देश में चुनाव होगा तो सरकार की जवाबदेही भी जनता के लिए कम हो जाएगी. आम आदमी पार्टी पहले से ही इस बिल को असंवैधानिक और लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ बता चुकी है.