PATNA:- चार सौ कौन कहे, मोदी जी के लिए दो सौ पार करना कठिन होगा !! ये बातें पूर्व सांसद और समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी ने कहा है.पीएम मोदी की गारंटी और बीजेपी के संकल्प पत्र में किए गए वादे पर निशाना साधते हुए शिवानंद तिवारी ने सोसल मीडिया पर पोस्ट करके मोदी के पांच साल तक मुफ्त अनाज देने के संकल्प पर जमकर बरसा है.अपने पोस्ट में शिवानंद तिवारी ने लिखा कि---
मोदी जी का यह कैसा संकल्प है ! अगले पाँच वर्षों तक अस्सी करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन मिलता रहेगा. इसको किस आधार पर संकल्प कहा जाएगा ! संकल्प तो यह हो सकता है कि हमारी सरकार अगले पाँच वर्षों में दस करोड़ या बीस करोड़ लोगों को इस लायक़ बना देगी कि वे मुफ़्त राशन पर निर्भर नहीं रहेंगे.
मोदी जी के पिछले दस साल के शासन काल में देश में क्या स्थिति है! स्वास्थ्य के क्षेत्र की हालत ख़राब है. पिछले पाँच वर्षों में अस्पताल में भर्ती होने के बाद खर्च में दोगुना वृद्धि हुई है. दवाइयों की क़ीमतों में हर वर्ष वृद्धि हो रही है. इलाज गरीब आदमी की पहुँच के बाहर होता जा रहा है. संकल्प तो यह कहा जाएगा कि अगले एक या दो साल में दवाइयों की क़ीमत आधी या चौथाई कम कर देंगे.
शिक्षा के क्षेत्र में भी यही हाल है. 2019 के अपने चुनाव घोषणा पत्र में मोदी जी ने वादा किया था कि उनकी सरकार शिक्षा पर जीडीपी का छह प्रतिशत खर्च करेगी. लेकिन खर्च हुआ मात्र 2.7 प्रतिशत. शिक्षा पर खर्च के मामले में दुनिया के देशों में हमारा देश 136 वे स्थान पर है.
देश के अंदर बेरोज़गारी और महंगाई अपने चरम पर है. 2014 में युवाओं को मोदी जी ने सपना दिखाया था कि हमारी सरकार बनेगी तो हम प्रति वर्ष दो करोड़ नौकरी देंगे. आज देश में बेरोज़गारी का प्रतिशत चिंताजनक है. देश की अंदरूनी हालत भी आश्वस्त करने वाली नहीं. मोदी जी मणिपुर को सँभाल नहीं पा रहे हैं. उधर लेह, लदाख और कारगिल का इलाक़ा उबल रहा है. इसी इलाक़े में चीन हमारे हज़ारों वर्ग मील ज़मीन पर क़ब्ज़ा जमाए बैठा है.
राजनाथ जी का दावा है कि भारत जब विश्व के मंच पर बोलता है तो दुनिया सुनती है. लेकिन हक़ीक़त क्या है ! बग़ल में पाँच लाख की आबादी वाला देश मालदीव हमारा घोर विरोधी हो चुका है. वहाँ की अब तक की परंपरा रही है कि चुनाव जीतने वाला राष्ट्रपति अपनी विदेश यात्रा की शुरुआत भारत से करता है. अबकी बार यह परंपरा टूट गई. नव निर्वाचित राष्ट्रपति ने अपनी विदेश यात्रा की शुरुआत चीन से की है. भूटान भी बेचैन है. हालाँकि अभी प्रधानमंत्री जी वहाँ गए थे. पूर्व में भारत भूटान को प्रति वर्ष पाँच हज़ार करोड़ रुपये की सहायता देता था. अपनी ताज़ा यात्रा में प्रधानमंत्री जी ने सहायता राशि दोगुनी यानी दस हज़ार करोड़ कर हालत को सुधारने का प्रयास किया है.
पिछले दस वर्षों के मोदी शासन काल में देश में लोकतंत्र की क्या हालत है ! वैसे तो हमारे देश की शासन व्यवस्था के तीन पाए हैं. विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका. तीन पायों में न्यायपालिका पर सरकार का गंभीर दबाव है. जबकि न्यायपालिका को हमारे संविधान का गार्जियन माना जाता है. हमारे संवैधानिक अधिकारों की रक्षक न्यायपालिका ही है. अभी उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के भूपू न्यायाधीशों का सार्वजनिक बयान आया है. उन्होंने न्यायपालिका पर सरकार के बढ़ते दबाव और दबावों के चलते प्रभावित होते निर्णयों को लेकर सार्वजनिक रूप से चिंता प्रकट की है.
मोदी जी ने लोकतंत्र को ही लंगड़ा बना दिया है. लोकतंत्र के चौथे पाये को इन्होंने लगभग अपने क़ब्ज़ा में कर लिया है. वह चौथा पाया है मीडिया. अख़बार और टेलीविजनों के समाचार चैनल . जहाँ मीडिया स्वतंत्र नहीं है वहाँ लोकतंत्र को स्वस्थ और चैतन्य नहीं माना जाता है. यही वह माध्यम है जिसके ज़रिए जनता का सुख दुख सरकार तक पहुँचता है. या सरकारों की बात जनता तक पहुँचती है. इधर टेलीविजन एक मज़बूत माध्यम बन गया है. अख़बार तो हर जगह नहीं पहुँचते हैं. लेकिन टेलीविजन की पहुँच तो प्रायः झोपड़ियों तक हो चुकी है. टेलीविजन पर दिन रात मोदी जी दिखाई और सुनाई देते हैं. एक से एक पोशाक, तरह तरह की रंगीन पगड़ी में !मोदी जी आत्ममुग्ध व्यक्ति हैं. लंबा लंबा प्रवचनी अंदाज़ में भाषण करते हैं. यह एक प्रकार का रोग है. इसके शिकार व्यक्ति को अपना ही चेहरा, अपनी ही बोली अच्छी लगती है. बीच में अगर कोई टोक दे या सवाल पूछ दे तो वह लड़खड़ाने लगता है.
अपनी इसी कमजोरी की वजह से पिछले दस वर्षों में मोदी जी ने प्रेस वालों से एक मर्तबा भी बात नहीं की है. क्योंकि महंगाई, बेरोज़गारी या ग़रीबी के सवालों का उनके पास जवाब नहीं है. लेकिन इन समस्याओं से आम आदमी परेशान है. मोदी जी की पगड़ी से या उनके भाषणों से न महंगाई दूर हो रही है न बेरोज़गारी. इसलिए इस चुनाव में चार सौ नहीं मोदी जी के लिए दो सौ पार करना मुश्किल होगा.