सर्दी के मौसम में जब ज्यादा ठंड पड़ती है तो बिस्तरों से उठने का मन नहीं करता है. हर वक्त सोने का मन करता है. एक बार रजाई में घुस जाते हैं तो फिर कुछ ही मिनटों में नींद आ जाती है. यहां तक कि सर्दियों में लोग रात में जल्दी सो जाते हैं और सुबह लेट उठते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि ठंड में गर्मियों के मुकाबले ज्यादा नींद क्यों आती है? लोग कंबल-रजाई ओढ़ कर बिस्तर से निकलना नहीं चाहते. गर्मी के दिनों की तुलना में ठंड में लोग डेढ़ से दो घंटे अधिक सोते हैं, इसका कारण क्या है? कई लोगों का मानना है कि सर्दी में ज्यादा नींद आती है और इस वजह से लोग ज्यादा वक्त बिस्तर में बिताते हैं. तो आइए जानते हैं कि आखिर इस बात में कितनी सच्चाई है और सर्दी में ज्यादा नींद आने के पीछे क्या लॉजिक है?
दरअसल, सीजन के अनुसार सोने की आदत में बदलाव के कारण ऐसा होता है। नींद आने के पीछे दो बड़े फैक्टर काम करते हैं एक है उजाला और दूसरा अंधेरा.
महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेंज, वर्धा में एसोसिएट प्रोफेसर और साइकेट्रिस्ट डॉ. हर्षल साठे बताते हैं कि दिन का उजाला और रात का अंधेरा नींद के पैटर्न को प्रभावित करते हैं. जब हम प्रकाश के संपर्क में आते हैं तो ब्रेन का खास एरिया एक्टिव होता है जो मेलाटोनिन हार्मोन और शरीर के टेंपरेचर को कंट्रोल करता है. हमारा शरीर मेलाटोनिन बनाता है जो कि एक स्लीप हार्मोन है.
सूर्यास्त होने पर शरीर में मेलाटोनिन का लेवल बढ़ने लगता है
जब सूर्यास्त होता है और अंधेरा धीरे-धीरे बढ़ने लगता है तो मेलाटोनिन का लेवल बढ़ने लगता है. इसका मतलब होता है कि अब सोने का समय हो गया है. सुबह में जब सूर्य की रोशनी बढ़ने लगती है तो मेलाटोनिन लेवल भी घटने लगता है. यह सिग्नल होता है कि अब उठने का समय हो गया है.
सर्दियों में दिन छोटे और रातें लंबी होने का मेलाटोनिन पर असर
गर्मी में दिन बड़े होते हैं और रातें छोटी होती हैं. दिन बड़े होने का मतलब है कि सूर्य का प्रकाश ज्यादा समय तक रहता है. जबकि सर्दियों में दिन छोटे होते हैं और रातें लंबी. यानी सूर्य का प्रकाश कम और अंधेरा ज्यादा समय तक रहता है. सूर्योदय और सूर्यास्त का समय बदलने से मेलाटोनिन लेवल पर असर पड़ता है.
गर्मियों में दिन के उजाले में मेलाटोनिन लेवल काफी कम होता है इसलिए लोगों को नींद नहीं आती. लेकिन सर्दियों में दिन में भी मेलाटोनिन लेवल उतना कम नहीं होता जितना कि गर्मी के दिनों में. इसके कारण हमारा शरीर दिन और रात के बीच सही रूप से अंतर नहीं कर पाता. इससे लोग सर्दियों में दिन के उजाले में भी रजाई-कंबल में दुबके रहते हैं. इसका असर रात की नींद पर पड़ता है. लोगों को रात में सोने में परेशानी होती है.
गर्मियों में ब्रेन ज्यादा एक्टिव, ठंड में कम
सर्दियों में तापमान कम होता है इसलिए नींद अधिक आती है जबकि गर्मियों में नींद कम आती है. इसका कारण यह है कि गर्मियों में हमारा ब्रेन ज्यादा एक्टिव रहता है जबकि ठंड के दिनों में ब्रेन कम एक्टिव रहता है. इससे नींद पर असर पड़ता है. ब्रेन के कम एक्टिव रहने पर न्यूरो ट्रांसमीटर्स की सक्रियता भी घट जाती है.
डॉ. हर्षल बताते हैं कि गर्मियों में लोग एवरेज 6-7 घंटे सोते हैं लेकिन ठंड के दिनों में लोग 2 से 2.5 घंटे ज्यादा सोते हैं. वास्तव में हमारे सोने का समय घटता-बढ़ता नहीं है बल्कि व्यक्ति को लगता है कि उसे अधिक सोना चाहिए. इसका कारण यह है कि दिन का टाइम कम हो जाता है.
सेराटोनिन लेवल घट जाता है
क्लीनिकल साइकोलॉजिकल साइंस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक ठंड के दिनों में सूर्य की रोशनी कम होने से शरीर के इंटरनल बॉडी क्लॉक पर निगेटिव असर पड़ता है. सूर्य की रोशनी कम होने से सेरोटोनिन लेवल भी घट जाता है. सेरोटोनिन एक तरह का न्यूरोट्रांसमीटर है जिसके घटने-बढ़ने से हमारा मूड बदलता है.
सर्दियों में सेरोटोनिन लेवल घटने से कोई भी सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर से पीड़ित हो सकता है. SAD एक तरह का डिप्रेशन है जो केवल सर्दियों में ही होता है. पीड़ित होने पर भी व्यक्ति को पता नहीं चलता कि उसे यह डिसऑर्डर है या नहीं. इसके चलते व्यक्ति थका-थका महसूस करता है, नींद अधिक आती है.
एक्टिविटी घटने से बच्चे लेथार्जिक हो जाते हैं
वैसे तो ठंड के दिनों में हर किसी की एक्टिविटी घट जाती है लेकिन इसका बच्चों पर असर ज्यादा होता है. ज्यादा समय तक बेड पर पड़े रहने से मेलाटोनिन बनने और बॉडी क्लॉक पर असर पड़ता है. बच्चे सुबह में समय से उठ नहीं पाते. उनकी एक्टिविटी कम हो जाती है. इससे पूरे मेटाबॉलिज्म पर असर पड़ता है. वे ज्यादा लेथार्जिक हो जाते हैं. इसके साथ ही सन एक्सपोजर कम हो जाता है, जिसकी वजह से शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है और हल्की नींद आती रहती है और आराम मिलते ही नींद आ जाती है.