लोकसभा चुनाव से पहले बिहार की सियासत में गहमागहमी चरम पर पहुंच गई है. रैलियों और जनसभाओं का दौर लगातार जारी है. इसके साथ ही पिछले दिनों टिकट लेने की होड़ पार्टियों के बीच देखने के लिए मिली. जिन्हें टिकट मिला वे जोर-शोर से चुनावी प्रचार में जुट गए हैं. तो वहीं, दूसरी ओर जो टिकट की आस लगाए बैठे थे लेकिन मिला नहीं, उन सब ने पार्टी से ही अलगाव कर लिया. इतना ही नहीं, बागी तेवर दिखाते हुए कुछ नेताओं ने तो निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी है. कुछ ऐसे भी हैं, जो बगावत से तो बचे हैं, लेकिन उनके मन में उपजी खटास अपने दलीय उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचा सकती है. यानी कि कहा जा सकता है कि, वे भितरघात कर सकते हैं.
पूर्व सांसद और अजय निषाद ने अपनाया कड़ा रुख
उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो ताजे मामले की ही बात करेंगे जहां राजद के पूर्व राज्यसभा सांसद अहमद अशफाक करीम ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. साफ तौर पर पूर्व सांसद ने आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव पर मुसलमानों की हकमारी करने का आरोप लगाया है. इसके साथ ही अहमद अशफाक करीम को लेकर अब चर्चा है कि, जेडीयू से कहीं ना कहीं उनकी नजदीकियां बढ रही है. ऐसा हो सकता है कि, अशफाक करीम जेडीयू में शामिल हो जाएं. इसके अलावे एक और उदाहरण को देखा जाए तो, मुजफ्फरपुर से भाजपा के सिटिंग सांसद अजय निषाद की बात करेंगे. इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस में शामिल हो गए. बिहार में अपने-अपने दलों से टिकट न मिलने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी या गठबंधन के उम्मीदवारों का ही खेल बिगाड़ेंगे, ऐसी लगातार संभावना जताई जा रही है.
विनोद यादव और निखिल कुमार भी हुए बागी
कुछ ऐसे ही नेताओं की लिस्ट में शुमार हैं नवादा में आरजेडी के पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव के भाई विनोद यादव जो कि, निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. बता दें कि, विनोद यादव आरजेडी के प्रदेश महासचिव रहे हैं. उन्हें उम्मीद थी कि, पार्टी इस बार उन्हें लोकसभा का टिकट देगी. लेकिन, उनकी उम्मीदों पर पानी तब फिर गया जब आरजेडी ने श्रवण कुशवाहा को उम्मीदवार घोषित कर दिया. इसके बाद विनोद यादव ने बगावती तेवर अपनाया और निर्दलीय मैदान में उतर गए. इसके अलावे कांग्रेस ने औरंगाबाद सीट अपने नेता निखिल कुमार के लिए मांगी थी. बात कर लें निखिल कुमार की तो, निखिल के घराने का समृद्ध राजनीतिक इतिहास रहा है. बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिंह उनके दादा थे. अनुग्रह बाबू बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री थे. निखिल कुमार के पिता सत्येंद्र नारायण सिन्हा बिहार के मुख्यमंत्री रहे. माता किशोरी सिन्हा वैशाली से सांसद चुनी गई थीं. पत्नी श्यामा सिन्हा भी 1999 से 2004 तक औरंगाबाद की सांसद रहीं. भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे निखिल कुमार भी बाद में राजनीति में आ गए और वे राज्यपाल भी रह चुके हैं. कांग्रेस इस बार उन्हें औरंगाबाद से चुनाव लड़ाना चाहती थी. बता दें कि, राजपूतों की बहुलता के कारण औरंगाबाद को चित्तौड़गढ़ भी कहा जाता है. राजपूत होने के कारण निखिल कुमार भी जातीय समीकरण साधने में सक्षम थे. लेकिन, आरजेडी ने यह सीट कांग्रेस को देने के बजाय अपने हिस्से में रख ली और अभय कुशवाहा को उम्मीदवार बना लिया. जाहिर सी बात है कि, निखिल कुमार इससे खुश नहीं होंगे.
पप्पू यादव भी लड़ रहे निर्दलीय चुनाव
बढते हैं आगे जहां अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर पूर्णिया से टिकट की उम्मीद लिए पप्पू यादव को आरजेडी की वजह से निर्दलीय मैदान में उतरना पड़ा है. पप्पू को कांग्रेस के प्रति भी गुस्सा होगा कि उसने लालू यादव के सामने घुटने टेक दिए, पर वे जाहिर नहीं करते. इधर, पूर्णिया से आरजेडी के टिकट पर बीमा भारती चुनाव लड़ रही हैं. एनडीए ने संतोष कुशवाहा को तीसरी बार भी उम्मीदवार बनाया है. पप्पू के तेवर और उनको मिल रहे जन समर्थन से तो यही लगता है कि वे बीमा भारती से लड़ रहे हैं और बीमा भारती उनसे लड़ रही हैं. ऐसे में यह भी संभावना जताई जा रही है कि, दो के झगड़े में यदि तीसरे यानी कि संतोष कुशवाहा फिर बाजी मार ले जाएं तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
हिना शहाब भी निर्दलीय मैदान में
इसके साथ ही बात करेंगे हॉट सीट में तब्दील होने वाले सीवान लोकसभा क्षेत्र की तो, दिवंगत सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब तीन बार सिवान से आरजेडी के टिकट पर भाग्य आजमा चुकी हैं. दो बार उन्हें भाजपा के ओमप्रकाश यादव से शिकस्त खानी पड़ी तो एक बार जेडीयू की कविता सिंह ने उन्हें मात दे दी. इस बार आरजेडी ने उन्हें पूछा तक नहीं. आखिरकार उन्होंने निर्दलीय बन कर सिवान से चुनाव लड़ने का फैसला किया है. हालांकि, बता दें कि, अब तक आरजेडी की ओर से सीवान सीट से प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गई है. ऐसा कहा जा रहा था कि, आरजेडी हिना शहाब को मनाने में लगी है. लेकिन, हिना शहाब ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. जिसके बाद आरजेडी की टेंशन बढी हुई है.