बिहार को राजनीति का गढ़ कहा जाता है. बिहार ने देश की राजनीति को कई बार नई दिशा दी है. बिहार कभी शिक्षा का गढ़ भी रहा है. खानपान से लेकर कला के लिए भी बिहार अलग पहचान रखता है. इसके अलावा बिहार के लोग अपनी मीठी बोली-भाषा के लिए पूरे देश में जाने जाते हैं. आइए जानते हैं कि राजभाषा हिंदी के अलावा बिहार में कौन-कौन सी भाषाएं चलन में हैं.
वैसे तो हिंदी और उर्दू बिहार की दो राजभाषाएं हैं, इसमें पहली हिंदी और दूसरी उर्दू है. इसके बाद बिहार के मिथिलांचल में बोली जाने वाली मैथिली भाषा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है.
इसके अलावा बिहार में भोजपुरी, मगही, अंगिका और बज्जिका बोली जाने वाली अन्य प्रमुख भाषाओं और बोलियों में शामिल है. बता दें कि बिहार ने हिंदी को सबसे पहले राज्य की अधिकारिक भाषा माना.
बिहार में प्रचलित भाषाओं को बिहारी कहा जाता है, पूर्वी हिन्द–आर्य भाषाओं का पश्चित्मी समूह बिहारी कहलाता है. ये खासतौर पर भारत के बिहार और इसके अन्य पड़ोसी राज्यों में बोली जाती है. कुछ बिहारी भाषाएं मसलन अंगिका, बज्जिका, भोजपुरी, मगही और मैथिली भारत के साथ साथ नेपाल में भी बोली जाती है.
ऐसा कहा जाता है कि बिहारी शब्द को भाषा के तौर पर पेश करने के लिए अंग्रेज भाषा-वैज्ञानिक सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन का नाम आता है. ग्रियर्सन ने पहली बार अपने लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया में वर्तमान उत्तरी बिहार और दक्षिण-पश्चिम उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाले भाषाओं के सम्मिलित स्वरूप को बिहारी कहा. यहां बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका, बज्जिका के अलावा नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुरमाली भी शामिल हैं.
ऐसा भी मत है कि हिंदी की उत्पत्ति मुख्यतः बिहार से ही हुई थी क्योंकि बिहार के दक्षिण भाग में हिंदी भाषा सदियों से बोली जाती थी. यहां आज भी हिंदी ही चलन में है. हिन्दी फिल्मों और आम बोल-चाल में इन भाषाओं के टोन को बिहारी कहा गया है. हालांकि बाद में सामाजिक एवं राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में बिहारी शब्द का प्रयोग नकारात्मक विशेषण के रूप में किया गया.
बिहार के बाहर कई लोग यही मान कर चलते हैं कि बिहारी यानी बिहार के लोग या तो भोजपुरी बोलते हैं या ‘बिहारी’ और ये दोनों ही भाषाएं हिंदी का एक बिगड़ा हुआ रूप हैं. ‘बिहारी’ को प्रायः भोजपुरी का पर्याय भी मान लिया जाता है. लेकिन सच तो यह है कि बिहारी लोग ‘बिहारी’ नहीं बोलते क्योंकि यह कोई भाषा नहीं है बल्कि एक भौगोलिक पहचान है. जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन नाम के एक आइरिश ने भारत का पहला ‘आधुनिक’ भाषायी सर्वेक्षण करते हुए बिहार की सभी भाषाओं को एक वर्ग में रखकर बिहारी भाषा नाम दे दिया था. यही वजह है कि उस भौगोलिक क्षेत्र में प्रयुक्त भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका, बज्जिका आदि सभी भाषाओं को बिहारी भाषा कहा जाने लगा.
बाद के वर्षों में भारत सरकार ने बिहारी बोलियों को कई जनगणनाओं में अधिकृत तौर पर हिंदी की बोलियों में गिनना शुरू कर दिया. इस प्रकार, ग्रियर्सन के वर्गीकरण और बिहार की भाषाओं की सरकारी जनगणना के कारण बिहारी भाषाएं, बिहारी हिंदी, अथवा केवल बिहारी जैसी अभिव्यक्तियां अस्तित्व में आईं. ‘बिहारी भाषाएं’ एक अकादमिक शब्द है जो मुख्य रूप से बिहार की समस्त भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती है. बिहारी हिंदी, इस संदर्भ में, मैथिली को छोड़कर, हिंदी की बोलियों के रूप में बिहार की भाषाओं के सरकार के वर्गीकरण का परिणाम है. दूसरी ओर, शेष भारत के लिए बिहारी एक सामान्य, गैर-अकादमिक शब्द है, जो बिहार की किसी भी या सभी भाषाओं के लिए प्रयोग में लाया जाता है.
विडंबना यह है कि जो बिहारी देश के दूसरे हिस्सों में जाकर नहीं बसे उन्हें यह नहीं पता है कि वे जो भाषा बोलते हैं उसे एक अलग नाम दिया गया है- ‘बिहारी’, जो कि उनकी भाषा के पारंपरिक नाम से अलग है. जो लोग दूसरे राज्यों में जाकर बस गए हैं उन्हें या तो यह औपनिवेशिक नामकरण महत्वहीन/निरर्थक लगता है या वे इस स्थापित चलन का प्रतिवाद करने की हिम्मत नहीं कर पाते.
भारतीय संविधान बिहार की केवल एक भाषा- मैथिली को मान्यता देता है, वह भी इसमें 2003 में किए गए 92वें संशोधन के बाद. भोजपुरी को एक बोली के तौर पर मान्यता दी गई है. हालांकि एक भाषाविद के लिए भाषा और बोली के बीच का अंतर विवादास्पद है. भाषा और बोली के बीच का यह कृत्रिम भेद भाषायी से ज्यादा राजनीतिक मामला है. चूंकि हरेक ‘बोली’ भाषा के बुनियादी मानदंडों पर भी फिट बैठती है, इसलिए उसे आसानी से भाषा कहा जा सकता है. इसलिए इस लेख में भोजपुरी समेत किसी भी भाषायी व्यवस्था को बोली नहीं, भाषा ही कहा गया है.