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जब जवाहरलाल नेहरु ने चुरा ली थी पिताजी की कलम, गुस्से में मोतीलाल ने...

When Jawaharlal Nehru stole his father's pen, in anger Motil

स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की आज जयंती है. आज का दिन बच्चों के लिए बेहद खास होता है. वैसे तो जवाहर लाल नेहरु के जीवन से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं. लेकिन, क्या आपको वह किस्सा पता है, जब जवाहर लाल नेहरु ने अपने पिता जी की कलम चुरा ली थी. जी हां आपने सही पढ़ा. दरअसल, पंडित नेहरू ने अपने बचपन में पिता के स्टडी रूम से एक कलम (पेन) चुरा ली थी. ऐसे नेहरू ने इसलिए किया क्योंकि उनको लगा कि उनके पिता जो कि मोतीलाल नेहरु थे, उनके पास 2 कलम हैं, जिनका वह एक साथ इस्तेमाल नहीं करते हैं. इसलिए एक कलम ले लेने में कई हर्ज नहीं है.

नेहरु ने एक कलम ले तो ली लेकिन नेहरू के पिता ने जब देखा कि उनकी एक कलम गायब है तो वह उसे ढूंढने लगे. काफी खोजबीन के बाद में ये कलम नेहरू के कमरे से मिली. इसके बाद नेहरू के पिता ने उन्हें खूब डांट-फटकार लगाई. जिससे उन्होंने सबक लिया कि, बिना बताए किसी की चीज नहीं लेनी चाहिए. एक और नेहरु जी की जीवन से जुड़ी खास बात यह भी है कि, 16 साल तक नेहरु जी ने घर में ही पढ़ाई की थी. इसके पीछे का कारण यह था कि, उनके पिता मोतीलाल नेहरू जाने-माने बैरिस्‍टर थे. शोहरत के साथ घर में बेशुमार दौलत थी. यही कारण था कि पिता ने घर पर ही उनके लिखने-पढ़ने बंदोबस्‍त कर दिया था. 

करीब 16 साल तक नेहरू ने प्राइवेट ट्यूटर्स और गवर्नेसेस से शिक्षा प्राप्‍त की. आयरिश थियोसोफिस्ट फर्डिनेंड टी. ब्रूक्स की शिक्षा से प्रभावित होकर नेहरू की दिलचस्‍पी विज्ञान और थियोसोफी में हो गई. पारिवारिक दोस्‍त एनी बेसेंट ने 13 साल की उम्र में उन्हें थियोसोफिकल सोसायटी में एंट्री दिलाई. हालांकि, थियोसोफी में उनकी दिलचस्‍पी स्‍थायी साबित नहीं हुई. ब्रूक्स के जाने के तुरंत बाद उन्होंने सोसायटी छोड़ दी. थियोसोफी में नेहरू की दिलचस्‍पी ने उन्हें बौद्ध और हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया.   

इस तरह के कई किस्से जवाहर लाल नेहरु के जीवन से जुड़े मशहूर हैं. आपको बता दें कि, पंडित नेहरु का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहबाद में हुआ था जो कि अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है. उनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू थे, जो कि एक धनी वकील थे. मोतीलाल सारस्वत कौल ब्राह्मण समुदाय के कश्मीरी पंडित थे और उनकी मां भी कश्मीरी ब्राह्मण थीं. जवाहर लाल नेहरू को बच्चों से बहुत प्यार था, इसीलिए बच्चे उन्हें प्यार से चाचा नेहरू कहते थे. नेहरू जी का मानना था कि बच्चे देश का भविष्य हैं यदि उन्हें अच्छी शिक्षा दी जाएगी तो समाज और देश में बेहद क्रांतिकारी परिवर्तन और विकास देखने को मिलेगा. इसलिए नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. नेहरू के मरणोपरांत उनके जन्मदिन को बच्चों को समर्पित कर दिया गया.  

 

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