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क्यों मनाया जाता है मुहर्रम, क्या है इमाम हुसैन की शहादत के पीछे की कहानी?, जानें

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मुहर्रम की दसवीं तारीख को मनाए जाने वाले यौम-ए-आशूरा के दिन ही ताजिए निकाले जाते हैं. इस बार यौम-ए-आशूरा 29 जुलाई को मनाया जाएगा. इस्लामिक कैंलेडर का पहला महीना मुहर्रम बुधवार (19 जुलाई) से शुरू हो गया है. ये महीना मुस्लिमों के लिए बेहद खास माना जाता है, जो कि गम के तौर पर मनाया जाता है.

इस महीने में मुसलमान खास तौर पर शिया मुस्लिम पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत का गम मनाते हैं. इमाम हुसैन कर्बला के मैदान में अपने साथियों के साथ शहीद हो गए थे. मुहर्रम की दसवीं तारीख को मनाए जाने वाले यौम-ए-आशूरा के दिन ही ताजिए निकाले जाते हैं. इस बार यौम-ए-आशूरा 29 जुलाई को मनाया जाएगा.

इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, सन् 61 हिजरी (680 ईस्वी) में इराक के कर्बला में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे. मुहर्रम के महीने को लेकर शिया और सुन्नी समुदाय, दोनों की मान्यताएं अलग-अलग हैं. जहां शिया समुदाय के लोग मजलिस (इमाम हुसैन की शहादत का जिक्र) करते हैं और जुलूस निकालते हैं. वहीं सुन्नी समुदाय के कुछ लोग आशूर के दिन रोजा रखते हैं.

सुन्नी लोग मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को रोजा रखते हैं. वैसे इस महीने मुसलमानों के लिए रोजा रखना फर्ज नहीं होता है. हालांकि सुन्नत (पुण्य) के तौर पर मुस्लिम ये रोजा रख सकते हैं. शिया समुदाय के लोग इस पूरे महीने मातम मनाते हैं और काले कपड़े पहनते हैं.

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