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रेलवे के माथे पर कल एक और बदनुमा धब्बा लग गया, आखिर रेलवे बोर्ड कब ध्यान देगा सेफ्टी पर?

अभी ओडिशा हादसे में जान गंवाए लोगों के आंसू भी नहीं सूखे थे कि दूसरा बड़ा रेल हादसा हो गया. कल शाम ही बिहार में बक्सर के पास रघुरनाथपुर में दिल्ली से गुवाहाटी जा रही नार्थ-ईस्ट एक्सप्रेस गंभीर हादसे का शिकार हो गई. इसमें इंजन से लेकर तमाम डिब्बे पटरी से उतर गए. कुछ डिब्बे पलट गए. वहां करीब पांच यात्रियों की मौत जबकि 100 से भी ज्यादा यात्रियों के घायल होने की खबर आ रही है. अभी तक इस दुर्घटना के कारण के बारे में पता नहीं चलता है. लेकिन रेलवे के महकमे में जो बात चल रही है, वह कांटे की गड़बड़ी की है. यहां सवाल उठता है कि रेलवे बोर्ड ट्रैक और सिगनल की सेफ्टी पर आखिर कब ध्यान देगा?

जान गंवाते हैं मजबूर लोग

ट्रेन भारत की लाइफलाइन है. लेकिन, अब इसमें चलने वाले लोगों की प्रोफाइल बदल गई है. जबसे देश में डोमेस्टिक एविएशन सेक्टर का विस्तार हुआ है, अमीर-उमरा लोग अब हवाई जहाज से चलने लगे हैं. उससे कम कमाने वाले लोग राजधानी, शताब्दी, दूरंतो, हमसफर और तेजस एक्सप्रेस जैसी प्रीमियम ट्रेनों में सफर करते हैं. अब रह जाते हैं मजबूर लोग, जिनके जेब में ज्यादा पैसे नहीं है. वे ही आम मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों में सफर करते हैं. करीब चार महीने पहले ओडिशा के बालासोर में जो ट्रेन दुर्घटना हुई थी, उसमें भी मजबूरन यात्रियों की ही जान गई थी.

ग्राउंड से क्या आ रहे हैं संकेत

रघुनाथपुर रेल हादसे के ग्राउंड से जो संकेत सामने आ रहे हैं, उसमें कांटे की गड़बड़ी विलेन दिख रहा है. हालांकि, इस बारे में तो अंतिम रूप से रेल मंत्रालय ही बताएगा. लेकिन कुछ आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि कांटे का नियमित मेंटनेंस न होने से इस तरह की दुर्घटना हो सकती है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रेल की पटरियों में कांटा उस जंक्शन प्वाइंट को कहते हैं जहां से एक पटरी से दूसरी पटरी फूटती है या मिलती है. रेलवे के इस कांटे में थोड़ी भी गड़बड़ी हो जाए तो फिर बालासोर या रघुनाथपुर हादसे को होते देर नहीं लगती.

कांटे का क्या है चक्कर

रेलवे की सेफ्टी में कांटा का बेहद अहम रोल है. किसी ट्रेन को एक पटरी से दूसरी पटरी को भेजने का काम यही करता है. कांटा जब किसी पटरी से सटता है तो उसमें तिल धरने का भी गैप नहीं रहना चाहिए. रेलवे के अधिकारी बताते हैं कांटा जब पटरी से सटता है तो उसके बीच कागज भी पार नहीं होना चाहिए. होता यह है कि प्रोपर मेंटनेंस नहीं होने से कांटे में गैप रहने लगता है. गैप ज्यादा हुआ तो वह दुर्घटना का सबब बन सकता है.

कांटे से जुड़े हैं रेलवे के तीन विभाग

रेलवे की पटरियों में कांटे को बिछाने का काम सिविल इंजीनियर करते हैं. उसका मेंटनेंस सिगनल एंड टेलीकॉम डिपार्टमेंट वाले करते हैं. और कांटे का उपयोग ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट वाले करते हैं. ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट के प्वाइंट्समैन या स्विचमैन कांटे को बदलते रहते हैं, ट्रेन को विभिन्न पटरी या प्लेटफार्म पर डालने के लिए. इसी कांटे में कहीं झोल रह गया तो डिरेलमेंट हो जाता है. अब चूंकि कांटे से तीन डिपार्टमेंट जुड़े हैं तो तीनों एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं.

पुराने जमाने में अलग व्यवस्था

रेलवे के ही कुछ रिटायर्ड अधिकारी बताते हैं कि पुराने जमाने में कांटे पर विशेष ध्यान दिया जाता था. हर महीने सिविल डिपार्टमेंट और एसएंडटी डिपार्टमेंट के इंजीनियर कांटे की ज्वाइंट चेकिंग करते थे. उस पर दोनों विभाग के लोगों के दस्तखत होते थे ताकि कोई डिस्प्युट नहीं हो. आजकल यह व्यवस्था बंद हो गई है. चाहे सिविल डिपार्टमेंट हो या एसएंडटी डिपार्टमेंट, सब जगह काम आउटसोर्सिंग के भरोसे चल रहा है. आपस में सहयोग करने के बजाय एक-दूसरे को गलत साबित करने में ज्यादा समय बीतता है.

कांटे में हुआ है बदलाव तब भी हो रहे हैं फेल

रेलवे के कांटे बदलने की पहले मैनुअल व्यवस्था थी. रेलवे के प्वाइंट्समैन कांटे का लीवर खींच कर लाइन सेट करता था. अब रूट रिले ट्रैफिक सिस्टम आने के बाद सब कुछ इलेक्ट्रॉनिक हो गया है. तब भी सिस्टम खूब फेल हो रहे हैं. रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि देश भर में हर रोज एसएंडटी फेलियोर के हजार से ज्यादा केस सामने आते हैं. वह सवाल पूछते हैं, जब सिस्टम इलेक्ट्रॉनिक है तब इतना फेलियोर क्यों. इस फिलियोर से कितना सबक लिया गया? उनका कहना है कि चाहे कवच लगा लें या कुछ और कर लें, आपका कांटा सही काम नहीं करेगा तो रेलवे की सेफ्टी हरदम रिस्क में रहेगी.

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